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शर्मनाक ! स्कूल में शराब पीतीं पकड़ी गयीं छात्राएं
धनबाद : शहर के एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल में शुक्रवार को कक्षा नौ की करीब 15 छात्राओं को शराब (बोदका) पीते रंगे हाथों पकड़ा गया. छात्राओं के मुंह से शराब की गंध पाते ही क्लास में मौजूद शिक्षिका दंग रह गयीं. शिक्षिका को पहले तो यकीन नहीं हुआ लेकिन जांच की तो मामले को सही […]
धनबाद : शहर के एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल में शुक्रवार को कक्षा नौ की करीब 15 छात्राओं को शराब (बोदका) पीते रंगे हाथों पकड़ा गया. छात्राओं के मुंह से शराब की गंध पाते ही क्लास में मौजूद शिक्षिका दंग रह गयीं. शिक्षिका को पहले तो यकीन नहीं हुआ लेकिन जांच की तो मामले को सही पाया.
शक्षिका ने प्राचार्या को मामले से अवगत कराया. प्राचार्या भी सुन कर चकित रह गयी और छात्राओं को बुला कर फटकार लगायी. कुछ और सजा दिये जाने की सूचना है. हालांकि प्राचार्य व शिक्षिकाएं मामले में कुछ भी बताने से इनकार किया. शिक्षिकाओं ने बताया कि स्कूल में दो हजार स्टूडेंट्स हैं. और कुछ समस्याएं आ सकती हैं. यह मामला स्कूल का आंतरिक है और सार्वजनिक होना ठीक नहीं है.
नौवीं की छात्राएं : स्कूल की नौवीं कक्षा की छात्राओं की हरकत से पूरा स्कूल परिवार चकित है. छात्राएं शराब पी सकती हैं और वह भी कक्षा में, यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है. शुक्रवार को पूरे दिन स्कूल में यह चर्चा का विषय रहा. अन्य कक्षा के स्टूडेंट्स को भी मामले की जानकारी हो गयी और उन्होंने अपने अभिभावकों को बतायी. इधर, छात्राओं को टीसी (स्थानांतरण प्रमाणपत्र) देने की चेतावनी भी दी गयी है.
पहले भी हुआ है इस तरह का मामला : इससे पहले भी जिले के कुछ और प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूलों में स्टूडेंट्स के शराब पीने का मामला सामने आ चुका है. स्टूडेंट्स की वाटर बोतल में शराब पकड़ी गयी थी, जिसके बाद उन्हें टीसी देने की चेतावनी देकर छोड़ा गया था. इसी तरह एक अन्य निजी स्कूल के स्टूडेंट्स को सिगरेट पीते एवं एक मामले में कुछ स्टूडेंट्स को आपत्तिजनक हालत में देखा गया था.
बचपन पर पहरेदारी जरूरी
‘‘पापा! आज हमारे स्कूल में लड़की लोगों ने बोदका पी है.’’ स्कूल की एक छात्र ने घर लौटकर जब यह सूचना दी, तब पूरे घर में कौतूहल का माहौल बन गया. यह स्थिति किसी एक घर की नहीं थी. स्कूल की कई छात्राओं ने अपने-अपने घर लौटकर अपने अभिभावकों को इस घटना की जानकारी दी.
सवाल यह है कि जिन छात्राओं ने बोदका का सेवन किया, उन्हें इसकी प्रेरणा कहां से मिली? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या सारी जिम्मेदारी स्कूल की है? अभिभावकों की कोई भूमिका नहीं? आपने कभी गौर किया है, परखा है, निहारा है कि खुद आपके घर, आपके निजी संबंधों के संसार में क्या बदलाव आये हैं? बचपन कहां है? युवा कैसे और किन हालात में हैं? बच्चों का दिमाग कैसे काम करता है?
किशोर किस तरह सोचते हैं? आपके अपने ही बच्चे सोच के स्तर पर कहां खड़े हैं, और हम मां-बाप कहां खड़े हैं? स्कूल, क्या बच्चों के भावनात्मक संसार में उठे तूफान को समझ पा रहे हैं? पिछले 20-30 वर्षाे में अप्रत्याशित क्रांति हो गयी है, बदलाव आ गया है. आपसी संबंधों में, चीजों को देखने की दृष्टि में, परिवार की जीवन शैली में, स्कूलों में, बच्चों और किशारों के सोचने के तौर-तरीकों में. क्या हमें एहसास है कि यह कितना बड़ा, व्यापक और अविश्वसनीय है? चूंकि हम इन्हें रोज देखते हैं, हर सांस में जीते हैं, रोज इस बदलाव के संकेत पाते हैं, पर इन सब को जोड़ कर हम नहीं देख या आंक पाते कि हमारे पांवों के नीचे की धरती कहां से कहां पहुंच चुकी है? जैसे तेज बहती नदी के किनारे खड़े होकर लगता है कि पानी स्थिर है.
सब कुछ वहीं है. पानी वही, नदी वही. पर पानी तो हर पल नया हो जाता है. प्रवाह के कारण. सिर्फ हम देख नहीं पाते. उसी तरह बदलते समाज को समझने का नजरिया है. पल-पल बदलता परिवार, समाज और संबंधों का संसार एक नयी दुनिया और नये फलक पर पहुंच चुका है. जहां, इस समाज में बचपन खो गया है. टेक्नोलॉजी ने बच्चों, किशोरों और समाज के संबंधों को उलट-पुलट दिया है. एक तरफ भारत के सर्वश्रेष्ठ खर्चीले स्कूल तय करते हैं कि कक्षा छह से 12 तक के लिए अब वे कागज-कॉपी पर शिक्षा नहीं देंगे, बल्कि आइपैड पर लेसन दिये जायेंगे.
विशेषज्ञ मानते हैं कि टेक्नोलॉजी का यह अबाधित प्रयोग, पोरनोग्राफी, हिंसा और मानसिक रूप से अस्त-व्यस्त करने के संसार का प्रवेश द्वार है. एक तरफ लंदन में बसे विशिष्ट लोग अपने बच्चों को आइपैड या कंप्यूटर से शुरुआती वर्षो में शिक्षा नहीं देना चाहते. टेक्नोलॉजी की गंगोत्री सिलिकन वैली (अमेरिका) के जाने-माने टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ या माहिर टेक्नोलॉजिस्ट अपने बच्चों को उन स्कूलों में भेज रहे हैं, जहां शुरुआती दिनों में टेक्नोलॉजी के माध्यम से पढ़ाई नहीं होती, बल्कि मस्तिष्क का उपयोग होता है. ग्लोबल बनती दुनिया ने सूचना क्रांति को कैसे परिभाषित किया है?
बच्चे, कैसे टीवी, इंटरनेट से चिपके रहते हैं? उनमें बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति या अश्लीलता के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? कैसे बच्चे, किशोर और युवा तीनों देखते-देखते एक नयी दुनिया में पहुंच गये हैं? क्या मां-बाप को पता है? क्या शिक्षकों को एहसास है कि बच्चों-किशोरों का यह नया संसार कैसा है?
कैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों के बाजार व्याकरण में बच्चे अहम लक्ष्य हैं. बड़ी-बड़ी कपंनियों की ब्रांडेड चीजें ही क्यों युवा या किशोर चाहने लगे हैं? बाहरी पढ़ा-लिखा युवा (ग्लोबलाइजेशन के बाद की पीढ़ी) को शराब से परहेज नहीं है. अत्यंत नशीले मादक द्रव्य उन्हें खींचते हैं. महंगे स्कूल में दाखिला कराकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति का एहसास करनेवाले अभिभावकों को इस घटना से सीख लेने की जरूरत है. बचपन पर आपकी पहरेदारी जरूरी है.
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