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प्रेम और सामंती मन

!!मैत्रेयी पुष्पा,साहित्यकार!! जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक छात्र द्वारा क्लासरूम में अपने साथी छात्रापर किया गया हमला, हमारे सामने कई सवाल छोड़ गया है. सवाल है कि क्या 21वीं सदी में प्रेम इतना हिंसक हो गया है? क्या यह समाज में बढ़ती हिंसा की ओर इशारा कर रहा है? या फिर सदियों से भारतीय […]

!!मैत्रेयी पुष्पा,साहित्यकार!!

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक छात्र द्वारा क्लासरूम में अपने साथी छात्रापर किया गया हमला, हमारे सामने कई सवाल छोड़ गया है. सवाल है कि क्या 21वीं सदी में प्रेम इतना हिंसक हो गया है? क्या यह समाज में बढ़ती हिंसा की ओर इशारा कर रहा है? या फिर सदियों से भारतीय समाज की सोच में शामिल पितृ-सत्तात्मक मान्यताएं अभी भी इतनी मजबूत हैं कि अध्ययन और उदारवादी विचारों के गढ़ समङो जानेवाले विश्वविद्यालय के छात्र भी इससे मुक्त नहीं हो पाये हैं?

जेएनयू में हुई घटना इस तरह की कोई पहली घटना नहीं है. एकतरफा प्रेम में लड़कियों की हत्या और उन पर तेजाब फेंकने की खबरें अकसर सामने आती रहती है. जेएनयू के लड़के के बारे में भी जो खबरें आ रही है, उससे लगता है कि लड़का अपने साथी से प्रेम करता था. लेकिन प्रेम बलिदान करना, आत्मा का उत्कर्ष सिखाता है. वह ऊंचाई पर ले जाता है. नीचे नहीं गिराता. वह कोमल बनाता है, हिंसक नहीं. अगर वास्तव में छात्र को उस छात्र से प्रेम होता, तो खूनखराबा नहीं होता. यह एकतरफा प्यार का मामला था. और प्रेम हमेशा दो लोगों के बीच होता है. इसमें दो लोगों की भावनाओं का आदान-प्रदान होता है. ऐसा लगता है कि आज की पीढ़ी प्रेम की इस मूल भावना को नहीं समझ पा रही है.

प्रेमी एक साथी होता है. हमसफर, हमनवां होता है. एक ऐसा साथी जिससे भावनाओं को साझा किया जाता है. लेकिन मौजूदा दौर में कई बार ऐसा देखा जा रहा है कि लड़के प्रेम को और प्रेमिका को एक उत्पाद समझने लगे हैं. वे अपनी प्रेमिका पर पति की तरह अधिकार जताने लगते हैं. जहां प्रेम दोतरफा होता है, वहां भी और जहां एकतरफा होता है, वहां भी. आजकल प्रेम में हिंसा की वजह पुरुषों का अहंकार है और यह परवरिश से मिलता है. यही वजह है कि प्रेमी एक मनुष्य होकर प्रेम नहीं करता है, एक पुरुष होकर प्रेम करता है. जहां पुरुष होकर प्रेम किया जाता है, वहां कभी प्रेम हो ही नहीं सकता है.

समय के साथ समाज बदलता है. आधुनिकता कोई बुरी बात नहीं है. यह एक विचार है, जो आजाद करता है. लेकिन आधुनिकता सिर्फ ओढ़ लेनेवाली चीज नहीं है. सामंती सोच बरकरार रखते हुए समाज आधुनिक नहीं हो सकता है, क्योंकि सामंती सोच की खिड़कियां बंद होती हैं. यहां पुरुष की सत्ता के सामने स्त्री की सत्ता गौण होती है. यह एक बड़ी विडंबना है कि आज भी कई लड़के साथी नहीं सामंत की तरह पेश आते हैं. वे प्रेम की शुरुआत तो अच्छे से करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे अपनी पसंद थोपने लगते हैं. प्रेम संबंधों में लड़का इतना हावी हो जाता है कि उसकी कोई बात अनसुनी करने पर वह हिंसक हो जाता है. इसी सोच के कारण हिंसा बढ़ रही है. जब ‘मर्दानगी’ काम करने लगती है तो वह प्रेम नहीं रह जाता है.

स्त्री के खिलाफ प्रेम के नाम पर बढ़ती हिंसा की दूसरी बड़ी वजह है तकनीक का प्रयोग. तकनीक का प्रयोग कर लड़कियों के एमएमएस बना लिये जाते है, फिर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है. इन तकनीक ने भी समाज में हिंसक प्रवृत्ति को जन्म दिया है. आज कैमरे वाले मोबाइल फोन बच्चों के पास भी होते हैं. इंटरनेट, मोबाइल फोन पर लोग ईल साइट देखते हैं. इससे मनोभाव पर प्रतिकूल असर पड़ता है और व्यक्ति हिंसक होता जाता है. यही हिंसा समाज में विभिन्न रूपों में दिखायी देती है. खासकर स्त्रियों के खिलाफ.

यह सही है कि पहले के मुकाबले हम अधिक स्वतंत्र हुए है. महिलाओं और पुरूषों को एक दूसरे के पास आने का मौका मिला है. स्त्री-पुरूष का भेद मिटा है. लेकिन इस स्वतंत्रता को हम संभाल नहीं पा रहे हैं. स्वतंत्रता स्वछंदता बन गयी है. रिश्ता कांच के समान होता है. एक छोटी सी चोट से इसमें दरार आ सकती है. इसलिए हमें जो स्वतंत्रता मिली है, संवाद करने की, घूमने-फिरने की इसे अच्छी तरह सहेज कर रखना होगा. लेकिन हमने इसे तिजारत बना दिया है. प्रेम का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं होता है. आज प्रेम का केंद्र बिंदु यही बन गया है. यह लड़कियों के लिए खतरनाक है. आज का प्रेम शरीर का आकर्षण बन गया है. पहले भी लोग प्रेम करते थे, लेकिन अगर किसी कारणवश दो लोगों की शादी नहीं हो पायी तो वे अच्छी सी याद लेकर चले जाते थे. उसके बाद भी संवाद होता था, हिंसा की भावना नहीं आती थी.

प्रेम में प्रेमी और प्रेमिका को यह सोच लेना चाहिए कि वे इसके योग्य है या नहीं! लेकिन आज प्रेम को फास्ट फूड बना दिया गया है. ऐसे में इन संबंधों का परिणाम भी वैसा ही होगा. एकतरफा प्रेम में बदले में प्रेम नहीं मिलता है. आपकी भावना, इच्छा, अहं के अनुसार प्रतिदान नहीं मिलता है तो बदले की आग भड़कने लगती है. यह खतरनाक मनोरोग के समान है. प्रेम को फास्ट ट्रैक पर चलाने का नतीजा है हिंसा. यह फास्ट ट्रैक पर चलना आज के समाज ने सिखाया है. यहां सबकुछ जल्दी चाहिए. कामयाबी, दौलत, शोहरत और प्रेम भी. प्रेम में प्रतिदान भी. हर चीज की तरह प्रेम को भी कई लोग सिर्फ एक उपलब्धि मानते हैं. सफलता-असफलता का पैमाना मानते हैं. हमारा समाज सफलताओं से इतना प्यार करता है, सफलता को इतनी प्रशंसा मिलती है और असफलता को इतनी हिकारत से देखा जाता है, कि प्रेम में असफलता को भी कुछ लोग आसानी से पचा नहीं पाते.

अगर ‘प्यार को सिर्फ प्यार ही रहने दें तो कोई हिंसा नहीं होगी. अस्सी के बाद समाज में महिलाओं के प्रति हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगीं और प्रेम का स्वरुप विकृत होता गया. 80 के बाद परिवार भी धीरे-धीरे टूटने लगे. संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार का चलन बढ़ने लगा. लड़कों में महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति को रोकने के लिए परिवार की परवरिश और स्कूली शिक्षा में आमूल-चूल बदलाव करना होगा. आज हम बच्चों को नैतिक गुण नहीं सिखाते उन्हें सिर्फ कमाऊ बना रहे हैं. सभी मां को बच्चों को पहले इंसान बनाना चाहिए. परिवार, समाज और शिक्षकों का कर्तव्य बनता है कि वे बच्चों को पहले अच्छा इंसान बनायें.

स्त्रियों के प्रति हिंसा की घटनाओं का तीसरा कारण है है सिनेमा और टेलीविजन का घर-घर में पहुंचना. आज के उपभोक्तावादी दौर में स्त्रियों को सामान के तौर पर पेश किया जाता है. विज्ञापनों में ईलता बढ़ रही है. इससे बच्चों के कोमल मन पर नकारात्मक असर पड़ता है. वे भी महिलाओं को उसी नजरिये से देखने लगते हैं. इस पर नियंत्रण की सख्त जरूरत है. सरकार को इस पर लगाम लगाना चाहिए. ईल साइटों पर रोक लगानी चाहिए. लेकिन नियंत्रण हाथ से छूटता जा रहा है. समाज और सरकार दोनों को मिलकर इस दिशा में कदम उठाना होगा, नहीं तो स्थितियां इससे भी विकट हो जायेंगी. प्रेम का महान पक्ष धुंधला होता जायेगा.

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