सिमडेगा : सिमडेगा जिल स्थापना दिवस का 12 वां वर्षगांठ हम मना रहे हैं. लेकिन इन 12 वर्षो में जिले का कोई विकास नहीं हुआ. आज भी जिले के लोग पूर्व की तरह स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा, बिजली, क्रीड़ा तथा सिंचाई की सुविधा के लिये सरकार से आशा भरी निगाहों से टकटकी लगाये बैठे हैं.
पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में 12 वर्षो में पूरे राज्य का कायाकल्प हो गया, किंतु झारखंड के इस आदिवासी बहुल जिले में अपेक्षित परिवर्तन नहीं हो सका.
दो दो मंत्री बने फिर भी विकास नहीं : झारखंड गठन के बाद जिले से दो मंत्री बऩे एनोस एक्का तथा विमला प्रधाऩ एनोस एक्का के हाथों में ग्रामीण विकास, परिवहन विभाग, एनआरईपी व अन्य विभाग था. इसी प्रकार विमला प्रधान के हाथों में पर्यटन तथा महिला कल्याण विभाग था. एनोस एक्का ने मंत्री रहते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में पुल पुलियों का निर्माण कराया. ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण हुआ़ किंतु परिवहन एवं अन्य क्षेत्रों में कुछ विकास नहीं हुआ़.
पर्यटन स्थलों की स्थिति दयनीय
जिले में पर्यटन स्थलों की स्थिति दयनीय है. जिले में मुख्य रूप से रामरेखा तथा दनगदी को पर्यटक के दृष्टकोण से महत्वपूर्ण माना गया है. सरकार द्वारा उक्त स्थलों के विकास के नाम पर खाना पूर्ति की है. शहरी क्षेत्र स्थित केलाघाघ डैम पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र है.
दो पहाड़ियों के बीच बना डैम तथा डैम में भरा पानी लोगों का मन मोह रहा है. यहां पर बोटिंग की सुविधा मुहैया करायी गयी थी. करोड़ो की लागत से सौंर्दयीकरण का कार्य भी किया गया. किंतु आज देख रेख के अभाव में सभी नष्ट हो रहा है. वर्तमान में बोटिंग भी बंद है. जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
बिजली के लिए आज तक लोग तरस रहे
बिजली की लचर व्यवस्था की समस्या से आज भी लोग जूझ रहे हैं. इसमें कोई बदलाव तो नहीं आया. लेकिन जनता की परेशानी और बढ़ गयी. आज जब विद्युत ट्रांसफारमर जलता है तो ग्रामीणों को आपस में 8 से 10 हजार रुपये चंदा करना पड़ता है.
चंदे की राशि लेकर लोग विभागीय अधिकारी के साथ रांची जाते हैं. इसके बाद काफी मिन्न्तों के बाद ट्रांसफारमर मिलता है. जिले में ग्रिड का निर्माण कार्य मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने शुरू कराया था. किंतु ग्रिड में ट्रांसमिशन लाइन वन विभाग की आपत्ति के बाद रुका हुआ है.
उच्च शिक्षा के नाम पर एक कॉलेज
जिले में उच्च शिक्षा के नाम पर सिर्फ एक अंगीभूत कॉलेज सिमडेगा कॉलेज सिमडेगा है. कॉलेज में पढ़ाई स्तर निम्न है. विज्ञान की पढ़ाई की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. कॉलेज में विभिन्न विभागों में विषयवार शिक्षकों की घोर कमी हमेशा रहती है. किंतु यहां के जनप्रतिनिधि तथा विश्वविद्यालय प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है.
परिणाम स्वरूप जिले से हर वर्ष सैकड़ों युवक युवतियां उच्च शिक्षा के लिये रांची, ओड़िशा, कोटा, जमशेदपुर, बिहार, विशाखापटनम के अलावा अन्य शहरों में जा रहे हैं.
12 वर्ष के बाद भी एस्ट्रोटर्फ मैदान नहीं
जिले से अब तक 33 से भी ज्यादा राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हॉकी के खिलाड़ियों ने जिले का मान बढ़ाया है. जिले में बहुत ऐसे हॉकी खिलाड़ी अभी हैं, जिनमें देश व राज्य के लिए खेलने का जजबा है. जरूरत है उन्हें दिशा देने की. दिशा देने के लिये जिले में एक एस्ट्रोटर्फ मैदान की अति आवश्यकता है.
राज्य के पहले खेल मंत्री बैजनाथ राम ने शहरी क्षेत्र के बाजार टोली स्थित मैदान को एस्ट्रोटर्फ बनाने के लिए शिलान्यास किया था. लेकिन कुछ नहीं हुआ. जिले में उग्रवाद तथा आपराधिक संगठनों की संख्या बढ़ी है. शाम होते ही लोग गांव छोड़ देते हैं. जिले के लगभग सभी थाना क्षेत्र उग्रवाद प्रभावित हो गये है. उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र के व्यापारी अब गांव छोड़ कर शहरों में अपना बसेरा मजबुरण बसाने लगे है.
– रविकांत साहू –