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पुकारता चला हूं मैं..

वक्त-ए-सफर:बिश्वजीत14 दिसंबर 1936 को कोलकाता में जन्मे बिश्वजीत परिवार के विरोध के बावजूद फिल्मों में आये. उन पर ‘पुकारता चला हूं मैं’,‘कहीं करती होगी वो मेरा इंतजार’ जैसे कई सदाबहार गीत फिल्माये गये. लगभग सभी प्रमुख अदाकाराओं के साथ उन्होंने काम किया. पिछले दिनों फिल्मी गानों के एक चैनल पर गायक और संगीतकार हेमंत कुमार […]

वक्त-ए-सफर:बिश्वजीत

14 दिसंबर 1936 को कोलकाता में जन्मे बिश्वजीत परिवार के विरोध के बावजूद फिल्मों में आये. उन पर ‘पुकारता चला हूं मैं’,‘कहीं करती होगी वो मेरा इंतजार’ जैसे कई सदाबहार गीत फिल्माये गये. लगभग सभी प्रमुख अदाकाराओं के साथ उन्होंने काम किया.

पिछले दिनों फिल्मी गानों के एक चैनल पर गायक और संगीतकार हेमंत कुमार के यादगार गीतों का सिलसिला चल रहा था. अपनी लरजती आवाज से सुकून भरी खामोशी देनेवाले हेमंत कुमार को सुनने के लिए टीवी के सामने ठहर जाना लाजिमी था. लेकिन उनके गीतों में ‘जरा नजरों से कह दो जी’ और ‘ये नयन डरे-डरे’ ने खासतौर पर ध्यान खींचा. वजह थे अभिनेता बिश्वजीत. साठ के दशक के अत्यंत सम्मोहक छवि वाले अभिनेता, जिन्हें ‘म्यूजिकल हीरो’ या ‘संस्पेंस हीरो’ भी कहा जाने लगा था. दरअसल, बांग्ला सिनेमा से अभिनय की शुरूआत करने के बाद हिंदी फिल्मों में आये बिश्वजीत को ज्यादातर सस्पेंस और संगीतमय फिल्में ही मिलीं थीं.

बिश्वजीत अभिनीत पहली ही हिंदी फिल्म ‘बीस साल बाद’ खुद के साथ बहा ले जाने वाले संगीत से सजी थी. हेमंत कुमार के बैनर ‘गीतांजलि’ के तले बनी इस फिल्म का संगीत भी हेमंत दा का ही दिया था और गाने भी उन्होंने ही गाये थे. इस सफलता को हेमंत कुमार ने फिर से बिश्वजीत के साथ ‘कोहरा’ में दोहराया. इसके बाद बिश्वजीत को हिंदी फिल्मों के इतने प्रस्ताव मिले कि वह एक दिन में तीन-तीन फिल्मों की शूटिंग के लिए समय निकालते थे. उनकी फिल्मों की फेहरिस्त में ‘मेरे सनम’,‘दो दिल’,‘शहनाई’,‘किस्मत’,‘दो कलियां’,‘फिर कब मिलोगी’ जैसी यादगार फिल्में दर्ज हैं. बिश्वजीत की लोकप्रियता को इस तथ्य से भी मापा जा सकता है कि उस दौर की शीर्ष अदाकाराओं, मसलन, वहीदा रहमान, माला सिन्हा,आशा पारेख सबके साथ उन्होंने काम किया.

कहा जाता है, बिश्वजीत का रंग इतना गोरा था कि हीरोइन को ईष्र्या हो जाये. फिल्म के मेकअप मैन को इस बात का खास ख्याल रखना पड़ता था कि उनकी रंगत हीरोइन से ज्यादा न दिखे. बिश्वजीत इस मामले में भी धनी रहे कि उन पर फिल्माये गये कई गीत सदाबहार गीतों में शुमार हैं. ‘पुकारता चला हूं मैं’,‘कहीं करती होगी वो मेरा इंतजार’ और ‘तुम्हारी नजर क्यों खफा हो गयी’ जैसे गीत इसकी मिसाल हैं. हेमंत कुमार ही नहीं, मुकेश और मोहम्मद रफी की आवाज भी उन पर खूब फबी. अभिनय में सफलता के बाद बिश्वजीत ने कुछ बांग्ला फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया. ऐसी ही एक कोशिन उन्होंने ‘कहते हैं मुझको राजा’ नाम से फिल्म बनाकर की. लेकिन, धर्मेद्र, हेमा मालिनी, रेखा और खुद बिश्वजीत अभिनीत इस फिल्म ने उन्हें बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया. उन्होंने ‘राहगीर’ के जरिये संभलने की कोशिश की. यह फिल्म राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड के लिए नोमिनेट भी हुई, लेकिन उन्हें आर्थिक मजबूती नहीं दे सकी.

इस दौरान वह कोलकाता लौटे, कुछ डाक्यूमेंट्री फिल्में भी बनायीं, लेकिन फिर मुंबई लौट आये. हालांकि कोलकाता से उनका जुड़ाव अब भी कायम है. 14 दिसंबर 1936 को कोलकाता में जन्मे बिश्वजीत परिवार के विरोध के बावजूद फिल्मों में आये थे. अभिनय में उन्होंने एक मुकाम भी हासिल किया. आज बिश्वजीत कहां हैं, यह जिज्ञासा आगे बढ़ी, तो जाना वह मुंबई में ही रहते हैं. दिलचस्प यह जानना रहा कि वह खुद पर फिल्माये गये गीतों को बहुत ही खूबसूरती से गा लेते हैं. मौजूदा सिनेमाई दुनिया से दूर, विगत के अभिनेता की पहचान लिए उन्होंने नीदरलैंड जैसे देशों में आरक्रेस्टा टीम के साथ लाइव कंसर्ट किये हैं. बंगाल की जमीन से जुड़े होने के कारण उनमें गायन प्रतिभा का होना स्वाभाविक है. इसलिए बिश्वजीत को जब ‘मोहम्मद रफी अवार्ड’ से नवाजा जाता है, तो वह रफी साहब का गीत गाकर उन्हें याद करते हैं.

लेकिन हैरानी हुई कि बॉलीवुड हंड्रेड ईयर्स की धूम में हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर के साक्षी रहे इस अभिनेता से न किसी चैनल, न ही पत्र-पत्रिका में कोई बातचीत दिखी. पर हर साल धूम-धाम से दुर्गा पूजा आयोजित करनेवाले इस अभिनेता ने इस मौके पर अपने तरीके से सिनेमा के सौ साल को याद किया, जिसकी एक छोटी सी झलक एक बांग्ला चैनल पर देखने को मिली थी. कम लोग जानते होंगे कि बिश्वजीत बांग्ला फिल्मों के मशहूर अभिनेता प्रसन्नजीत के पिता हैं. लेकिन इस रिश्ते में तीन दशक पहले बनी दूरी बरकरार है. फिलहाल बिश्वजीत अपनी दूसरी पत्नी और बेटी के साथ मुंबई में ही रहते हैं. दादा साहेब फालके अवार्ड और मोहम्मद रफी साहब से जुड़े कार्यक्रमों में उनकी एकाध झलक जब-तब मिल जाती है. खास बात यह है कि वे आज भी कल वाले बिश्वजीत की मुस्कान के साथ लोगों से रूबरू होते हैं.
!!प्रीति सिंह परिहार!!

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