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ब्राजील में बदलाव की बेचैनी

।। रहीस सिंह/ विदेश मामलों के जानकार ।। – ब्राजील को कई अर्थो में भारत का जुड़वां भाई माना जाता है. भारत और ब्राजील में समानता के तत्व इस मायने में खोजे जा सकते हैं कि दोनों दक्षिण गोलार्ध की अहम अर्थव्यवस्थाएं हैं और तेजी से उभरती नयी विश्व व्यवस्था में अपना दखल रखते हैं. […]

।। रहीस सिंह/ विदेश मामलों के जानकार ।।
– ब्राजील को कई अर्थो में भारत का जुड़वां भाई माना जाता है. भारत और ब्राजील में समानता के तत्व इस मायने में खोजे जा सकते हैं कि दोनों दक्षिण गोलार्ध की अहम अर्थव्यवस्थाएं हैं और तेजी से उभरती नयी विश्व व्यवस्था में अपना दखल रखते हैं. भारत और ब्राजील नयी सदी को नयी दिशा देने में सक्षम ब्रिक्स संगठन के सदस्य तो हैं ही, वे अब जी-8 जैसे सम्मेलनों में भी प्रतिष्ठा की कुर्सी हासिल कर रहे हैं. दोनों देशों में समानता का एक धागा खेल के प्रति यहां की जनता की दीवानगी के कारण भी जुड़ता है. भारत की जनता अगर क्रिकेट की दीवानी है, तो ब्राजील की फुटबॉल की. दोनों देशों में समानता का एक और तत्व इस साल जून महीने में तब जुड़ गया, जब ब्राजील की जनता भी व्यवस्था में बदलाव के लिए सड़कों पर उतर आयी. ब्राजील में चल रहे जन प्रदर्शनों के कारणों और लक्ष्यों को समेटता आज का नॉलेज.. –

वैश्विक कंसलटेंसी फर्म गोल्डमैन सैक्स ने अपने अर्थविदों और जिम ओ नील, पाउलो लेमे, सैंड्रा लॉसन, वारेन पियर्सन और कुछ क्षेत्रीय अर्थशास्त्रियों के सहयोग से जब से ‘ड्रीमिंग विद ब्रिक्स : द पाथ टू 2050’ को पेश किया, ब्राजील दुनिया की अर्थव्यवस्था में एक नये किरदार के रूप में आ गया. दुनिया की अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि कूटनीति भी काफी कुछ उसके सापेक्ष घूमने लगी. फीफा वर्ल्‍ड कप और ओलंपिक का आयोजन ब्राजील में सुनिश्चित होना ही यह साबित करता है कि ब्राजील चीन के बाद ब्रिक्स में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस मामले में वह बहुत हद तक भारत से आगे भी है. लेकिन जून, 2013 ब्राजील के लिए बेहद हलचलों वाला रहा है. वहां किराया वृद्धि के खिलाफ साओ पाउलो, ब्राजीलिया और रियो डि जेनेरियो में जो आंदोलन हुए, उससे यह यह स्पष्ट हो गया है कि ब्राजील के विकास मॉडल के केंद्र में आम जनता नहीं थी.

* हलचलों भरा लैटिन अमेरिका
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में दुनिया के प्रवेश करने के कुछ समय बाद से ही लैटिन अमेरिकी देशों में पूंजीवादी वर्चस्व के खिलाफ तीव्र प्रतिक्रिया हुई. ब्राजील भी इससे अछूता नहीं रहा, लेकिन 1992 में जो प्रतिक्रिया हुई थी उसकी पुनरावृत्ति से वह बचा रहा. शेष देश बड़े पैमाने पर आंदोलनों से गुजरे विशेषकर बोलीविया, पेरू, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला और मैक्सिको आदि. लैटिन अमेरिकी देशों में होनेवाले जनआंदोलनों में वहां के मूल वाशिंदे सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं. इन जनांदोलनों ने कोलंबिया, वेनेजुएला और ग्वाटेमाला में एक बड़ा परिवर्तन किया.

ब्राजील भी इससे अछूता नहीं रहा, इसलिए लू ला डिसिल्वा ने ब्राजील को समाजवादी रास्ते पर डालते हुए आगे बढ़ाया, लेकिन आज के दौर का समाजवाद परिवर्तित समाजवाद है जिसमें पूंजीवाद के लक्षण अधिक हैं. यानी वह राज्यव्यवस्था के बाहरी स्वरूप को समाजवादी रूप दिये रहता है, लेकिन उसकी व्यावहारिक प्रकृति जनता के हित में तो नहीं होती है. परिणाम यह होता है कि जनता जब भूख, बेरोजगारी से गुजरती है और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होती है अथवा जब उसका भविष्य अनश्चित होता है तब आंदोलन के लिए तैयार हो जाती है. यही ब्राजील में हुआ.

* किराये से व्यवस्था परिवर्तन तक
ब्राजील में आंदोलन तो किराया बढ़ाने संबंधी सरकार के निर्णय के खिलाफ शुरू हुआ, लेकिन सरकार के किराया वापस लेने के फैसले के बाद भी साओ पाउलो या ब्राजीलिया में हजारों लोग सड़कों पर हैं. इसका असल कारण रियो डि जेनेरियो के उपनगर निटेरोई की एक छात्र ने कुछ इस प्रकार बताया, ‘दरअसल अब यह आंदोलन किराये (परिवहन के) के बारे में नहीं रह गया है. लोग इस देश की व्यवस्था से इतने नाराज हैं, इतने उकता गए हैं कि अब बदलाव चाहते हैं.’

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उल्लेखनीय है कि यह आंदोलन वर्ष 1992 के बाद अब तक के सबसे विरोध प्रदर्शन हैं इसलिए इन्हें केवल किराया वृद्धि के विरोध तक सीमित रखना उचित नहीं लगता. उस समय ब्राजील में आंदोलन तत्कालीन राष्ट्रपति फर्नांडो कोलोर डे मेलो पर महाभियोग की मांग के समर्थन में हुआ था और लाखों लोग सड़कों पर उतर आये थे.

आज लोग सरकार के खिलाफ किराया वृद्धि के बहाने अपारदर्शिता, भ्रष्टाचार और प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर हैं. हालांकि कई दिनों से जारी सरकार विरोधी प्रदर्शन रोकने की एक और कोशिश करते हुए राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ ने कई सुधार कार्यक्रमों की घोषणा की है, लेकिन अभी इसका असर पड़ता नहीं दिख रहा है. उन्होंने टीवी पर अपने संबोधन में यह बताने का प्रयास किया है कि सार्वजनिक परिवहन के लिए नयी योजनाएं बनायी जायेंगी और तेल की सारी रॉयल्टी का इस्तेमाल शिक्षा के लिए किया जायेगा. उन्होंने यह भी दावा किया कि देश की स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के लिए विदेशों से हजारों डॉक्टरों की भर्ती की जायेगी.

राष्ट्रपति रोसेफ ने इसके जरिये भले ही समझौतावादी दावं खेला हो और भले ही यह कह कर लोगों को विश्वास में लेना चाहा हो कि ‘मैं चाहती हूं कि संस्थाएं ज्यादा पारदर्शी बनें और गलत बातों को ज्यादा से ज्यादा रोकें’, लेकिन दस लाख से ज्यादा लोग सड़कों पर मौजूद हैं और यह संदेश दे रहे हैं कि वे राष्ट्रपति के दावों और घोषणाओं पर विश्वास नहीं करते. उन्हें देख कर बरबस ही ट्यूनीशिया, मिस्र का तहरीर चौक और तुर्की की तकसीम चौक की पुनरावृत्ति का आभास होने लगता है.

* फुटबॉल वर्ल्ड कप के प्रति गुस्सा
दरअसल फुटबॉल विश्वकप पर भारी खर्च को लेकर भी प्रदर्शनकारियों में गुस्सा है और उनका गुस्सा बहुत हद तक जायज भी है. भले ही सरकार के लोग और अर्थशास्त्री उसे जायज न मानें.

कुछ अध्ययनों और रिपोटरें पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि रियो के समीप कांफेडेरेशन कप और वर्ल्‍ड कप खेलने के लिए मैराकना स्टेडियम का निर्माण हो रहा है, जिसे आप ब्राजील की समृद्धि का परिचायक मान सकते हैं, जो आज के पूंजीवाद की विशेषताओं में से एक है. लेकिन वहीं दूसरी तरफ उसी स्टेडियम के करीब 40,000 से अधिक ऐसे लोग भी हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं और उनके पास जीवन की मूलभूत सुविधाओं को प्राप्त करने का कोई साधन नहीं है.

इन वंचितों को स्टेडियम की कृत्रिम समृद्धि से क्या हासिल होने वाला है! ब्राजील दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन इसमें सबसे अधिक असंतुलित सामाजिक विभाजन भी विद्यमान हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि यह विशेषता केवल केवल ब्राजील में ही नहीं बल्कि लैटिन अमेरिका सहित दुनिया की तमाम उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद है, जो लोगों में आक्रोश को भड़काने के लिए काफी है.

* देश में भारी आर्थिक असंतुलन
ब्राजील के आर्थिक विभाजन पर गौर करें तो पता चलता है कि है कि यहां के 1 प्रतिशत अमीरों (20 लाख लोगों) के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 13 प्रतिशत हिस्सा है वहीं दूसरी तरफ 50 प्रतिशत गरीबों (आठ करोड़ लोगों) के पास भी राष्ट्रीय संपत्ति का इतना ही भाग है. यह खाई हो सकता है और भी चौड़ी हो, क्योंकि राज्य नियंत्रित व्यवस्थाएं बहुत सारी चीजें बाहर नहीं आने देतीं, लेकिन समय आने पर प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करती हैं.

इस सयम ब्राजील के अनेक अरबपति विश्व कप स्टेडियम और ओलिंपिक परियोजनाओं पर धुंआधार खर्च कर रहे हैं, लेकिन गरीबों पर खर्चे के लिए धनराशि नहीं है, जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानता तो बढ़ेगी ही, साथ ही आक्रोश भी बढ़ेगा. एक कम्युनिटी नेता अलेक्जेंडर लोपेस सिलवा का इस संदर्भ में स्पष्ट कहना है कि कि विश्व कप की लीगेसी एक मजाक है.

व्यक्तिगत तौर पर मैं शर्मसार महसूस करता हूं. राज्य लाखों लोगों की जेब काट रहा है और गरीबों का इससे कोई भला नहीं होना है. हालांकि हाल के ही एक सर्वे में अर्नेस्ट एवं यंग का अनुमान है कि वर्ल्‍ड कप के कारण 36 लाख रोजगार पैदा होने चाहिए और 2016 के ओलंपिक से ब्राजील की जीडीपी में 0.4 प्रतिशत की वृद्धि होनी चाहिए. यह एक पक्ष है, जिसे स्वीकार भी किया जा सकता है और नहीं भी. लेकिन असल पक्ष यह है कि ब्राजील की जनसंख्या का पांचवा हिस्सा, जो गरीबी रेखा के नीचे रह रहा है, क्या उसे इससे कुछ हासिल होनेवाला है? ब्राजील का आंदोलन इसी प्रश्न का उत्तर मांग भी रहा है और तलाश भी रहा है.

– टाइमलाइन
– ब्राजील में आम जनता का विरोध प्रदर्शन जून के पहले हफ्ते से शुरू हुआ. 1 से 14 जून बीच साओ पाउलो में बस और मेट्रो किराये के विरोध में यह प्रदर्शन शुरू हुआ. –

* 6 जून को पहला बड़ा प्रदर्शन पॉलिस्टा एवेन्यू में हुआ.
* 17 जून को विभिन्न शहरों में करीब ढाई लाख लोग सड़कों पर उतरे. सबसे बड़ा प्रदर्शन रियो डि जेनेरियो में 17 तारीख के दोपहर से आयोजित किया गया, जो 18 तारीख की सुबह तक चला.

* 19 जून को कई शहरों के मेयरों ने जन दबाव को देखते हुए बढ़े हुए किरायों में कटौती करने की घोषणा की.

* 20 जून को विरोध प्रदर्शन 100 से ज्यादा शहरों में फैल गया. कहा जाता है कि इस दिन ब्राजील की सड़कों पर 20 लाख से ज्यादा लोग उतरे थे.

* 21 जून को ब्राजील की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों की संख्या कहीं ज्यादा बढ़ गयी. जानकारों के मुताबिक ब्राजील ने दशकों में इस पैमाने का कोई विरोध प्रदर्शन नहीं देखा था. हालांकि प्रदर्शनों में रिबेरियाओ प्रेटो नामक स्थान में एक प्रदर्शनकारी शहीद हो गया.

– जानिए एक नजर में
* कहां
यह विरोध प्रदर्शन किसी एक शहर या जगह तक सीमित नहीं है, बल्कि ब्राजील के 100 से ज्यादा शहरों में फैल चुका है.
* क्यों
1. प्रदर्शनकारी बस, ट्रेन और मेट्रो किराये में हुई वृद्धि का विरोध कर रहे हैं और उसे कम करने की मांग कर रहे हैं.
2. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सार्वजनिक अवसंरचना, शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किया जाये.
3. जीवन यापन का बढ़ता खर्च इन विरोध प्रदर्शनों की बड़ी वजह बना है.
4. प्रदर्शनकारी प्रमुख खेल प्रतियोगिताओं के लिए सरकारी फंडिंग को लेकर भी असंतुष्ट हैं और उनका कहना है कि हमें रोटी, रोजी और सुविधाएं चाहिए, वर्ल्ड कप फुटबॉल नहीं.
5. आम जनता खुद को सरकार के फैसलों से अलग-थलग महसूस कर रही है.
6. सरकार में भ्रष्टाचार, जालसाजी जैसे मामलों के प्रकट होने को लेकर जनता में रोष है.

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* लक्ष्य
1. सार्वजनिक यातायात के भाड़े को कम करना.
2. जरूरी सार्वजनिक-सामाजिक सेवाओं को बेहतर बनाना. जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, परिहवन को बेहतर बनाना शामिल है.
3 खेल प्रतियोगिताओं के फंड को कम किया जाये.

* तरीका
शांतिपूर्ण प्रदर्शन, विरोध मार्च, ऑनलाइन एक्टिविज्म

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