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समाज और राजनीति के रिश्तों का संधान

अभय कुमार दुबे राजनीतिशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वान रजनी कोठारी के जीवन और कृतित्व के बारे में जाने बिना भारतीय राजनीति और समाज के आपसी रिश्तों के बारे जानना नामुमकिन है. इस लिहाज से उनका विमर्श भारतीय राजनीति की एक पूरी किताब की तरह है, जिसे पढ़ना हर समझदार व्यक्ति के लिए अनिवार्य है. 1969 में […]

अभय कुमार दुबे

राजनीतिशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वान रजनी कोठारी के जीवन और कृतित्व के बारे में जाने बिना भारतीय राजनीति और समाज के आपसी रिश्तों के बारे जानना नामुमकिन है. इस लिहाज से उनका विमर्श भारतीय राजनीति की एक पूरी किताब की तरह है, जिसे पढ़ना हर समझदार व्यक्ति के लिए अनिवार्य है. 1969 में प्रकाशित अपनी सबसे मशहूर रचना ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में उन्होंने दावा किया था कि भारतीय समाज के संदर्भ में राजनीतीकरण का मतलब है आधुनिकीकरण. यानी जो राजनीति को नहीं समङोगा वह भारत जैसे अ-सेकुलर समाज में परिवर्तन की प्रक्रि या को समझने से वंचित रह जायेगा.

रजनी कोठारी के विमर्श की विशेषता यह है कि उनके पास इन भारतीय राजनीति के प्रचलित सवालों के आश्वस्तकारी जवाब हैं. वे जिन सवालों के उत्तर देते हैं, उनका एक जायजा लेने से समझ में आ सकता है कि उनका विमर्श कितना व्यापक और विविध है. मसलन, पता नहीं राजनीति से जातिवाद कब खत्म होगा? यह हिंदुत्व की धार्मिक राजनीति कहां से टपक पड़ी? सांप्रदायिकता का इलाज कौन करेगा? राजनीति में अचानक यह दलितों और पिछड़ों का उभार कहां से हो गया? पता नहीं भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए सरकारें और नेता कोई संस्थागत प्रयास यों नहीं करते? हमारे राजनेता इतने पाखंडी क्यों होते हैं? पता नहीं हमारा लोकतंत्र पश्चिम के समृद्ध लोकतंत्रों जैसा यों नहीं होता? एक बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश में केंद्रीकृत राष्ट्रवाद का भविष्य क्या है? ऐसा यों है कि हमारा राज्य ‘कठोर’ बनते-बनते अंतरराष्ट्रीय ताकतों के सामने पोला साबित हो जाता है? जो लोग विकल्प की बातें करते थे वे व्यवस्था के अंग कैसे बन जाते हैं? छोटे-छोटे स्तर के आंदोलनों का क्या महत्व है? ये आंदोलन बड़े पैमाने पर अपना असर क्यों नहीं डाल पाते? हम परंपरावादी हैं या आधुनिक? भारतीय बहुलतावाद आधुनिकीकरण में बाधक है या मददगार?

इतने उद्योगीकरण के बाद भी गरीबी क्यों बढ़ती जा रही है? किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत क्यों नहीं मिलता? पहले कैसे मिल जाता था? कांग्रेस ने जो जगह छोड़ी है, वह कोई पार्टी क्यों नहीं भर पाती? वामपंथियों का ऐसा हश्र क्यों हुआ? नया समाज क्यों नहीं बनता? यह भूमंडलीकरण क्या बला है? कोठारी कुशलता और गहनता से से इन सवालों के जवाब देते हैं. इससे कोई फर्कनहीं पड़ता कि पढ़ने वाला एक आम आदमी है या समाज-विज्ञान का कोई विशेषज्ञ. कोठारी के पास दोनों तरह की शब्दावली है. उनके वा्मय में नैरंतर्य के सूत्र तो हैं ही, साथ ही उन विच्छिन्नताओं की शिनाख्त भी की गयी है जिनके बिना निरंतरता की द्वंद्वात्मक उपस्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती.

हालाकि प्रोफेसर कोठारी प्रचुर लेखक थे, पर उन्हें उनकी महान रचना ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया’ (भारत में राजनीति: कल और आज) के लिए खास तौर से जाना जाता है. साठ के दशक के अंत में छपी इस पुस्तक के बीसियों संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थियों की कई पीढ़ियां इसी के अध्ययन की खुराक पर पली हैं. उन्होंने भारतीय राजनीति पर मौलिक चिंतन किया और ‘कांग्रेस प्रणाली’ और ‘जातियों का राजनीतिकरण’ जैसे सिद्धांत दिये जिनके आईने में हमारे लोकतंत्र का अनूठा चेहरा परिभाषित किया जा सका. साठ के दशक में कोठारी के ही प्रयासों से भारत में चुनाव-अध्ययन और सर्वेक्षणों की शुरु आत हुई. मार्क्‍सवादियों और गांधीवादियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय प्रोफेसर कोठारी विद्वान होने के साथ-साथ कुशल संस्था-निर्माता भी थे. स्वतंत्र भारत में समाज-विज्ञान अनुसंधान का ढांचा खड़ा करने में उनकी उल्लेखनीय भूमिका थी. उन्होंने सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डिवेलपिंग सोसाइटीज (विकासशील समाज अध्ययन पीठ) की स्थापना की जो आज देश का प्रमुख शोध संस्थान है. अस्सी के दशक में वे पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और नब्बे के दशक में योजना आयोग के सदस्य की भूमिका भी निभायी.

लेखक विकासशील समाज अध्ययन पीठ में भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक हैं.

विचारक व लेखक

रजनी कोठरी का निधन

नयी दिल्ली. प्रख्यात राजनीति विज्ञानी और लेखक रजनी कोठरी का सोमवार सुबह दिल्ली में निधन हो गया. सुबह लगभग 10 बजे अपने घर पर अंतिम सांस ली. वह 86 साल के थे. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) से जुड़े प्रवीण राय ने बताया, ‘रजनी कोठरी लंबे समय से बीमार थे. सोमवार की सुबह लगभग 10 बजे पटपड़गंज एक्सटेंशन स्थित अपने घर पर अंतिम सांस ली.’ सीएसडीएस की स्थापना कोठरी ने ही की थी.

राय के अनुसार, कोठरी का अंतिम संस्कार मंगलवार को होगा, क्योंकि उनके दोनों बेटे (मिलोन, आशीष) दिल्ली में नहीं हैं. कोठरी की पत्नी का पहले ही निधन हो गया था. 16 अगस्त, 1928 को जन्मे कोठरी ने 1963 में दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी की स्थापना की थी, जो आज समाज और राजनीति से जुड़े तमाम मुद्दों पर शोध और सक्रि यता की एक बड़ी संस्था मानी जाती है.

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