दक्षा वैदकर
पिछले दिनों मैंने फेसबुक पर एक फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी. यह मुजफ्फरपुर में एक बड़ी कंपनी में कार्यरत राहुल झा की थी. क्योंकि मैं फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के पहले यह चेक करती हूं कि व्यक्ति कौन है. मैंने इस सज्जन की वॉल को भी चेक किया. पहले तो मैं देख कर बहुत खुश हुई कि उन्होंने सक्सेस सीढ़ी के मेरे सारे कॉलम अपनी वॉल पर कॉपी पेस्ट कर के डाले थे और लिखा था कि जरूर पढ़ें. सारे कॉलम की जांच-पड़ताल करने के बाद मैंने पाया कि इसमें मेरा नाम का जिक्र कहीं नहीं था. यह भी नहीं लिखा था कि यह किसी सक्सेस सीढ़ी कॉलम की कहानियां मैंने कॉपी की हैं.
उस सज्जन के सभी दोस्त उसकी वॉल पर तारीफों के पुल बांध रहे थे कि ‘वाह, गजब की सीख दी है.. इतनी शानदार कहानी तुम लिख कैसे लेते हो..’ और वह सज्जन बदले में सभी को केवल धन्यवाद कह रहे थे. वे बिल्कुल नहीं कह रहे थे कि ये उन्होंने नहीं लिखी हैं. मैंने जब फेसबुक पर उस सज्जन को मैसेज कर यह बात पूछी, तो उन्होंने कहा, ‘मैडम, जो भी तारीफ कर रहा है, उसे मैं पर्सनली मैसेज कर के कह देता हूं कि यह मैंने नहीं लिखा है.’ मैंने कहा कि यह बात आपको सार्वजनिक रूप से कहना चाहिए. मैं आपकी शिकायत करूंगी. सज्जन घबरा गये और फेसबुक से मुङो ब्लॉक कर दिया. यह वाकया जब मैंने अपने कुछ मित्रों को बताया, तो कई लोगों ने तो मेरा साथ दिया, लेकिन कुछ ने कहा कि जाने दो. करने दो कॉपी. लेने दो उसे क्रेडिट. इससे क्या फर्क पड़ता है.
दोस्तों, कई बार हम दूसरों की मदद किसी प्रोजेक्ट में करते हैं और जब श्रेय लेने की बात आती है, तो उसका पूरा श्रेय सामने वाले को दे देते हैं. यह मदद करने का एक तरीका होता है. इस तरह सभी की मदद करनी चाहिए. लेकिन कई बार हमें खुद के हक के लिए खड़ा होना पड़ता है. जब कोई आपकी मेहनत का श्रेय खुद ले जाता है, तो वह न केवल आपके साथ अन्याय करता है, बल्कि कई लोगों को भी उल्लू बनाता है. अगर आप उसे नहीं रोकेंगे, तो वह आगे जाकर किसी और के साथ भी ऐसा धोखा कर सकता है.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
आज समाज में कई ऐसी बुराइयां हैं, जो केवल इसलिए बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि हम सब जानते हुए भी चुप रहते हैं. उठो और आवाज उठाओ.
किसी भी चालाक इनसान को अपनी मेहनत का फल मत ले जाने दो. आप अगर उसे पहली बार में नहीं रोकेंगे, तो उसकी हिम्मत बढ़ती जायेगी.
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