।। डॉरहीससिंह ।।
– 1862 में अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दास प्रथा समाप्त की थी. इसके बावजूद वहां रंगभेद की समाप्ति के लिए 100 वर्षों तक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. 2008 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति पद तक पहुंचने के बाद यह माना गया कि अमेरिका में श्वेतों और अश्वेतों के बीच की दूरी अब खत्म हो गयी, लेकिन हाल की एक घटना ने इस सोच पर सवाल खड़ा किया है. अमेरिका में मौजूद रंगभेदी मानसिकता पर आज का नॉलेज.. –
18 मार्च 2008 को फिलाडेल्फिया में बराक ओबामा ने एक भाषण दिया था. इसमें अमेरिका की उन चुनौतियों को रेखांकित करते हुए लक्ष्यों तक पहुंचने का तानाबाना था, जिसके जरिये श्वेत और अश्वेत के बीच की सदियों पुरानी खाई को पाटते हुए एक नये अमेरिका की दिशा में आगे बढ़ा जा सके.
उस समय ओबामा को विश्वास था कि अमेरिका अपने समय की चुनौतियों का सामना तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि हर कोई मिल–जुल कर ऐसा न करें. जब तक इस समझ के द्वारा अमेरिकी संघ को परिपूर्ण न बनाया जाये. लेकिन, एक श्वेत अमेरिकी जॉर्ज जिमरमैन द्वारा एक अफ्रीकी–अमेरिकी ट्रेवॉन मार्टिन की हत्या के मामले में अदालत द्वारा जिमरमैन को बरी किये जाने के बाद ओबामा का यह विश्वास टूटता सा दिखायी दिया. ओबामा ने कहा, ‘35 वर्ष पहले मेरे साथ भी वही हो सकता था, जो ट्रेवॉन मार्टिन के साथ हुआ है. उनके शब्द विलियम फॉकनर के इन शब्दों को दोहराते दिख रहे हैं ‘हमारा अतीत अब भी मरा और दफनाया नहीं गया है..’
* अमेरिका की अधूरी आजादी!
अमेरिका में नस्लीय घटनाओं को देखने के बाद उन पन्नों को पलटकर देखने की फिर जरूरत महसूस होती है, जिनमें स्वतंत्र अमेरिका की इबारत लिखी गयी थी. पर इस स्वतंत्र अमेरिका में सभी की न तो बराबर की भागीदारी दी थी और न ही अधिकार. ये अधिकार आजादी के लगभग नौ दशकों के बाद तब मिले जब अमेरिकी संविधान में 13वां संशोधन किया गया. इस संशोधन ने दासता तो समाप्त कर दी, लेकिन आज भी अमेरिका में श्वेत और अश्वेत के बीच एक बड़ा फर्क कायम है.
आज भी अश्वेतों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और यदि उन्हें भद्दा, गंवार या अनपढ़ के रूप में देखा जा रहा है, तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि अमेरिका अभी भी उन मूल्यों को स्थापित नहीं कर पाया है, जिनकी अपेक्षा अब्राहम लिंकन एवं मार्टिन लूथर किंग ने की थी.

* क्या कहा ओबामा ने
अब अगर राष्ट्रपति ओबामा यह बयान दे रहे हैं कि यह घटना 35 साल पहले उनके साथ भी घट सकती थी, तो यह बात स्पष्ट हो गयी कि श्वेत और अश्वेत के बीच की खाई अभी भी काफी चौड़ी है. वैसे इस तरह की घटनाएं केवल अमेरिका में ही नहीं होती, बल्कि यूरोप के अधिकांश देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया में भी होती हैं. सवाल उठता है कि क्या ऐसे विभेद केवल सामाजिक स्तर पर विद्यमान होते हैं या फिर प्रशासनिक, राजनीतिक एवं न्यायिक क्षेत्र में भी होते हैं?
अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने मीडिया के समक्ष यह बात स्वीकार की है कि अमेरिका में शायद ही कोई ऐसा अश्वेत होगा, जिसने जातीय भेदभाव का अनुभव नहीं किया होगा. इस बयान के बाद एक सवाल और है कि दुनिया को सभ्यता परोसने का दावा करनेवाले अमेरिका के अंदर इस असभ्य व्यवहार का कारण क्या है? क्या यह इतिहास की देन है या फिर नस्लीय सोच का.
क्या उसका वर्तमान वहीं खड़ा है, जहां से उसके इतिहास की नयी व्यवस्था शुरू हुई थी? इस बात की पुष्टि स्वयं ओबामा के वक्तव्य में प्रयुक्त शब्दों से ही हो जाती है. वे कहते हैं अगर ठीक उसी तरह का अपराध किसी श्वेत किशोर ने किया होता तो इसका नतीजा कुछ और होता.
अपने साथ हुए जातीय भेदभाव के अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे अफ्रीकी–अमेरिकी नागरिक कम ही होंगे, जिन्होंने अपने जीवन में सड़कों से गुजरते वक्त इस भेदभाव का अनुभव नहीं किया होगा, मसलन उनके आते ही कार के दरवाजे का लॉक बंद होना. कम ही अफ्रीकी–अमेरिकियों ने एलीवेटर पर चढ़ते वक्त यह अनुभव नहीं किया होगा कि कोई महिला उन्हें देखते ही अपने पर्स को बड़ी घबराहट के साथ पकड़ लेती है और अपनी सांस थाम कर वहां से निकलने का मौका ढूंढ़ने लगती है.
* क्या है मामला
दरअसल, इस समय श्वेत और अश्वेत अमेरिकियों के बीच मौजूद खाई चरचा का विषय इसलिए बन गयी है, क्योंकि 26 फरवरी 2012 को फ्लोरिडा में एक 17 वर्षीय निहत्थे अश्वेत किशोर ट्रेवोन मार्टिन की एक 29 वर्षीय श्वेत युवक ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस मामले में अभियुक्त जॉर्ज जिमरमैन ने अदालत के सामने कबूल किया था कि उसने स्वयं के बचाव में उस किशोर पर गोली चलायी थी.
फ्लोरिडा की अदालत ने उसकी दलील को स्वीकारते हुए उसे हत्या के आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन जिमरमैन को बरी किये जाने के अदालती फैसले के बाद अमेरिका के लगभग 100 शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया, जो अब भी जारी है. उल्लेखनीय है कि इन प्रदर्शनों का नेतृत्व नेशनल एक्शन नेटवर्क कर रहा है, जिसकी कमान नागरिक अधिकार कार्यकर्ता अल शार्पटन संभाल रहे हैं.
हालांकि, ओबामा ने लोगों से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की अपील की है. इसके साथ ही, अमेरिका के अटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर ने उस कानून की समीक्षा करने की बात भी कही है, जो किसी व्यक्ति को खतरे की स्थिति महसूस करने पर अत्यधिक बल–प्रयोग करने की इजाजत देता है. लेकिन लगता नहीं है कि आक्रोश इन आश्वासनों से थमनेवाला है.
* अमेरिकी अश्वेत समाज में गुस्सा
अटलांटा के इबेन्जर बैपटिस्ट चर्च के वरिष्ठ पादरी रेव राफेल वारनॉक की इस मामले में टिप्पणी यह थी कि ट्रेवॉन बेंजामिन मार्टिन हमारे बीच इसलिए नहीं है, क्योंकि वह और उसके जैसे दूसरे अश्वेत लोगों को यहां इनसान नहीं, बल्कि एक समस्या समझा जाता है. अगर यह सच है, तो फिर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अमेरिका कितना सभ्य और विकसित है.
उल्लेखनीय है कि मार्टिन बेंजामिन ट्रेवॉन संबंधी विषय पर वाशिंगटन पोस्ट और बीबीसी ने 18 से 21 जुलाई के मध्य एक सर्वे कराया, जिसमें इस मामले से जुड़े प्रश्नों को श्वेतों और अश्वेतों, दोनों ही से पूछा गया. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सर्वे से जो तसवीर बनी वह अमेरिकी समाज में एक स्पष्ट विभाजक रेखा खींचती दिखी. इस सर्वे के अनुसार 87 प्रतिशत अफ्रीकी–अमेरिकियों का यह मानना है कि मार्टिन ट्रेवॉन की हत्या अन्यायपूर्ण थी, जबकि श्वेतों के मध्य केवल 33 प्रतिशत ही ऐसा मानते हैं.
श्वेत अमेरिकियों का 51 प्रतिशत हिस्सा यह मानता है कि जिमरमैन मामले में दिया गया निर्णय दोषपूर्ण नहीं है, जबकि अश्वेत अमेरिकी इसे नहीं स्वीकारते. जिमरमैन को बरी करने संबंधी अदालती निर्णय से 86 प्रतिशत अश्वेत असहमत हैं और सख्ती से उसका विरोध करते हैं. सार्वजनिक विचारों में भी एक विभाजन है. श्वेतों में भी रिपब्लिकनों में लगभग 70 प्रतिशत और डेमोक्रेट्स में लगभग 30 प्रतिशत ने इसे स्वीकार किया है.
अफ्रीकी–अमेरिकियों के 86 प्रतिशत का यह मानना है कि अश्वेत एवं अन्य अल्पसंख्यकों को कानून के अंतर्गत समान ट्रीटमेंट नहीं मिलता, जबकि 54 प्रतिशत श्वेतों का कहना है कि अल्पसंख्यक समूहों के साथ समान व्यवहार होता है. 81 प्रतिशत अफ्रीकी–अमेरिकियों की मांग है कि संघीय सरकार को नागरिक अधिकारों के उल्लंघन से जुड़ा मामला बना कर फेडरल कोर्ट में मुकदमा चलाना चाहिए, लेकिन इस मामले पर सहमत होने वाले श्वेतों की संख्या मात्र 27 प्रतिशत है, जबकि 59 फीसदी का कहना है कि सरकार को इस प्रकार के मामलों पर संघीय सरकार निर्णय नहीं कर सकती. 60 प्रतिशत हिस्पानियों का कहना है कि अश्वेत और अन्य अल्पसंख्यकों को समान अधिकार हासिल नहीं है.
कुल मिला कर अमेरिका में आज भी एक विभाजित समाज है. ओबामा की नवनिर्माण की सोच काफी हद तक फीकी पड़ चुकी है. हालांकि, ओबामा एक ऐसा भविष्य चाहते हैं कि जब कोई बच्चा सड़क पर जाये तो उसे इस बात की चिंता न करनी पड़े कि लोग उसकी त्वचा के रंग और कपड़ों की वजह से खतरनाक समझ रहे हों, लेकिन इसके लिए तो श्वेत समुदाय को अपनी बुनियादी सोच बदलनी होगी, जो इतना आसान नहीं है.
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं)
– कोलंबस से बराक ओबामा तक
सन 1492 में कोलंबस के अमेरिकी द्वीप पर पहुंचने के बाद अमेरिकी महाद्वीप का तेजी से ईसाईकरण हुआ. इन महाद्वीपों पर अनंतकाल से बसे निवासियों की पहचान समाप्त कर दी गयी और वहां की विशाल उर्वरा भूमि पर यूरोप से गयी गोरी जातियों द्वारा एकाधिकार स्थापित कर लिया गया. स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस, हालैंड, इंग्लैंड आदि देशों में उपनिवेश स्थापित करने की होड़ लग गयी. सस्ते श्रम के लिए 1619 से अफ्रीका के श्रमिकों को अमेरिका लाया जाने लगा.
60-70 लाख काले गुलाम गोरे अमेरिकियों की निजी संपत्ति बन गये. 1861-1865 के गृहयुद्ध के लिए यही कारक उत्तरदायी थे. 1862 में राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने गुलाम प्रथा को समाप्त करने की घोषणा कर दी थी, उसके बाद भी रंगभेद की समाप्ति के लिए 100 साल लंबा संघर्ष करना पड़ा. 1865 में ही लिंकन के आदेश की प्रतिक्रिया में कू–क्लक्स क्लान नामक अश्वेत विरोधी गुप्त संगठन का जन्म हो गया था. उस उथल–पुथल में से ही मार्टिन लूथर किंग उभरे.
28 अगस्त, 1963 को लिंकन स्मारक पर उनके अमर भाषण ‘मेरा भी एक सपना है’ ने अमेरिका की आत्मा को झकझोर डाला. उदार गोरों की अगुवाई में नागरिक अधिकार आंदोलन ने जन्म लिया और 1964 के नागरिक अधिकार कानून के द्वारा नस्लभेद को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. 1967 में अंतर नस्लीय विवाहों को कानूनी मान्यता मिल गयी. 2008 में अश्वेत अमेरिकी बराक ओबामा सत्ता के उस शीर्ष पर पहुंच गये, जिसका सपना कभी अफ्रीकी–अमेरीकियों ने देखा था.
– अमेरिका में अश्वेतों के इतिहास की प्रमुख घटनाएं
* 1619 – पहला अफ्रीकी दास वजीर्निया पहुंचा
* 1793 – रुई ओटने की मशीन के अविष्कार से दासों की मांग बढ़ी.
* 1854- फ्यूगिटिव लॉ (भगोड़ा कानून) बनाकर अमेरिका स्लेव जोन और नॉन स्लेव जोन में बांट दिया गया
* 1861- अमेरिका से दक्षिण के अलग होने के बाद से कांफेडेरेसी की स्थापना और गृह युद्ध शुरू
* 1863- राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिसके तहत कांफेडरेट प्रांतों के सभी दासों को आजाद घोषित किया गया
* 1865- गृह युद्ध की समाप्ति और लिंकन की हत्या
* 1868- 13वें संविधान संशोधन द्वारा दास प्रथा को समाप्त कर दिया गया. संविधान में 14वां संशोधन कर सभी अफ्रीकी–अमेरिकी नागरिकों को पूर्ण नागरिकता देने का प्रावधान किया गया
* 1870-अश्वेत पुरुषों को मताधिकार दिया गया
* 1896- सुप्रीम कोर्ट ने नस्लीय आधार पर पृथक्कीकरण को संविधान सम्मत बताया, जिससे दक्षिण में अलगाव शुरू हो गया.
* 1948- राष्ट्रपति हैरी एस ट्रमैन ने अमेरिकी सशस्त्र सेनाओं में अलगाव खत्म करने के लिए आदेश जारी किया.
* 1954-सुप्रीम कोर्ट ने ब्राउन बनाम बोर्ड ऑफ एजुकेशन मामले में स्कूलों में अलगाव को असंवैधानिक करार दिया.
– अमेरिका में धर्म की महत्ता
59 प्रतिशत अमेरिकी मानते हैं कि उच्च जीवन और स्वस्थ राष्ट्र के लिए उनके जीवन में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका है. वर्ष 2007 के सर्वेक्षण में 78.4 प्रतिशत युवाओं ने स्वयं को ईसाई बताया. इनमें प्रोटेस्टैंट का प्रतिशत 51.3 है, जबकि 23.9 फीसदी रोमन कैथोलिक हैं.
वर्ष 2007 में गैर–ईसाई लोग 4.7 प्रतिशत थे. (1990 में यह संख्या 3.3 प्रतिशत थी) यहूदी 1.7 प्रतिशत, मुसलिम 0.8 प्रतिशत, बौद्ध 0.7 प्रतिशत और हिंदू 0.4 प्रतिशत.
– अमेरिकी जनसंख्या की जातीय संरचना
* 72.4 फीसदी श्वेत या यूरोपीय मूल के हैं
* 12.6 फीसदी अश्वेत या अफ्रीकी मूल के हैं
* 4.8 फीसदी हैं एशियाई अमेरिकी
* 0.9 फीसदी हैं अमेरिकन–इंडियन या अलास्का नेटिव
* 0.2 फीसदी हवाई मूल निवासी या अन्य प्रशांत द्वीपीय
* 6.2 फीसदी अन्य नस्ल के
* 2.9 फीसदी दो या अधिक प्रजाति के