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14 वर्षो में जल स्तर 10 से 12 मीटर घटा

राज्य में चार जगहों पर ग्राउंड वाटर का सर्वाधिक दोहन 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी टय़ूबवेल के भरोसे पूरी करती है जरूरत दीपक रांची : राज्य में भूगर्भ जल के भंडार का अत्यधिक दोहन होने लगा है. आंकड़े यह चेतावनी दे रहे हैं कि अलग राज्य बनने के बाद से ग्राउंड वाटर का स्तर 10 से […]

राज्य में चार जगहों पर ग्राउंड वाटर का सर्वाधिक दोहन

90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी टय़ूबवेल के भरोसे पूरी करती है जरूरत

दीपक

रांची : राज्य में भूगर्भ जल के भंडार का अत्यधिक दोहन होने लगा है. आंकड़े यह चेतावनी दे रहे हैं कि अलग राज्य बनने के बाद से ग्राउंड वाटर का स्तर 10 से 12 मीटर कम हुआ है. शहरी आबादी आज भी पीने का पानी के लिए पूरी तरह जलापूर्ति योजनाओं पर निर्भर है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों का आश्रय नलकूप बना हुआ है. 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी टय़ूबवेल के भरोसे ही रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर रही है.

राज्य सरकार औसतन 135 लीटर पानी प्रति दिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से उपलब्ध कराने का दावा करती है, जो शहर के लोगों को ही मिल रहा है. ग्रामीण इलाके में यह 70 से 90 लीटर प्रतिदिन का मानक है. राज्य में 46 से अधिक डैम और सिंचाई परियोजनाएं हैं. गांवों में कुआं, आहर, तालाब और अन्य पानी के स्नेत से छह से आठ महीने काम चलता है. गरमी के मौसम में अधिकतर कुआं और तालाब सूख जाते हैं. राज्य में चार जगहों पर ग्राउंड वाटर का अत्यधिक दोहन हो चुका है. इसमें रांची का कांके इलाका, गोड्डा शहर, जमशेदपुर सदर और धनबाद जिले का झरिया इलाका शामिल है. धनबाद शहर और रामगढ़ का इलाका अब ग्राउंड वाटर के दोहन के मामले में क्रिटिकल स्थिति में आ चुका है.

बोरिंग की वजह से घट रहा है जल स्तर : राज्य में प्रत्येक वर्ष 20 से 25 हजार नये टय़ूबवेल लगाये जाते रहे हैं. सरकारी चापानलों के लिए ग्रामीण इलाकों में 60 मीटर तक की बोरिंग की जाती है. शहरी क्षेत्र में बोरिंग कराने के लिए नगर निगम की अनुमति आवश्यक है, क्योंकि अब 100 मीटर (300 फीट) तक की बोरिंग भी फेल हो रही हैं. अमूमन 4.5 इंच व्यास की बोरिंग सरकारी टय़ूबवेल में की जाती है. दलदल वाले इलाकों के लिए गै्रवेल पैक्ड टय़ूबवेल (जीपीटी) की स्थापना की जाती है. सरकार की ओर से वैकल्पिक व्यवस्था के तहत छह इंच व्यास की बोरिंग (उच्च प्रवाही नलकूप) के लिए की जाती है.

इसके लिए तीन सौ मीटर से अधिक गहरेवाले टय़ूबवेल स्थापित कराये जाते हैं. सरकारी टय़ूबवेल के लिए 2012-13 से ही टय़ूबवेल के पास रीचार्ज पिट बनाने की व्यवस्था की गयी है. इस्टीमेट में 10 हजार रुपये की अतिरिक्त व्यवस्था की गयी थी. सभी सरकारी टय़ूबवेल के लिए पानी को रीचार्ज करना जरूरी किया गया था. शहरी क्षेत्रों में नगर निगम से वैसे ही भवनों का नक्शा स्वीकृत करने का निर्देश दिया गया था, जिनमें रीचार्ज और वाटर हार्वेस्टिंग की सुविधा है., पर इसका अनुपालन नहीं होता है.

राज्य में हैं 4.04 लाख टय़ूबवेल : राज्य के ग्रामीण इलाकों में 4.04 लाख टय़ूबवेल हैं. इनमें से 70 हजार टय़ूबवेल खराब हैं. सरकार प्रत्येक टय़ूबवेल की मरम्मत के लिए ग्राम जल स्वच्छता समिति को 712 रुपये की दर से रख-रखाव खर्च मुहैया कराती है. खराब पड़े टय़ूबवेल को बदलने के लिए 10 हजार रुपये और चापानल के अंदर के राइजर पाइप को बदलने के लिए 11,500 रुपये प्रत्येक टय़ूबवेल की दर से राशि उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान भी किया गया है. रांची पश्चिम में 12805 टय़ूबवेल चालू हालत में हैं.

बह जाता है बारिश का 70-80 फीसदी पानी

राज्य में पानी का भंडार सीमित है. इसका अत्यधिक दोहन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे टय़ूबवेल के निर्माण से हो रहा है. राज्य सरकार ने फैसला लिया है कि अब नये टय़ूबवेल नहीं लगाये जायेंगे. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ग्राउंड वाटर का रिजर्व (भूगर्भ जल का भंडार) 4292 मिलियन क्यूबिक मीटर है. जबकि सरफेस वाटर की उपलब्धता 25876 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) है. राजधानी समेत सभी शहरी इलाकों के लिए प्रत्येक दिन 734.35 लाख गैलन पानी की आश्यकता होती है. राज्य में 11 सौ से लेकर 14 सौ मिलीमीटर बारिश होती है. इसमें से 23800 एमसीएम सरफ़ेस वाटर और 500 एमसीएम ग्राउंड वाटर का पानी भौगोलिक स्थिति की वजह से बह जाता है. कुल बारिश का 80 फीसदी सरफेस वाटर और 74 फीसदी ग्राउंड वाटर बह कर दूसरी जगह चल जाता है. ऐसे में राज्य में जलसंरक्षण की दिशा में अब तक कुछ खास नहीं हो पाया है.

11 लाख लोग जलापूर्ति पर निर्भर

राजधानी के 55 वार्ड 175 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले हैं. इनमें रहनेवाली 70 फीसदी आबादी (10-10.50 लाख) पाइपलाइन जलापूर्ति व्यवस्था पर निर्भर है. आइएमसीएस संस्था के सर्वेक्षण के अनुसार रांची में 1.10 लाख लोगों ने वाटर कनेक्शन लिया है, लेकिन निगम के आंकड़े सिर्फ 25 से 30 हजार तक ही सीमित हैं. राजधानी के 55 वार्ड में प्रति दिन 4.25 करोड़ गैलन पानी की आपूर्ति गोंदा, रुक्का और हटिया डैम से की जाती है. ये तीनों डैम 50 और 60 के दशक में बनाये गये थे. इनकी लाइफ भी समाप्त हो चुकी है. शहर में पानी संकट से निबटने के लिए 3465 टय़ूबवेल स्थापित किये गये थे. इनमें से 151 खराब हो गये हैं. सूखे की स्थिति से निबटने के लिए 2010-11 में 35 से अधिक उच्च प्रवाही नलकूपों की स्थापना की गयी थी. इनमें से आधा दर्जन खराब हो गये हैं.

तीन प्रमुख डैम में जलस्तर

रूक्का डैम समुद्र तल के हिसाब से 1925.2 फीट पिछले वर्ष से 8 फीट अधिक

गोंदा डैम समुद्र तल के हिसाब से 2119.2 फीट पिछले वर्ष से दो फीट कम

हटिया डैम 18.8 फीट पिछले वर्ष से 10 फीट कम

सिर्फ रूक्का डैम में ही है आठ फीट अधिक पानी

तीन जलाशयों से पूरे शहर को पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है. इनमें रूक्का डैम, हटिया डैम और गोंदा डैम शामिल हैं. हटिया डैम में इस वर्ष पानी 10 फीट कम है, जबकि गोंदा में दो फीट पानी कम है. रूक्का डैम में पिछले वर्ष की तुलना में आठ फीट पानी का स्तर अधिक है. अधिकारियों का कहना है कि समय पर बारिश होने से गरमी के मौसम में जल संकट की स्थिति नहीं उत्पन्न होगी. रूक्का डैम से शहर के 25 से अधिक वार्डो में जलापूर्ति की जाती है. डैम से 5 लाख से अधिक की आबादी को पीने का पानी मुहैया कराया जाता है. हटिया डैम से 19 वार्डो के 46 से अधिक मुहल्ले में जलापूर्ति होती है. गोंदा डैम से चार वार्ड से अधिक में पानी पहुंचाया जाता है. नियमित आपूर्ति करने के लिए 13 जगहों पर पानी की टंकियां स्थापित की गयी हैं, जिनकी क्षमता दो लाख गैलन या इससे अधिक है.

गायब होने के कगार पर तालाब

रांची : कभी तालाबों के शहर के रूप में पहचाने जाने वाली रांची में आज गिनती के तालाब बचे हैं. कहीं तालाबों की जमीन को पाट कर भवन का निर्माण किया जा रहा है तो कहीं नाली के पानी को सीधे तालाब में ही गिरा दिया जा रहा है. तालाबों पर हो रहे अतिक्रमण को कैसे रोका जाये, इसका प्लान न तो नगर निगम के पास है और न ही जिला प्रशासन के पास. दिनों दिन घटते जल स्तर का एक बड़ा कारण तालाबों पर हो रहे निर्माण कार्य भी हैं. जानकारों का कहना है कि तालाब में पानी रहने से उसके आसपास के क्षेत्र का वाटर लेबल बरकरार रहता है. परंतु तालाब के सूखने से बोरिंग व कुआं भी सूखने लगते हैं.

वैसे तालाब, जहां नालियों का पानी जाता है : रांची लेक (बड़ा तालाब), छोटा टैंक, मधुकम बस्ती टैंक, लाइन टैंक, कमला टैंक, हटिया टैंक चुटिया, मिसिरगोंदा बस्ती टैंक, हातमा बस्ती टैंक, सुकुरहुटू टैंक, दिव्यायन के नजदीक स्थित मोरहाबादी टैंक, करमटोली टैंक, एफसीआइ कडरू स्थित तालाब, पुनंदाग स्थित टैंक, अरगोड़ा बस्ती स्थित तालाब, ललगुटवा बस्ती टैंक, जेपी मार्केट धुर्वा स्थित टैंक, बटम तालाब, डोरंडा मजार स्थित तालाब, चुटिया पावर हाउस के समीप स्थित तालाब.

तालाब, जिन पर किसी का ध्यान नहीं है : जेल टैंक, टैगोर हिल स्थित बैठा बस्ती टैंक, चुटिया दुमसाटोली स्थित तालाब, चुटिया मुचकुनटोली टैंक, चुटिया महाराजा टैंक, मोरहाबादी बस्ती टैंक, रिम्स के समीप स्थित टैंक, तिरिल के दो तालाब.

प्लानिंग की कमी के कारण नहीं हो रहा है जल संग्रह

राज्य में हर साल पर्याप्त वर्षा (1300 मिमी प्रति वर्ष) होती है. इसके बावजूद में राज्य में जल संकट होना गंभीर बात है. सरकारी स्तर पर प्लानिंग और नीति में कमी के कारण ऐसा हो रहा है. संसाधन की कमी नहीं है. इतने पानी से हम पूरे साल पेयजल और सिंचाई का काम चला सकते हैं. एडवांस प्लानिंग व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है. राज्य में एडवांस प्लानिंग के एक चीफ इंजीनियर का पद स्वीकृत है.

राज्य गठन के बाद से यह पद रिक्त है. इस कारण राज्य सरकार जल संग्रह को लेकर कोई नयी नीति नहीं बना पायी है. हम आज भी बिहार की नीति पर काम कर रहे हैं. बीच-बीच में निजी एजेंसियों से अध्ययन कराया गया लेकिन, इस रिपोर्ट की समीक्षा के लिए भी अधिकारी नहीं है. यह राज्य सरकार की प्राथमिकता में भी नहीं है. जल संचय के लिए भूमि की जरूरत है. इसके लिए जमीन अधिग्रहण होना चाहिए. खान-खनिज के वन व पर्यावरण स्वीकृति के लिए ऊपर से विभागों का समन्वय स्थापित किया जाता है. लेकिन, जल संग्रह के लिए वन क्लीयरेंस का काम विभाग को कराना पड़ता है. इस कारण नयी परियोजना के लिए जमीन नहीं मिल पाती है.

शिवानंद राय

इंजीनियर अध्यक्ष, झारखंड अभियंत्रण सेवा संघ

रांची में पांच साल में 100 फीट नीचे गया जलस्तर

राजधानी का वाटर लेबल तेजी से नीचे जा रहा है. राजधानी में आज से पांच साल पहले जब बोरिंग की जाती थी तो उसकी गहराई 200-250 फीट तक होती थी. परंतु आज 300-350 फीट बोरिंग कराने पर पानी मिल रहा है. इस प्रकार पिछले पांच साल में जल स्तर 100 फीट से अधिक नीचे चला गया है. अब यह सरकार का दायित्व है कि वह हर घर के लिए वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य करे. जब तक वाटर हार्वेस्टिंग हर घर में नहीं होगा. वाटर लेबल हर साल घटता ही जायेगा. जल स्तर नीचे जाने के कारण डीप बोरिंग फेल हो रहे हैं.

: केके गुप्ता, बोरिंग संचालक

88 स्थलों पर टैंकर न पहुंचे तो प्यासे रह जायेंगे लोग

रांची : राजधानी रांची में 88 स्थान ऐसे हैं, जहां गरमी के दिनों में लोगों को पेयजल के लिए तरसना पड़ता है. इन मोहल्लों में गरमी आते ही निजी बोरिंग व कुएं सूख जाते हैं. मोहल्लों में जल संकट को देखते हुए नगर निगम द्वारा यहां चापानल भी लगाये गये हैं, परंतु इनमें भी लोग लंबी कतारें लगा कर खड़े रहते हैं. निगम द्वारा इन स्थानों को ड्राइ जोन के रूप में चिह्न्ति किया गया है. निगम की योजना इस बार भी अप्रैल माह में टैंकर से दो बार पानी के वितरण करने की है.

ये हैं ड्राइ जोन के मोहल्ले

मोरहाबादी मसजिद गली

लक्ष्मी नगर लकड़ी टाल के आगे

मधुकम

जयप्रकाश नगर पहाड़ी टोला

बिड़ला मैदान रातू रोड

सुखदेव नगर थाना के पास

पंडरा सीआरपी में

डीबडीह ऊपर टोली में

तेतर टोली

अरगोड़ा मंदिर के समीप

बनहोरा रंका टोली

हेहल बगीचा टोली

आनंद नगर, बड़का टोली

सीएमपीएफ क्वार्टर नदी किनारे

इलाही नगर

दीपाटोली, चाला नगर

पिपर टोली, टूंगरी टोली

पाहन कोचा

बड़गाई बस्ती साहू मोहल्ला

बूटी बस्ती नायक मोहल्ला

भाभा नगर , किशोर गंज

किशोरगंज रोड नं पांच

राजाहाता संस्कृत विद्यालय के पास

पिस्का मोड़ तेल गली

इरगु टोली

कुम्हार टोली अभिमन्यु चौक

मदीना मसजिद के पास

नाला रोड हिंदपीढ़ी

निजाम नगर खेत मोहल्ला

ग्वाला टोली हिंदपीढ़ी

बच्च कब्रिस्तान नदी ग्राउंड

हरमू विद्या नगर

महुआ टोली/स्वर्ण जयंती नगर

देवी मंडप रोड

सिंदवार टोली/सरई टांड़

पुरानी रांची

साउथ समाज स्ट्रीट थड़पखना

गुजराती मोहल्ला थड़पखना

उद्धव बाबू लेन/पीएन बोस कंपाउंड

थड़पखना मसजिद के पास

कडरू जामिया नगर

कडरू मदरसा के पास

संग्राम चौक कुम्हार टोली

पहाड़ी टोला इमाम बाड़ा के पास

गाड़ी खाना

मौसी बाड़ी धुर्वा

सरई टोली तुपुदाना

ऊपर हटिया-नीचे हटिया

सबके सहयोग से ही होगा जल संकट का समाधान

राजधानी में जलसंकट की स्थिति गंभीर है. शहर में वर्षा जल का भंडारण व संचयन नहीं होने के कारण राजधानी भी अब ड्राइजोन के रूप में तब्दील हो रही है. अगर जल्द ही सरकार व नगर निगम इस समस्या के निदान के लिए आगे नहीं आये, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे. शहर में जल संकट को लेकर शहर के युवाओं की राय.

जल स्तर के नीचे जाने के लिए दोषी हम सब हैं. आज बड़े-बड़े अपार्टमेंट व इमारतें बन रही हैं, परंतु उनमें जल संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. सरकार हर भवन में वाटर हार्वेस्टिंग करने के कड़े निर्देश दे. तभी जल स्तर की स्थिति सुधरेगी.

परम कुमार

राजधानी का जल स्तर दिन प्रतिदिन नीचे जा रहा है. घर के बोरिंग व कुएं सुख रहे हैं. यह स्थिति तब है जब अभी पूरी तरह से गरमी का मौसम आया नहीं है. आने वाले समय में यहां की स्थिति क्या हो जायेगी, सोच कर भी डर लगता है.

संजय कुमार

जल स्तर का नीचे जाने में कंक्रीट की सड़क व नाली का बहुत योगदान है. हर खाली स्थान में पीसीसी सड़क व ढलाई की गयी नाली के कारण बारिश का पानी भूमि के अंदर जा ही नहीं पाता. इसलिए ऐसे निर्माण पर रोक लगायी जाये. दिलीप सिंह

जल स्तर के नीचे जाने का एक बड़ा कारण राजधानी के तालाबों का गायब होना है. आज राजधानी के तालाबों को भरा जा रहा है. उनमें बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी की जा रही है. यह गंभीर समस्या है. इस पर रोक लगायी जाये, तभी जल स्तर सुधरेगा.

संजय महतो

21 टैंकरों के भरोसे 13 लाख आबादी

रांची. 13 लाख की आबादी तक पानी पहुंचाने के लिए नगर निगम के पास बहुत ही कम संसाधन हैं. निगम के पास वर्तमान में 2000 लीटर क्षमता वाले(टू केएल ) के 16 टैंकर हैं. इसके अलावा पांच केएल(पांच हजार लीटर) के चार टैंकर हैं. एक टैंकर नौ हजार लीटर का है. कम संख्या में टैंकर होने के कारण जल संकट वाले कई मोहल्ले में पानी का वितरण नहीं हो पाता.

10 टैंकर खरीदारी की तैयारी: निगम प्रशासन इस वर्ष 11 नये टैंकरों की खरीदारी करेगा. निगम की योजना दो हजार लीटर के छह टैंकर व पांच हजार लीटर के चार टैंकर खरीदने की है. इसके अलावा निगम इस वर्ष राजधानी के जल संकट वाले मोहल्लों में 205 टंकियां भी स्थापित की जायेंगी.

जल का चक्र ही जीवन का चक्र

डॉ हेम श्रीवास्तव

पारितंत्र में जीवन पैदा होगा या नहीं, इसके निर्धारण में सबसे महत्वपूर्ण तत्व पानी है. पृथ्वी पर जीवन है, तो इसलिए कि यहां पानी है. पानी है, तो यहां जीवन है. जब तक पानी नहीं था, जीवन भी नहीं था. आगे चल कर अगर पानी खत्म हुआ, तो जीवन भी वहीं पर खत्म होगा. पानी जहां दूषित हुआ, वहां जीवन मिटने लगता है, चाहे आदमी हो या मवेशी हो या फिर घास ही क्यों न हो. पृथ्वी के अलावा उन्हीं ग्रहों पर जीवन की कल्पना की जाती है, जहां पानी हो. जो ग्रह तप रहे हैं, वहां पानी नहीं बना अभी तक और इसी वजह से वहां जीवन भी नहीं है. भविष्य में ये ग्रह कभी ठंडे होंगे, तब वहां पानी निर्मित होगा और जीवन पनपेगा उसके ही बाद.

हमारी धरती इस मामले में धनी है. इसका सत्तर फीसदी भाग जलमंडल है. थलमंडल के पाताल में भी पानी है. इसके अलावा धरती को घेरे हुए, जो हवामंडल है, वही भी पानी से तर है. यह पानी जलवाष्प के रूप में है. यहां पानी ज्यादा हुआ, तो बादल बन जाते हैं और धरती के आकाश में यहां-वहां विचरते हैं. हां, ये हर जगह बरसते नहीं, जाते वहीं हैं, जहां हवा ले जाये.

ध्यान से देखें, तो पृथ्वी पर जल का एक चक्र अनवरत चलता रहता है. पानी एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित होता रहता है और इधर से उधर प्रवाहित होता है. कुछ पठारों और मरूस्थलों को छोड़ कर लगभग पूरी पृथ्वी पानी से तर है. पातल हो या धरातल या फिर आकाश ही क्यों न हों, पानी की धरायें चलती हैं.

यह पानी का भंडार ही है, जो तरह-तरह की भौतिक चोटों का धरती पर प्रभाव नहीं पड़ने देता. भूकंप कितने भी बड़े हों, उनका बड़ा हिस्सा पानी द्वारा ङोल लिया जाता है. इस तरह यह रबर की भांति शॉक एब्जॉर्बर का काम करता है. ज्वालामुखियों से पैदा हुई अतिशय गरमी भी यदि पानी द्वारा न सोखी जाये, तो उसका प्रभाव न जाने कितना अधिक होगा. इसी प्रकार, सूर्य से आनेवाली गरमी या इनसोलेशन को भी बादल और वायुमंडल में व्याप्त वाष्प कम कर देते हैं, जिस कारण गर्मी कट-छन कर ही धरातल तक पहुंचती है.

भूगर्भ का जल पेड़-पौधों की जड़ों, नदी, झरनों और ताल-तलैयों आदि के मार्फत पहले धरातल और फिर वायुमंडल तक चला जाता है, जहां से वह वापस वर्षा के माध्यम से इन्हीं स्नेतों तक पहुंचता है. समुद्र के खारे पानी और भूमंडल के ताजे पानी के बीच भी नदियों और वर्षा के माध्यम से लेदने चलता रहता है. इस प्रकार के संपूर्ण आवागमन और लेनदेन से जल की गतियों का जो चक्र बनता है, वही जलचक्र है.

(लेखिका पर्यावरणविद हैं)

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