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”व्हाट्सएप” वाले साधुबाबा

कमाल है! -साधु. यह नाम लेते ही मन में गेरुआ वस्त्र पहने, दाढ़ी-मूछ और बाल बढ़ाये उस आध्यात्मिक शख्स का ख्याल आता है, जो रात-दिन हरि भजन में लीन होता है. वैसे यह साधु की परिभाषा नहीं है लेकिन हम उन्हें ऐसे ही देखते आये हैं. बहरहाल, सूचना और तकनीक के इस जमाने में अब […]

कमाल है!

-साधु. यह नाम लेते ही मन में गेरुआ वस्त्र पहने, दाढ़ी-मूछ और बाल बढ़ाये उस आध्यात्मिक शख्स का ख्याल आता है, जो रात-दिन हरि भजन में लीन होता है. वैसे यह साधु की परिभाषा नहीं है लेकिन हम उन्हें ऐसे ही देखते आये हैं. बहरहाल, सूचना और तकनीक के इस जमाने में अब टेक सैव्वी होकर अपने भक्तों को फेसबुक और व्हाट्सएप पर दर्शन देने लगे हैं.

सेंट्रल डेस्क

इलाहाबाद में इन दिनों चल रहे माघ मेले में संगम तट ठंड और कोहरे के आगोश में है. देश भर से आये साधुओं की गहमागहमी के बीच भक्ति और अध्यात्म की यह अविरल धारा यूं तो हर साल सदियों से बहती आ रही है, और समय के साथ इसकी फिजाओं में थोड़ा-बहुत बदलाव होता रहता है लेकिन इस बार एक अनोखा और दिलचस्प बदलाव देखने को मिल रहा है. यह बदलाव तकनीक से जुड़ा है.

आम तौर पर हम जिन साधुओं के हाथों में कमंडल और धार्मिक ग्रंथ देखते हैं, इलाहाबाद के संगम तट पर उनके हाथों में स्मार्टफोन नजर आ रहे हैं. अब आप पूछेंगे कि दुनिया के सारे सुख-साधन त्याग कर वैराग्य का दामन थाम लेनेवाले और जनसाधारण को धर्म-कर्म की सीख देनेवाले इन साधु बाबाओं को भला स्मार्टफोन की लत कैसे लग गयी, तो भई इनके हाथों में यह स्मार्टफोन उनका शौक नहीं बल्कि जरूरत बन चुका है.

45 दिनों तक चलनेवाले इस माघ मेले को छोटा कुंभ भी कहते हैं. विशिष्ट तिथियों को संगम में डुबकी लगाने का बड़ा महात्म्य है. इस बार पांच जनवरी (पौष पूर्णिमा) और 15 जनवरी (मकर संक्रांति) से शुरू हुआ यह मेला 20 जनवरी (मौनी अमावस्या), 24 जनवरी (बसंत पंचमी), 30 जनवरी (माघी पूर्णिमा) से होते हुए 17 फरवरी (महा शिवरात्रि) को खत्म होगा. इसके लिए दूर-दूर से आये साधु-संन्यासियों के अलावा आम लोगों का भी जमावड़ा लगा हुआ है.

अंगरेजी वेबसाइट रेडिफ डॉट कॉम पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, संगम तट पर पहुंचे कई साधु बाबा हाथों में स्मार्टफोन लेकर फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिये अपने भक्तों और अनुयायियों को ‘डायरेक्ट दर्शन’ दे कर उनके सीधे संपर्क में बने हुए हैं. कई बाबा तो दिन के सोलह-सोलह घंटे अपने स्मार्टफोन पर उंगलियां फेरते बिता दे रहे हैं. उनका मानना है कि इस नयी तकनीक ने देश-विदेश में बसे उनके ज्यादा से ज्यादा अनुयायियों तक उनकी पहुंच आसान बना डाली है. और वे बिना कोई देर किये उनकी समस्याओं का समाधान कर पाते हैं.

तकनीक की इस रेस में अन्य साधुओं से नगा साधुओं का समूह आगे है. इनका दिन-दोपहर फेसबुक के लाइक्स और व्हाट्सएप के जवाब देते ही बीत रहा है. पूछने पर कुछ का कहना है कि व्हाट्सएप के जरिये हमें अपने विचार और संदेश ज्यादा से ज्यादा अनुयायियों तक पहुंचाने में आसानी हो रही है. जबकि कुछ साधुओं का कहना है कि वे सोशल नेटवर्किग के अन्य मंचों, मसलन फेसबुक, ट्विटर और हाइक पर भी एक्टिव हैं.

मेले में शिरकत करने आये नगा बाबा दुर्गेश्वरी गिरी इस बारे में कहते हैं, आखिरकार हम भी तेजी से बदल रहे इस समाज का हिस्सा हैं. इसलिए मेरे या मेरे शिष्यों के व्हाट्सएप सैव्वी होने में मुङो कोई बुराई नजर नहीं आती. दिन के 16 घंटे ‘सोशली एक्टिव’ रहनेवाले यह बाब आगे कहते हैं, समाज में एक नयी क्रांति लानेवाले इन तकनीकी साधनों को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. इससे हमारा कीमती समय बचता है.

वहीं, इस मेले में रामचरित मानस पर प्रवचन देने हरिद्वार से आये स्वामी प्रणवपुरी अंशुमनजी महाराज अपने कार्यक्रमों की जानकारी व्हाट्सएप के जरिये देते हैं. वह कहते हैं, व्हाट्सएप ने दुनियाभर के मेरे अनुयायियों को आसानी से जोड़ा है. इसके जरिये मैं उनकी समस्याएं आसानी से सुन सकता हूं और उनके सवालों के जवाब दे सकता हूं.

आचार्य बालयोगी महाराज भी इस ‘इंस्टैंट मैसेजिंग’ पंच के मुरीद हो गये हैं. उन्होंने तो व्हाट्सएप के जरिये अपने अनुयायियों से जुड़ने का बाकायदा समय तय कर रखा है. उनके एक सहयोगी का कहना है कि महाराज जी सुबह आठ से 10 और रात 10 से 11 बजे तक अपने अनुयायियों के सवालों का जवाब देते हैं.

कुल मिला कर हम यह कह सकते हैं कि हलाहाबाद के संगम तट पर आयोजित इस बार का छोटा कुंभ, तकनीकी रूप से ही सही, साधु-संन्यासियों की टेक -सैव्वी छवि पेश कर रहा है.

(इनपुट : रेडिफ)

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