मंगल ग्रह की थाह लेने जा रहा भारत का मार्स ऑर्बिटर मिशन यानी मंगलयान अपने गंतव्य तक पहुंचने के आखिरी चरण में है. उम्मीद है कि यह 24 सितंबर को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने में कामयाब होगा. क्या है मंगलयान, क्या है इसका मकसद और लक्ष्य तक पहुंचने की राह में अभी क्या है चुनौतियां आदि जैसे तथ्यों पर नजर डाल रहा है नॉलेज..
नॉलेज डेस्कत्ननयी दिल्ली
मंगल ग्रह की टोह लेने जा रहा भारत का मंगलयान अपनी 95 प्रतिशत यात्रा पूरी कर चुका है और अपने गंतव्य के काफी नजदीक पहुंच चुका है. उम्मीद है कि 24 सितंबर को यह अपने गंतव्य तक यानी मंगल की कक्षा में पहुंच जायेगा. इसरो का कहना है कि संगठन के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती मंगलयान के तरल इंजन को फिर से चालू करने की है, जो पिछले 10 महीने से बंद है. इस इंजन को एक दिसंबर को 22 मिनट के लिए चालू किया गया था और तब मंगलयान की गति को 648 मीटर प्रति सेकेंड बढ़ा कर इसे पृथ्वी की आखिरी कक्षा से बाहर किया गया था. यह यान अभी 22 किलोमीटर प्रति सेकेंड की स्पीड से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा है. लेकिन, बड़ी चुनौती यह है कि मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए इस स्पीड को कम करके 1.6 किमी प्रति सेकेंड करना जरूरी है.
इसरो के मुताबिक, 16 और 17 सितंबर को यान के मंगलग्रह की कक्षा में प्रवेश का पूर्वाभ्यास किया जायेगा. फिर 21 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए यान में कमांड लोड किये जायेंगे और 22 सितंबर को तरल इंजन का परीक्षण किया जायेगा. मंगलयान के इंजन 24 सितंबर को सुबह 7:18 पर चालू किया जायेगा. उसी दिन सुबह सवा आठ बजे पहला संदेश मिलने की उम्मीद है. जाहिर है, यदि सबकुछ सही रहा तो यह दिन देश के लिए ऐतिहासिक कामयाबी का दिन होगा.
इस यान के साथ पांच प्रयोगात्मक उपकरण, लाइमैन अल्फाफोटोमीटर, मीथेन सेंसर, मार्स कलर कैमरा, थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर और मार्स एक्सोफेरिक न्यूट्रल कंपोजीशन एनालाइजर भेजे गये हैं, जो मंगल ग्रह के वातावरण के बारे में जानकारी जुटायेंगे.
इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने हाल ही में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को दिये अपने साक्षात्कार में कहा है कि मंगलयान का सफर अब तक शानदार रहा है और उसके सभी पांचों वैज्ञानिक उपकरण पूरी तरह काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि बीते बुधवार (10 सितंबर) तक यह यान 643 मिलियन किमी की यात्रा कर चुका है और उस समय धरती से इसकी दूरी (रेडियो डिस्टेंस) 210.74 मिलियन किमी थी. वहां से मंगल तक की दूरी महज 3.85 मिलियन किमी थी. इसका सिगनल (एक तरफ से) 703 सेकेंड की देरी से प्राप्त होता है. इस प्रकार 10 सितंबर तक इसकी यात्रा का करीब 95 फीसदी हिस्सा पूरा हो चुका था.
..तो यह कामयाबी हासिल करनेवाला चौथा देश होगा भारत
मंगलयान जैसे-जैसे मंगल ग्रह के निकट पहुंच रहा है, वैसे-वैसे भारत समेत दुनियाभर के अंतरिक्ष समुदायों में इसके बारे में उत्सुकता बढ़ती जा रही है. विभिन्न देशों की ओर से मंगल (या उसके उपग्रह फोबोस और डेमोस) पर भेजे गये तकरीबन 50 मिशनों में से आधे मिशन भले ही सफल रहे हों, लेकिन पहले प्रयास में कोई भी देश अब तक वहां पहुंचने में कामयाब नहीं रहा है. भारत का मंगलयान यदि 24 सितंबर को मंगल तक पहुंचने में कामयाब रहता है, तो रूस, अमेरिका की नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के बाद भारत (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) यह कारनामा करने वाला चौथा देश होगा. पृथ्वी से इस यान की सफल लॉन्चिंग और उसके मंगल ग्रह की कक्षा में निर्धारित समय पर पहुंचने की प्रक्रिया ने भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया है, जो ग्रहों की यात्रा के संदर्भ में अपनी क्षमता को साबित कर चुके हैं.
हालांकि, भारतीय मंगलयान के लिए अभी सबसे बड़ी चुनौती बरकरार है. अब नजर इस बात पर है कि मंगल के नजदीकी कक्षीय पथ पर पहुंच कर यह यान अपनी गति को किस तरह धीमा कर पायेगा और वहां के गुरुत्वाकर्षण के मुताबिक नियंत्रित रख पाने में कितना कामयाब हो पायेगा.
पिछले वर्ष पांच नवंबर को पीएसएलवी सी 25 से मंगलयान का सफल प्रक्षेपण किया गया था. मंगल ग्रह की खोज का ऐसा अवसर प्रत्येक 26 महीने में एक बार आता है. दरअसल, त्रिकोणमिति के हिसाब से सूर्य, मंगल और पृथ्वी के एक खास कक्षा में आने का यह श्रेष्ठ दिन था. इसलिए हमने देश में मौजूद श्रेष्ठ संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए इस कार्य को आगे बढ़ाने में पूरी ताकत लगा दी थी. पृथ्वी से इसके उड़ान भरने के बाद से बेंगलुरु स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आइएसटीआरएसी) से इस यान को नियंत्रित किया जा रहा है. अप्रैल तक इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आइडीएसएन) के 18 मीटर डिश एंटीना को इस यान के संचार के लिए इस्तेमाल में लाया जा रहा था. उसके बाद से 32 मीटर के एंटीना से इससे संचार कायम किया जा रहा है. इस दौरान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने इस कार्य के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के डीप स्पेस नेटवर्क से भी मदद ली है.
भारतीय मंगलयान की यात्रा कई वजहों से लगातार सुर्खियों में रही है. इसका सबसे बड़ा आलोचनात्मक मुद्दा यह रहा है कि क्या भारत जैसे गरीब देश को इस मिशन पर इतनी भारी रकम खर्च करनी चाहिए. आलोचकों का यह भी कहना है कि ज्यादातर मार्स ऑर्बिटर मिशनों के मकसद उनसे पहले भेजे गये इस तरह के मिशनों से ही हासिल किये जा चुके हैं और इतनी भारी मात्र में रकम खर्च करने का कोई खास फायदा नहीं दिख रहा है. हालांकि, देश में फैल रही वैज्ञानिक जागरूकता के अदृश्य प्रभाव (जो अभी प्रतीत नहीं हो रहे) और राष्ट्रीय गर्व को बढ़ाने में इस मिशन का व्यापक योगदान कहा जा सकता है. इसके सफल होने पर पूरी दुनिया के उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ रहे कारोबार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ सकती है. परिणामस्वरूप, निजी उद्योगों पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकेगा. इसलिए तमाम आलोचनाओं के बावजूद, यह कहा जा सकता है कि मार्स ऑर्बिटर मिशन ने भारत को अच्छे दिनों की ओर ले जाने का संकेत दिया है. यदि सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से हुआ तो 24 सितंबर का दिन भारत के लिए गर्व का दिन होगा.
(सेंटर फोर लैंड वारफेयर स्टडीज से साभार)
मंगलयान के पांच प्राथमिक पेलोड्स (अंतरिक्ष उपकरण)
मंगलयान में पांच प्राथमिक पेलोड्स (अंतरिक्ष उपकरण) लगे हुए हैं. यह यान इन पेलोड्स को अपने साथ लेकर जा रहा है. इन सभी पेलोड्स का वजन करीब 15 किलोग्राम है. जानते हैं इन पांचों पेलोड्स बारे में :
मार्स कलर कैमरा
यह ट्राइ-कलर मार्स कैमरा मंगल की सतह की खासियतों और उसके मिश्रण के बारे में तसवीरें और सूचना मुहैया करायेगा. मंगल ग्रह के मौसम के बारे में जानकारी देने के अलावा वहां की तमाम गतिविधियों की निगरानी के लिए इसका इस्तेमाल किया जायेगा. मंगल के दो उपग्रहों- फोबोस और डेमोस के बारे में भी जानकारी देने में यह कैमरा सक्षम साबित हो सकता है. अन्य साइंस पेलोड्स के लिए भी यह उनके संदर्भ में सूचना देने का काम करेगा. इस पेलोड का वजन 1.27 किलोग्राम है.
थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर
यह पेलोड थर्मल उत्सजर्न को मापने का काम करेगा और इसे दिन और रात, दोनों समय संचालित किया जा सकता है. तापमान और उत्सजर्कता, ये दो ऐसे भौतिक मानदंड हैं, जिनका थर्मल उत्सजर्न की माप से अनुमान लगाया जा सकता है. इस खास पेलोड से खास इलाकों में खनिजों और मिट्टी के प्रकारों की खासियतों के बारे में जाना जा सकता है. इसके अलावा, यह उपकरण मंगल के सतह की संरचना और मिनरोलॉजी का नक्शा भी बना सकता है. इस पेलोड का वजन 3.2 किलोग्राम है.
मिथेन सेंसर्स फॉर मार्स
इसका इस्तेमाल मंगल के वायुमंडल में मिथेन (सीएच4) की मौजूदगी और उसकी मात्र को मापने के लिए किया जायेगा. यह पेलोड सोलर रेडिएशन को रिफ्लेक्ट करते हुए सेंसर से आंकड़ों को मापेगा. माना जाता है कि मंगल के वायुमंडल में मिथेन पाया जाता है और इसके अलावा इसमें अनेक अस्थायी विविधताएं मौजूद हैं. इस पेलोड का वजन 2.94 किलोग्राम है.
मार्स इनोस्फेरिक न्यूट्रल कंपोजिशन एनालाइजर
यह एक प्रकार का क्वाड्रपल मास स्पेक्ट्रोमीटर है, जो 1 से 300 तक की एएमयू के साथ मास रिजोलुशन की रेंज में न्यूट्रल कंपोजिशन के विेषण में सक्षम है. इस पेलोड की ज्यादातर तकनीक ‘चंद्र एटीट्यूडिनल कंपोजिशन एक्सप्लोरर’ से ली गयी है. क्वाड्रपल मास स्पेक्ट्रोमीटर आधारित यह साइंटिफिक पेलोड यूनिट दरअसल मास रिजोलुशन के साथ एक निर्धारित रेंज में वहां मौजूद निरपेक्ष तत्वों की आधिक्यता को मापने में भी सक्षम है. इस पेलोड का वजन 3.56 किलोग्राम है.
लीमेन- अल्फा फोटोमीटर
यह पेलोड एक प्रकार का ‘एब्जोप्र्शन सेल फोटोमीटर’ है. मंगल के ऊपरी वायुमंडल में लीमेन- अल्फा के उत्सजर्न से हाइड्रोजन और ड्यूटेरियम की अधिकता को सापेक्ष तौर पर मापने का काम करेगा. दरअसल, डी/ एच (ड्यूटेरियम से हाइड्रोजन की आधिक्यता का अनुपात) को मापने से इस तथ्य को जाना जा सकेगा कि किस तरह से इस ग्रह से पानी का विनाश हुआ था. इस मायने में यह पेलोड बेहद अहम है, जो यहां पूर्व में पानी के मौजूदगी के बारे में बता सकता है. इस पेलोड का वजन 1.97 किलोग्राम है.
(स्नेत : इसरो)
मंगलयान
मार्स ऑर्बिटर के नाम से जाना जाने वाला मंगलयान एक मिशन है. हालांकि, यह नासा द्वारा भेजा गया ‘रोवर’ नहीं है, जो मंगल की सतह पर जाकर वहां से हमें जानकारी देगा. हमारा मंगलयान मंगल ग्रह पर उतरेगा नहीं, बल्कि उसकी कक्षा में घूमते हुए ही उसका अध्ययन करेगा. इसकी कक्षा 375 किमी गुणा 80,000 किमी की होगी. यानी जब यह यान मंगल के सबसे नजदीक होगा, तो उस ग्रह से इस यान की दूरी तकरीबन 375 किमी होगी. ‘मंगलयान’ इसी कक्षा में से तमाम वैज्ञानिक जानकारियों की जांच-पड़ताल करेगा.
यह यान मंगल के अपने रास्ते में चांद के ऊपर से गुजरते हुए पृथ्वी व चंद्रमा और फिर मंगल की सतह की तस्वीरें खींचेगा. इसरो के इस मिशन की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मंगल पर मीथेन गैस की मौजूदगी के संकेतों के बारे में पता लगाना है. वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी ग्रह पर जीवन के पनपने के लिए मीथेन एक बुनियादी आधार है. मीथेन के संकेत मिलने पर यह पड़ताल की जा सकती है कि क्या मंगल पर कभी जीवन था या कभी भविष्य में पनप सकता है.