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पैरों से लाचार, पर 11 देशों की यात्रा

46 साल की परविंदर चावला को स्कूल के दिनों में ही गठिया ने ऐसा जकड़ा कि वह दोबारा अपने पैरों पर कभी खड़ी नहीं हो पायीं. लेकिन खेलने-कूदने और घूमने-फिरने की शौकीन परविंदर के हौसलों को उनकी यह बीमारी पस्त नहीं कर पायी. अपने देश के साथ-साथ परविंदर अब तक 11 देशों की सैर कर […]

46 साल की परविंदर चावला को स्कूल के दिनों में ही गठिया ने ऐसा जकड़ा कि वह दोबारा अपने पैरों पर कभी खड़ी नहीं हो पायीं. लेकिन खेलने-कूदने और घूमने-फिरने की शौकीन परविंदर के हौसलों को उनकी यह बीमारी पस्त नहीं कर पायी. अपने देश के साथ-साथ परविंदर अब तक 11 देशों की सैर कर चुकी हैं. कई बार तो बिना किसी सहायक के.

सेंट्रल डेस्क

व्हीलचेयर पर चलनेवाली परविंदर चावला ट्रैवल राइटर हैं. यह उनके लिए पेशे से बढ़ कर शौक है. इसकी शुरुआत 14 साल पहले हुई, जब उन्होंने अपने एक ऑनलाइन दोस्त से मिलने के लिए लंदन की उड़ान भरी थी. लोगों की नजर में यह उनका एक दुस्साहसिक फैसला था. लेकिन आज जब वह पीछे मुड़ कर देखती हैं, तो पाती हैं कि वर्ष 2000 के आसपास लंदन की उनकी इस उड़ान ने उन्हें नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया.

रुमैटॉइड आर्थराइटिस (एक तरह का गठिया) ने जब परविंदर के घुटनों पर असर करना शुरू किया था, तब वह 10वीं में थीं. अपने स्कूल के लिए तैराकी, स्केटिंग, क्रिकेट, साइक्लिंग और ट्रेकिंग जैसे खेलों की विभिन्न प्रतियोगिताओं में मेडल जीत चुकी परविंदर के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था कि उन्हें बाकी जिंदगी व्हीलचेयर पर ही गुजारनी पड़ेगी.

पंजाब में जन्मी और मुंबई में पली-बढ़ी परविंदर उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं : वह मेरी जिंदगी का सबसे कड़वा अनुभव था. स्कूल में इस बीमारी ने मुङो जकड़ना शुरू किया और कॉलेज खत्म होते-होते मेरे लिए अपने घुटने मोड़ना भी असंभव हो चुका था. मुङो इलाज के लिए बार-बार पुणो जाना पड़ता था. इस दौरान मैंने असहनीय दर्द के बावजूद दवाओं से दूरी यह सोच कर बनाये रखी कि इनसे मेरे शरीर पर बुरा असर पड़ेगा. यह एक बड़ी गलती थी. लेकिन जब बीमारी बरदाश्त से बाहर हो गयी, तब मुङो दवाओं का सहारा लेना पड़ा.

परविंदर कहती हैं : 25 साल की उम्र में मुङो व्हीलचेयर थामनी पड़ी. हालांकि मेरे नाते-रिश्तेदार मेरे व्हीलचेयर पर बैठने के खिलाफ थे और उनका मानना था कि मुङो अपने पैरों पर चलने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन मेरे शरीर पर क्या बीत रही है, यह तो मैं ही जानती थी. इसलिए मैंने चलने की कोशिश करने के बजाय अपनी ऊर्जा कैरियर संवारने में लगाना बेहतर समझा.

इस दौरान परविंदर ने रिसेप्शनिस्ट से लेकर ग्राफिक डिजाइनर और कॉल सेंटर तक की नौकरियां कीं. लेकिन उनकी राहें आसान नहीं थीं.

वह बताती हैं- कई जगह तो लोग मुङो नौकरी देने से कतराते थे और कई जगह मुङो ऐसे काम मिलते थे जिनके लिए मेरी नि:शक्तता बाधा थी. लेकिन आज परविंदर चावला पेशे से ट्रैवल रिव्यूअर और कैटरर हैं. फिलवक्त वह ट्रैवल पोर्टल ‘हॉलिडे आइक्यू’ के साथ काम कर रहीं हैं. इससे पहले भी उन्होंने कई ट्रैवल पोर्टल्स के लिए काम किया है. देश-विदेश के पर्यटन स्थलों की समीक्षा करनेवाली परविंदर बताती हैं कि उन्हें उनका साथी शादी डॉट कॉम पर मिला था, जिसके साथ दोस्ती बढ़ने पर उन्होंने देश-दुनिया की सैर की और इस तरह उनकी आंखें खुलीं. परविंदर कहती हैं कि तब मुङो लगा कि अपने पासपोर्ट पर दुनिया के हर देश का वीजा लगवाना है.

बकौल परविंदर, पहले तो मैं उन्हीं जगहों की यात्रा करती थी, जहां मेरी जान-पहचानवाले रहते हों. ताकि उनके साथ घूमने-फिरने में मुङो सहूलियत हो, खास कर मेरी व्हीलचेयर को धक्का देने के लिए. इसके अलावा, मुङो किसी न किसी पर आश्रित होना पड़ता था. 2005 में वह अपनी मेड के साथ ऑस्ट्रेलिया गयीं. 2008 में परविंदर को किसी ने ऑटोमैटिक व्हीलचेयर गिफ्ट की. इसके बाद तो जैसे उनके सपनों को पंख ही लग गये. तब उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं रही. वह कहती हैं, नयी व्हीलचेयर मिलने के बाद मैंने पहली बार मलयेशिया और बाली की यात्र की और वह भी अकेले!

अब तक अमेरिका, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, थाइलैंड और यूरोप सहित 11 देशों की सैर कर चुकी परविंदर हाल ही में बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्र से लौटी हैं. वह कहती हैं, अब मुङो किसी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं रही. अब मैं अपने सफर पर अकेले निकल पड़ती हूं. बहरहाल, परविंदर यह भी मानती हैं कि उनकी कुछ सीमाएं भी हैं, लेकिन वह कहती हैं कि मैं वह सब कुछ कर लेना चाहती हूं, जो मेरे लिए मुमकिन है. इन दिनों मिस्र की यात्रा की योजना बना रही परविंदर चावला के हौसलों के आगे नामुमकिन शब्द बहुत छोटा पड़ गया है.

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