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पहाड़ की बेटियां लिख रहीं उच्च शिक्षा की इबारत

मेगास्थनिज ने अपने यात्रा विवरण में ईसा से 300 साल पूर्व संताल परगना के पहाड़ों और जंगलों में निवास करने वाली जिस जनजाति की चरचा की थी, वह है पहाड़िया आदिम जनजाति. सदियों शोषण, कुपोषण, अशिक्षा और अभाव में रहा यह समाज तेजी से बदल रहा है. इस बदलाव में इस समाज के बेटियां भी […]

मेगास्थनिज ने अपने यात्रा विवरण में ईसा से 300 साल पूर्व संताल परगना के पहाड़ों और जंगलों में निवास करने वाली जिस जनजाति की चरचा की थी, वह है पहाड़िया आदिम जनजाति. सदियों शोषण, कुपोषण, अशिक्षा और अभाव में रहा यह समाज तेजी से बदल रहा है. इस बदलाव में इस समाज के बेटियां भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं.

अब पहाड़ों और जंगलों में लकड़ी कटने या कंदमूल उखाड़ने तक इस समाज की बेटियां सीमित नहीं हैं. उन्होंने शिक्षा की उन उचाइयों को छूना शुरू किया है, जिसे सामान्य और शिक्षित समाज की बेटियां भी मुश्किल से छू पा रही हैं. अब तक शिक्षा और विकास से दूर रहे इस समाज की बेटियां वृहद समाज की मुख्य धारा में अपने समाज को तेजी से जोड़ने में जुटी हुई हैं. उन्होंने जंगल और पहाड़ से निकल कर दिल्ली विश्‍वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज तक की दहलीज पर पांव धरे हैं. पड़ताल करती आरके नीरद की खास रिपोर्ट :

पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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