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मेहनत के दम पर आगे बढ़ने की चाह

पैरों से लिख कर शिक्षिका बनना चाहती है सुभद्रा कोलकाता:उसका सपना है पढ़ना और जीवन में आगे बढ़ना. जीवन के हर मोड़ पर उसने अपने माता-पिता को जिस तरह आर्थिक तंगी से जूझते देखा है. अपने मेहनत के दम पर वह इस तंगी को दूर करना चाहती है. अपने अरमान को पूरा करने के लिए […]

पैरों से लिख कर शिक्षिका बनना चाहती है सुभद्रा

कोलकाता:उसका सपना है पढ़ना और जीवन में आगे बढ़ना. जीवन के हर मोड़ पर उसने अपने माता-पिता को जिस तरह आर्थिक तंगी से जूझते देखा है. अपने मेहनत के दम पर वह इस तंगी को दूर करना चाहती है. अपने अरमान को पूरा करने के लिए भले ही कुदरत ने उसे दोनों हाथ न दिये हो, लेकिन उसका इरादा पक्का है.

एक अत्यंत गरीब परिवार में जन्मी, पली-बढ़ी 19 वर्षीय सुभद्रा भौमिक बचपन से ही विकलांग है, लेकिन उसकी बातें सुन जीवन की कठिनाई से थके-हारे इनसान भी जोश से भर उठते हैं.

गांव की प्रेरणा

हावड़ा के बागनान स्थित श्री रामपुर राइसमिल के निकट फुलगछिया गांव की रहनेवाली सुभद्रा भौमिक दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद अपने मेहनत और आत्मविश्वास के कारण पूरे गांव के लिए प्रेरणा का श्रोत बनी है. सुभद्रा अभी बागनान कॉलेज में बीएससी प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही है. वह पैरों के सहारे ही अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती है. जिससे कि वह शिक्षक बन कर अपने लक्ष्य को हासिल कर सके.

मां ने जगायी मन में शक्ति

सुभद्रा कहती है, मेरे जन्म के बाद से मां मुझे और मेरे दोनों हाथों की जगह खाली स्थान को देखते ही रो पड़ती थी. बचपन में मुझे उनके इस दुख के पीछे का कारण पता नहीं चलता था, लेकिन जैसे-जैसे कुदरत ने मेरे अंदर समझने की शक्ति जगायी वैसे-वैसे मुझे उनके रोने के पीछे के दर्द का आभास होने लगा. खाली वक्त में मंै सोचती थी कि कुदरत इतना कठोर क्यों है? मां ने मेरे पैरों में कलम पकड़ा कर मुझे पैरों से लिखना सिखाया.

निजी संस्था का मिला सहयोग

वर्ष 2013 में उच्च माध्यमिक की परीक्षा पास करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि मेरे इरादे को पूरा करने में कुदरत ने मुझे एक कदम और आगे बढ़ा दिया. बागनान कॉलेज में प्रथम वर्ष की दाखिला फॉर्म को मैंने पैरों से ही भरा. स्नातक की पढ़ाई के लिए हमारी पास पैसे नहीं थे, लेकिन कहते हैं न कि कुदरत जिसे दुख देता है, उसके दर्द को कम करने का रास्ता भी वही देता है. दुख की इस घड़ी में आशा भवन नामक एक स्वयंसेवी संस्था ने मुझे सहारा दिया. मेरे कॉलेज की पढ़ाई उन्हीं के सहारे चली. पढ़ाई खत्म करने के बाद मैं शिक्षक बनने के लिए आगे की पढ़ाई शुरू करूंगी.

ताकि न करना पड़े मुश्किलों का सामना

सुभद्रा की मां भविरानी भौमिक कहती हैं कि बेटी को इस हालत में जन्मा देख कर मेरे सिर पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था. एक पल के लिए मुझे लगा कि इसे चुपके से अस्पताल में ही छोड़ दूं, लेकिन इस बच्ची की मोह ने मुझे ऐसा करने नहीं दिया. अपने सामर्थ के मुताबिक मैंने उसे हर काम सिखाया, जिससे भविष्य में बड़ा होकर किसी पर बोझ न बन सके. गांव के लोगों की दुआओं के साथ सुभद्रा अपने लक्ष्य में लगातार आगे बढ़ रही है.

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