दक्षा वैदकर
आपने कई बार बातचीत में यह कहा होगा या सुना होगा ‘मेरा कहने का मतलब यह नहीं था, आप शायद गलत समझ रहे हैं, या फिर आपने अभी क्या कहा, मुङो कुछ समझ नहीं आया. दोबारा धीरे-धीरे समझायेंगे.’ यह सारी समस्या उन लोगों को आती है, जिनकी कम्यूनिकेशन स्किल कमजोर होती है. अगर आप भी इन लोगों में शामिल हैं, तो परेशान न हों. लगातार अभ्यास से आप भी अपनी संवाद अदायगी में सुधार ला सकते हैं. इसके लिए आपको धीरज रखना होगा.
कई बार लोग बोलते वक्त इतने ज्यादा एक्साइटेड हो जाते हैं कि उनकी सांस फूलने लगती है. ऐसी स्थिति न आये इसके लिए आपको सांस पर नियंत्रण करना सीखना होगा. संवाद को स्थिर तथा प्रवाह में लाने के लिए प्रत्येक सांस पर ध्यान केंद्रित करना होगा. धीरे-धीरे बहुत ही शांत तरीके से अपने बात रखनी होगी. जब आप हर शब्द के बीच में पर्याप्त सांस लेंगे, तो आपको इससे बहुत फायदा होगा. इससे शब्दों के चयन के लिए वक्त मिलता है और बोलते समय दिमाग में पर्याप्त ऊर्जा रहती है. यदि आप सांस की जगह बिल्कुल नहीं रखेंगे, तो आप हांफने लगेंगे, कुछ भी उटपटांग बोल देंगे और आपकी बात भी सामनेवाले को समझ नहीं आयेगी.
हमें किसी की बात को पूरे ध्यान से सुनने के बाद ही संवाद करना चाहिए. इससे आपको समझ आता है कि सामनेवाला क्या सोचता है और बदले में आपको किन शब्दों का प्रयोग कर उसे अपनी बात समझानी है. इसलिए सुनते समय फोकस्ड रहें. न समझ आये, तो पूछ लें. सोचने वाली बात है कि जब तक आप सामनेवाले की बात नहीं सुनेंगे, भला वह क्यों सुनेगा?
अगर आप किसी क्लाइंट से मिलने जा रहे हैं या बॉस से कुछ कहना चाहते हैं, तो आपको उनके मिजाज का भी अध्ययन कर के जाना चाहिए. आप देखें कि कब उस इंसान का मूड अच्छा होता है और कब नहीं. यदि मिजाज का पता लगाना मुमकिन न हो, तो भी विनम्र तथा धीमे शब्दों में बातचीत शुरू करें. सामनेवाला कुछ भी कहे, अपने एटिकेट्स न भूलें. आवाज धीमी रखें.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
अगर आपकी भाषा में मीठापन है, धैर्य है और तमीज है, तो कोई भी कठोर व बदतमीज इंसान आपकी बात सुनने को मजबूर हो जायेगा.
आपके बात करने का तरीका आपकी शिक्षा बताता है. इसलिए आइने के सामने बोलने का अभ्यास करें. आसान शब्दों में बात रखने का प्रयास करें.
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