
पिछले महीने आई बाढ़ से कश्मीर अभी तक ठीक से उबर नहीं पाया है.
बाढ़ का पानी अब जा चुका है लेकिन बर्बादी के निशान बाक़ी हैं.
आहिस्ता-आहिस्ता लोगों को ये गुमां हो रहा है कि सैलाब के पानी ने कश्मीर की ऐतिहासिक महत्व की इमारतों को किस कदर बर्बाद कर दिया है.
पत्रकार शुज़ात बुखारी ने कश्मीर के इतिहास को समेटे इन इमारतों की बदहाली पर नज़र डाली है.
शाही क़ब्रगाह बह गई

यह शाही राजघराने की कब्रगाह के तौर पर मक़बूल था. 15वीं सदी के सुल्तान गियासुद्दीन ज़ैनुलाब्दीन की कब्र भी यहीं थी.
शाहमीरी शैली में बना ये मक़बरा भारत में अपनी तरह का अनोखा है. लेकिन ये झेलम के किनारे था.
सैलाब के पानी ने मक़बरे को तो बख्श दिया लेकिन कई कब्रें वह अपने साथ बहाकर ले गई. इनमें मुगल बादशाह बाबर के भाई मिर्ज़ा हैदर दुगलत की कब्र भी थी.
मिर्ज़ा हैदर अपने वक्त के प्रमुख इतिहासकारों में से थे. उनकी किताब तारीख-ए-रशीदी मुगलिया दौर पर रोशनी डालती है. दुगलत ने कश्मीर पर 10 साल तक हुकूमत की थी.
ईसाइयों की क़ब्र

झेलम के किनारे ईसाइयों की भी कब्र थी जिसे औपनिवेशिक काल की विरासत के तौर पर देखा जाता है. सैलाब के पानी का साया यहां भी देखा जा सकता है.
यहां ज्यादातर श्रीनगर में रह रहे ब्रितानी सैन्य अधिकारियों और इसाई मिशनरियों से जुड़े लोगों की कब्रें थीं. इनमें से ज्यादातर को बाढ़ अपने साथ ले गई.
यहां ब्रितानी सैन्य अधिकारी रॉबर्ट थॉर्प की कब्र भी है जिनसे कश्मीरियों को बहुत लगाव था. वे 1865 में कश्मीर आए थे और आत्मनिर्णय के कश्मीर के हक़ के लिए लड़े थे.
उस वक्त के कश्मीर के राजा महाराज गुलाब सिंह की फौज के हाथों रॉबर्ट थॉर्प की मौत हो गई थी.
भरपाई मुमकिन नहीं

ये वो नुकसान है जिसकी भरपाई अब नहीं की जा सकती है. कश्मीर की विरासत में वहां की अपनी वास्तुकला के साथ साथ ब्रितानी असर भी है.
इसकी परवरिश पहले डोगरा शासन और फिर ब्रितानी हुकुमत के दौरान हुई थी. घाटी के शिवपोरा और इंदिरा नगर इलाके में बाढ़ की तबाही का मंज़र भयानक मालूम देता है.
यहां ज्यादातर इमारतें ढह गई हैं या फिर काफी हद तक बर्बाद हो गई हैं. ‘खोसला’ और ‘रत्तन’ जैसी कोठियां शहर की दौलत की नुमाइश करती हुई लगा करती थीं.
इनमें से एक के मालिक कहते हैं, "यह बहुत बड़ा नुकसान है. हमने इसे बचाने के अब तक बहुत कोशिश की थी."
किस्से खत्म हो गए

झेलम के किनारे बनी इस इमारत को ‘गुज़र’ कहते हैं. यह नदी के मुहाने का प्रतीक था. 19वीं सदी की ये मशहूर इमारत बाढ़ के साथ बर्बाद हो गई.
डोगरा शासन के दौरान होने वाले कारोबार और उससे जुड़े सख्त नियम कायदों की याद दिलाने वाली ये आखिरी इमारत रह गई थी.
नदी के रास्ते कश्मीर जाने वाले कारोबारियों के लिए ये चुंगी नाका हुआ करता था. यह मुज़फ्फराबाद और श्रीनगर से होकर गुजरने वाला उस वक्त का इकलौता हाइवे था.
और बाढ़ के साथ जैसे ये इमारत ढह गई, नदियों के रास्ते होने वाले कारोबार के किस्से भी इसी के साथ खत्म हो गए.
म्यूज़ियम का खजाना

कश्मीर के म्यूज़ियम का खजाना भी अब पहले जैसा नहीं रहा. कश्मीरी शॉल, हाथ से बने कागज़ की चीजें और बौद्ध युग, धर्म और खगोल विज्ञान से जुड़ी गिलगित की दुर्लभ पांडुलिपियां और यहां तक कि सातवीं सदी की चीजें भी श्री प्रताप सिंह म्यूज़ियम में देखी जा सकती थीं.
म्यूज़ियम की इमारत अब भी वैसी ही खड़ी है लेकिन सैलाब के पानी ने कुछ भी पहले जैसा नहीं छोड़ा. 1898 में डोगरा शासक महराज प्रताप सिंह ने इस इमारत को म्यूज़ियम की शक्ल दे दी थी.
म्यूज़ियम के आर्काइव्स डायरेक्टर शफी ज़ाहिद बताते हैं कि यहां रखीं दस फीसदी चीजें नष्ट हुई हैं और नेशनल म्यूज़ियम इनके संरक्षण के लिए मदद कर रहा है.
फकीर की दरगाह

मशहूर फकीर सैयद अली हमदानी की दरगाह लकड़ी की कारीगरी की बेहतरीन मिसाल कही जाती थी लेकिन बाढ़ ने इसे भी नहीं बख्शा है.
14 सदी में मध्य एशिया से कश्मीर आने वाले इस फकीर ने बड़े पैमाने पर हिंदुओं को इस्लाम धर्म से जोड़ा था.
जानकारों का कहना है कि बाढ़ ने कश्मीर की तकरीबन 150 इमारतों को नुकसान पहुँचाया है.
ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण से जुड़े सलीम बेग कहते हैं, "हमने बहुत कुछ गंवा दिया है. हम इनमें से ज्यादातर को बचा सकते थे. लेकिन हमने जो गंवाया है, बहुत बड़ा नुकसान है."
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