आप जानते हैं कि पशुधन के मामले में झारखंड अब भी गरीब राज्य है. यहां की 80 फीसदी आबादी खेजी पर निर्भर है. खेती इनका मूल पेशा है या फिर ये खेतीहर मजदूर हैं, लेकिन उन्नत किस्म के बैल और उन्नत नस्ल की गाय उनके पास बहुत कम हैं. राज्य में अच्छे नस्ल के सक्षम पशुओं की संख्या 1.90 लाख है और प्रजनन में भाग लेने में सक्षम अच्छी भैंसों की संख्या केवल 39 हजार हैं. झारखंड में गाय के दूध की उत्पादकता दर 1.59 किलोग्राम है, जबकि राष्ट्रीय औसत दर 3.00 किलोग्राम है. यहां प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता 152 ग्राम प्रतिदिन है, जबकि राष्ट्रीय औसत दर 240 ग्राम है. इसी प्रकार प्रति व्यक्ति सालाना अंडे की उपलब्धता केवल 25 अंडे है, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत दर 42 अंडे है. मुर्गा हो अंडा, झारखंड की मांग दूसरे राज्य पूरा करते हैं. इस तरह पशुधन या अंडा-मुर्गी या फिर दूध, हर मामले में राज्य अभी पीछे है. इस स्थिति को बदलने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर के करीब तीन दर्जन कार्यक्रम चल रहे हैं. इनका लाभ लोगों को मिल सके, इसके लिए पशुपालन एवं मत्स्य विकास विभाग है. गांव-पंचायत के लोगों से इस विभाग के जिस अधिकारी का सीधा संपर्क है, वह है प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी. यह एक महत्वपूर्ण पदाधिकारी है. इसकी निष्ठा, ईमानदारी, योग्यता और लगन पर ही इस विभाग की योजनाओं की सफलता निर्भर करती है. यह झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के आधार पर चुना जाता है. इसे प्रखंड मुख्यालय में ही रहना है और पशुपालकों की समस्याओं को हल भी करना है. हम इस बार इसी अधिकारी व विभाग की योजनाओं की चर्चा कर रहे हैं.
पशु स्वास्थ्य शिविर
इस योजना के तहत पशु चिकित्सा शिविर आयोजित किये जाते हैं. इन शिविरों में पशुओं के स्वास्थ्य की जांच की जाती है और उनका इलाज भी किया जाता है. पशु चिकित्सा पदाधिकारी की यह जिम्मेवारी है कि वह पशुपालकों के साथ मिल कर गांव, पंचायत और प्रखंड स्तर पर इस तरह के शिविर लगाये. इस शिविरों में पशुपालकों को पशुओं के स्वास्थ्य, चिकित्सा, उनके पालन की विधि, नवीन तकनीकों आदि के बारे में जागरूक किया जाता है. यह केंद्र सरकार की योजना है, जो राज्य के सभी जिलों में संचालित किया जा रहा है.
पॉल्ट्री की प्रोन्नति
राज्य में मुर्गी पालन को बढ़ावा देने और किसानों व बेरोजगारों को रोजगार व अतिरिक्त आय का अवसर उपलब्ध कराने के लिए यह योजना चलायी जा रही है. इसके तहत निजी पॉल्ट्री व्यावसायियों, किसानों एवं स्वयं सहायता समूहों को पॉल्ट्री फॉर्म और हेचरी की स्थापना के लिए सरकार की ओर से मदद दी जाती है. सरकारी पॉल्ट्री फॉर्म को भी इस योजना का लाभ दिया जाता है.
बकरी प्रजनन प्रोत्साहन योजना
इस योजना का मकसद स्थानीय बकरियों से ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियों के प्रजनन को प्रोत्साहन देना है, ताकि बकरियों के नस्ल एवं स्वास्थ्य में सुधार लाना है. इस योजना को बीएआइएफ विकास रिसर्च फाउंडेशन, पुणो के माध्यम से संचालित किया जा रह है. इसके तहत राज्य के छह जिलों गिरिडीह, हजारीबाग, रांची, पश्चिमी सिंहभूम, गुमला और सिमडेगा में 20 बकरी केंद्र चल रहे हैं. इसके जरिये 20 हजार बकरी पालकों को अगले पांच साल में एक लाख अच्छे नस्ल की बकरियों का लाभ दिलाना है.
सूअर प्रजनन इकाई प्रोन्नति योजना
यह योजना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का हिस्सा है. इस योजना के तहत किसानों को एक यूनिट के लिए टी-एंड-डी नस्ल के चार मादा एवं दो नर सूअर सरकार द्वारा दिये जाते हैं. वैसे यह योजना अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए है, लेकिन इसका लाभ दूसरे समुदाय के लोग भी ले सकते हैं. यह योजना इस उद्देश्य से चलायी जा रही है, ताकि राज्य में सूअर पालन को बढ़ावा मिले, सुअर के नस्ल में सुधार हो और राज्य के सूअर प्रजनन केंद्रों को मजबूती मिल सके. लाभुक को इस शर्त पर इस योजना में शामिल किया जाता कि वह सूअर को रखने, कम-से-कम छह माह तक उसके भोजन, दवा आदि की व्यवस्था करेगा.
स्वाइन बुखार नियंत्रण कार्यक्रम
स्वाइन बुखार,रक्तस्नव, सेप्टीसीमिया, ब्लैक क्वार्टर, पैर एवं मुंह में रोग जैसी बीमारी से पशुओं के बचाव के लिए यह कार्यक्रम राज्य भर में चलाया जा रहा है. यह केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है, जिसमें तीन चौथाई राशि केंद्र सरकार और एक चौथाई राशि राज्य सरकार देती है. इसके तहत राज्य स्तर पर जैविक उत्पादन इकाई के आधुनिकीकरण के साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर रोग निदान प्रयोगशालाओं के निर्माण के सुदृढ़ीकरण एवं कोल्ड चेन रखरखाव की व्यवस्था शामिल है. इसके अलावा किसानों को अपने पशुओं को टीके लगाने के तरीके आदि के बारे में भी बताया जाना है, ताकि वे अपने पशुओं में रोगों के लक्षण के आधार पर उसकी चिकित्सा कर सकें और अपने पशुधन को रोगों से बचा सकें.
राष्ट्रीय पशुमहामारी उन्मूलन कार्यक्र म
यह पूरी तरह केंद्र प्रयोजित योजना है. यह पशुधन संरक्षण का बड़ा कार्यक्रम है. इसका मकसद पशुओं और खास कर भैंसों को महामारी जैसी घात बीमारी से बचाना है. यह कार्यक्रम देश में लंबे समय से चल रहा है. इसका बेहतर परिणाम भी आया है. भारत को पशुमहामारी संक्र मण मुक्त देश घोषित किया गया है, लेकिन इसके बाद भी सतर्कता बरती जा रही है और गांव स्तर पर इस कार्यक्रम को पूरी सतर्कता के साथ चलाया जा रहा है. अगर किसी पशु में महामारी के लक्षण मिलते हैं, तो इसकी सूचना तुरंत राज्य मुख्यालय को दी जानी है और बीमार पशु की सघन चिकित्सा शुरू की जानी है. इसमें पशुपालक को हर तरह की सुविधा सरकार देती है. इस योजना पर होने वाले खर्च की पूरी राशि केंद्र सरकार देती है.
दूध, अंडे, मांस व ऊन का समेकित सर्वेक्षण कार्यक्रम
यह कार्यक्रम भी केंद्र का है. इसमें गांव स्तर पर पशुधन का सर्वे कराना और उसका डाटा तैयार करना है, ताकि राज्य में पशुधन उत्पादों को लेकर जब भी कोई कार्यक्रम बने, तब यह डाटा काम आये. सर्वेयरों को सालों भर जिले के चिह्न्ति गांवों में पशुधन का सर्वे करना है और उसके अनुसार डाटा बैंक को अद्यतन भी करना है. इस कार्य में लगाये गये कर्मी वेतनभोगी होते हैं. इस वेतन मद की आधी राशि भारत सरकार और आधी राशि राज्य सरकार देती है.
आधारभूत संसाधन
उच्च श्रेणी का पशु अस्पताल : 424
मोबाइल पशु अस्पताल : 04
प्रांतीय पशु अस्पताल : 23
पशु प्रजनन फॉर्म : 03
राज्य द्वारा संचालित पोल्ट्री फार्म : 02
राज्य द्वारा संचालित सुअर फार्म : 06
राज्य द्वारा संचालित बकरी फार्म : 01
राज्य गो सेवा आयोग
राज्य सरकार ने पशुधन के संरक्षण एवं कल्याण के लिए गो सेवा आयोग की स्थापना की है. इस आयोग का काम गो सेवा एवं पशुधन से जुड़ संस्थानों को नियंत्रित करना, उन्हें दिशा–निर्देश और संरक्षण देना, गो सेवा से जुड़े विषयों पर सरकार को सलाह देना पशुधन के नुकसान को रोकने की दिशा में जरूरी पहल करना है. इस आयोग के संचालन पर जो भी खर्च होता है, उसे राज्य सरकार वहन करती है.
राज्य पशु चिकित्सा परिषद
झारखंड सरकार ने भारतीय पशु चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1984 के तहत वर्ष 2006-07 में राज्य पशु चिकित्सा परिषद की स्थापना की है. इसका उद्देश्य पशु चिकित्सा को नियंत्रित करना तथा राज्य पशु चिकित्सालयों रखरखाव सुनिश्चित करना है. इस परिषद का दायित्व राज्य के पंजीकृत पशुचिकित्सकों के चिकित्सकीय एवं व्यावसायिक ज्ञान को विकसित करना तथा राज्य में पशु चिकित्सा की स्थिति में सुधार करना भी है. इसके स्थापना मद में होने वाले खर्च की आधी रकम केंद्र सरकार देती है और आधी रकम राज्य सरकार वहन करती है.