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मेरे हमदम हैं उस पार
रांची : बतानेवाले ने किसी और को बताने से मना किया है. पर बताये दे रहे हैं. एक राजनीतिक दल के खेवनहार ने बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू किया है. नदी किनारे खड़े हो कर जिस मांझी को वह आवाज दे रहे थे, उसने अपनी नौका पर किसी और को बिठा कर पतवार चलानी […]
रांची : बतानेवाले ने किसी और को बताने से मना किया है. पर बताये दे रहे हैं. एक राजनीतिक दल के खेवनहार ने बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू किया है. नदी किनारे खड़े हो कर जिस मांझी को वह आवाज दे रहे थे, उसने अपनी नौका पर किसी और को बिठा कर पतवार चलानी शुरू कर दी है.
नाव है तो बड़ी, पहले से सवार भी कई हैं, पर ये बेचारे .मेरे साजन (हमदम) हैं उस पार, मैं मन मार, हूं इस पार..गाने को मजबूर हैं. खेवनहार के शागिर्द मिल गये. वह भी मांझी को आवाज दे रहे थे. कहने लगे देखिए न, साहब किनारे खड़े होकर आवाज दे रहे थे..इधर मांझी ने धोखा दे दिया. दरअसल पुराना साथ रहा है. मन मिला हुआ था. पर अब नैन मिलाने में परेशानी है.
बीच में एक दीवार है. इसलिए साहब ने सोचा दीवार फांद कर मिल लिया जाये, पर ऐन वक्त पर बात नहीं बनी. साहब ईश्वर सलील हैं. पर किसी की ओर ढुलक कर नाव पर सवार होने के बाद भला ईश्वर क्या करे. अब धीर-गंभीर होकर नदी किनारे अलग चलने का मानस बना रहे हैं.
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