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सेंट्रल डेस्क आर्थिक रूप से विपन्न परिवार में जन्मे सालियह् के परिवार के लिए उनकी दृष्टिहीनता कोई नयी बात नहीं थी. उनके पिता और दो बहनें भी इस स्थिति से गुजर चुके थे. लेकिन इन परिस्थितियों से लड़ कर उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी है.वर्ल्‍ड चेस फेडरेशन की अंतरराष्ट्रीय एफआइडीइ रेटिंग […]

सेंट्रल डेस्क
आर्थिक रूप से विपन्न परिवार में जन्मे सालियह् के परिवार के लिए उनकी दृष्टिहीनता कोई नयी बात नहीं थी. उनके पिता और दो बहनें भी इस स्थिति से गुजर चुके थे. लेकिन इन परिस्थितियों से लड़ कर उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी है.वर्ल्‍ड चेस फेडरेशन की अंतरराष्ट्रीय एफआइडीइ रेटिंग में उनका स्कोर 1463 है. भारत में वह ‘ए’ सूची के खिलाड़ी हैं और उनका रैंक चौथा है.
सालियह् ने दृष्टिहीन वर्ग में खेली गयी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई शतरंज प्रतियोगिताओं में अनेक पदक और ट्रॉफियां जीती हैं, साथ ही वह 100 प्रतिशत दृष्टि वाले शतरंज के दस स्थापित खिलाड़ियों को एक साथ हराने की काबिलीयत विकसित कर चुके हैं. अपने परिवार के लिए जीविका कमानेवाले एकमात्र सदस्य सालियह् फिलहाल कानून की पढ़ाई कर रहे हैं.
अपनी नि:शक्तता और गरीबी की वजह से उन्होंने नौ साल की उम्र तक स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था. बाद में छठी कक्षा तक की पढ़ाई उन्होंने दृष्टिहीनों के लिए बने विशेष स्कूल से की और उसके बाद की पढ़ाई के लिए सामान्य स्कूल में दाखिला लिया.
शतरंज खेलने का सालियह् का तरीका भी कम हैरत भरा नहीं है. सामनेवाली की हर चाल और बिसात पर बिछे मोहरों की बदली गयी जगह को वह अपने मन में किसी तसवीर की तरह उकेर लेते हैं. हर चाल के बाद यह तसवीर बदलती है और उसके आधार पर वह अपनी चाल चलते हैं. इस बारे में वह बताते हैं, मैं शतरंज के बोर्ड को याद कर लेता हूं. विपक्षी खिलाड़ी अपनी चाल चल कर उसे घोषित करता है और मैं बोर्ड के मोहरों की स्थिति को महसूस करता हूं.
लाजवाब याददाश्त के मालिक होने के बावजूद सालियह् को रोजी-रोटी कमाने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. अपनी नि:शक्तता की वजह से एक स्थायी रोजगार से महरूम सालियह् छोटे बच्चों को शतरंज खेलने का प्रशिक्षण देकर अपने और अपने परिवार का खर्च चलाते हैं. वह कहते हैं, मैं एक अकादमी खोल कर ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शतरंज खेलना सिखाना चाहता हूं. साथ ही, बच्चों को याददाश्त तेज करने के तरीके भी सिखाना चाहता हूं. लेकिन यह मुझ अकेले के बस की बात नहीं है. इसके लिए मुङो एक सहायक की जरूरत होगी, जिसके लिए पैसे चाहिए होंगे. वैसे इस काम के लिए ‘लेट्स वेंचर’ और ‘मिलाप’ जैसे संगठन आगे आये हैं, जिनकी मदद से सालियह् अपनी आकादमी के लिए पैसे जुटाने में लगे हैं.
शादीशुदा और एक बच्चे के पिता सालियह् शतरंज का और चुनौतीपूर्ण खेल खेलना चाहते हैं. साथ ही उनकी इच्छा है कि वह बड़े मंच पर प्रदर्शन करें, ताकि उनकी वास्तविक क्षमता को दुनिया देखे, जाने, समङो. वह कहते हैं, दुनिया को दिखा देना चाहता हूं कि मैं किसी से कम नहीं. आप मुङो कोई काम सिखाएं और मैं उसे ठीक उसी तरह कर सकता हूं, जितना आंखोंवाला कोई आम इनसान कर सकता है.
केरल में रहनेवाले शतरंज के अनोखे खिलाड़ी सालियह् एक दिन विश्वनाथन आनंद के साथ खेलने की तमन्ना रखते हैं. उन्होंने अपनी नि:शक्तता को कभी भी अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने दिया. इसकी जगह उन्होंने एक चुनौती के तौर पर स्वीकार किया और खुद के लिए एक अलग पहचान बनायी. उनके दोस्तों का कहना है कि वह एक निडर इनसान है. वह अकेला सफर करता है. हर जगह जाता है और हर काम अच्छे से करता है, औरों से बेहतर!

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