एक भारतीय लड़का था. वह जापान में जॉब कर रहा था. वहां उसकी एक प्रेमिका भी थी. दोनों साथ रह रहे थे. किसी कारण से लड़के को कुछ दिनों के लिए भारत आना पड़ा. उसने अपनी प्रेमिका से कहा, ‘कल मेरी फ्लाइट है. तुम मुङो छोड़ने के लिए एयरपोर्ट चलना.’ प्रेमिका ने कहा, ‘मैं ऑफिस से छुट्टी नहीं ले सकती. इन दिनों काम का प्रेशर ज्यादा है.’ लड़के ने कहा, ‘क्या तुम मेरे कहने पर एक दिन भी ऑफिस से छुट्टी नहीं ले सकती?’ दूसरे दिन प्रेमिका उसे एयरपोर्ट छोड़ने आयी.
जाते वक्त उसने लड़के के हाथ में एक लिफाफा पकड़ाया और कहा कि प्लेन में बैठने के बाद इसे खोलना. लड़के ने ऐसा ही किया. लिफाफे के अंदर खत में लिखा था, ‘जो इंसान सिर्फ एयरपोर्ट छोड़ने के लिए मुझसे मेरा एक दिन का काम छुड़वा सकता है, हो सकता है कि वह शादी के बाद मुङो जॉब छोड़ने के लिए ही कह दे. यह भी हो सकता है कि वह हर छोटी-छोटी बात पर इमोशनली ब्लैकमेल कर मुङो मेरे काम से दूर कर दे. बेहतर होगा कि मैं तुमसे शादी न करूं. मैं तुमसे प्यार करती हूं, लेकिन काम अपनी जगह है और प्यार अपनी जगह.’
आज यहां यह कहानी शेयर करने की वजह यह है कि आज के युवा इस बात को समझ नहीं पा रहे. युवावस्था में प्यार होना, गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड का होना गलत बात नहीं है, लेकिन यह ध्यान देना जरूरी है कि हम उन्हें और अपने काम को समय कितना दे रहे हैं? खुद से यह सवाल पूछना जरूरी है कि कहीं हम प्यार-मुहब्बत के चक्कर में पड़ कर अपने काम से जी तो नहीं चुरा रहे? उसे इग्नोर तो नहीं कर रहे?
हम सभी जानते हैं कि जब किसी से प्यार होता है, तो दिल करता है कि ज्यादा-से-ज्यादा वक्त उसके साथ रहें, उससे मैसेज या चैट के जरिये बात करें. बार-बार फोन लगाएं. यही प्यार होने की उम्र भी होती है. लेकिन साथ ही एक सच यह भी है कि करियर को बनाने की सही उम्र भी यही होती है. यदि हम काम के दौरान भी प्रेमी-प्रेमिका पर ज्यादा ध्यान देंगे, मैसेज करेंगे, फोन करेंगे, तो हमारा काम में कम मन लगेगा और परफॉर्मेस गिरती चली जायेगी.
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