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श्रम में खोता बचपन

बाल श्रम हमारे समय की एक दुखद सच्चई है. तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज हम उद्योग-धंधों से लेकर घर के भीतर तक पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में बाल श्रमिकों को देख सकते हैं. इसकी रोकथाम के लिए बेशक कई कानूनी प्रावधान किये गये हों, लेकिन पिछड़े क्या विकसित कहे जाने […]

बाल श्रम हमारे समय की एक दुखद सच्चई है. तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज हम उद्योग-धंधों से लेकर घर के भीतर तक पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में बाल श्रमिकों को देख सकते हैं.

इसकी रोकथाम के लिए बेशक कई कानूनी प्रावधान किये गये हों, लेकिन पिछड़े क्या विकसित कहे जाने वाले समाजों तक में लाखों बच्चों का बचपन पेट की भूख मिटाने में दफन हो जाता है. वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर पर बाल श्रम के विभिन्न पहलुओं पर नजर डालता नॉलेज..

बच्चों के हाथों में कलम और आंखों में भविष्य के सपने होने चाहिए. लेकिन दुनिया में करोड़ों बच्चे ऐसे हैं, जिनकी आंखों में कोई सपना नहीं पलता. बस दो जून की रोटी कमा लेने की चाहत पलती है. वे बच्चे स्लेट पर चॉक से भविष्य की इबारतें नहीं लिखते, बल्कि अपने कोमल हाथों को श्रम की आंच में पकाते हैं.

दुनिया में बाल मजदूरों की स्थिति देख कर अगर आपके मन में बरबस प्यासा फिल्म का ‘यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है’ गीत नहीं कौंधता तो शायद आपकी संवेदना जड़ हो गयी है. लेकिन इससे बड़ी बात है कि हम इस बात की परवाह करना शायद भूल गये हैं कि दुनिया ऐसी नहीं हो सकती, जहां बच्चे स्कूल न जायें. खेल के मैदानों में न नजर आयें. दुनिया के करोड़ों बच्चे ऐसा जीवन जीने पर मजबूर हो रहे हैं.

आज, पूरी दुनिया में तकरीबन 21 करोड़ 50 लाख बच्चे मजदूर के तौर पर काम करते हैं, जिनमें कई पूर्णकालिक हैं. इनमें से तकरीबन 11.5 करोड़ बच्चे सैन्य संघर्ष, दासता, नशे का कारोबार समेत अन्य गैर-कानूनी एवं घातक गतिविधियों में शामिल हैं. उनके पास स्कूल जाने और खेलने का बिलकुल भी समय नहीं होता. बहुतों को समुचित पोषण या देखभाल मुहैया नहीं हो पाता. एक बच्चे को मिलने वाले बहुत कम ही अधिकार उन्हें मिल पाते हैं.

बाल श्रम और इसके उन्मूलन के लिए किए जाने वाले जरूरी प्रयासों की ओर विश्व बिरादरी का ध्यान आकर्षित करने के मकसद से आइएलओ ने वर्ष 2002 में विश्व बाल श्रम विरोध दिवस का आयोजन शुरू किया. बाल श्रम को रोकने की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 12 जून को यह दिवस आयोजित किया जाता है. इसके लिए सभी सरकारों, नियोक्ताओं और कर्मचारी संगठनों समेत सिविल सोसायटी की भागीदारी पर जोर दिया गया है.

बाल श्रम न केवल विकासशील देशों में व्याप्त है बल्कि औद्योगिक देशों में भी बड़ी संख्या में बच्चे श्रम की दुनिया में धकेल दिये जाते हैं. यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में मूल निवासियों के अल्पसंख्यक परिवारों के अधिकांश बच्चे खेती में संलग्न हैं. उत्पादन लागत को कम रखने के मकसद से कंपनियां विकासशील देशों से बाल श्रमिकों को अपने यहां बढ़ावा देती हैं.

लगातार बढ़ रही है बाल श्रम की समस्या

रोजगार की उम्र में दाखिल होने के लिए जरूरी न्यूनतम वैधानिक उम्र तक पहुंचने से पहले ही घरेलू कामगारों के तौर पर श्रम बाजार में दाखिल होनेवाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है. रोजगार हासिल करने की न्यूनतम उम्र से पहले ही जब कोई बच्च श्रम बाजार में दाखिल होता है, तो यह न सिर्फ उसके बचपन को तबाह करता है, बल्कि इससे व्यापक स्तर पर सामाजिक ताना-बाना बिगड़ता है.

देखा गया है कि 18 वर्ष से कम उम्र के श्रमिकों को खतरनाक हालातों में काम करना पड़ता है. आइएलओ की एक शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि घरेलू बाल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा लड़कियां (72 प्रतिशत) हैं. 52 प्रतिशत घरेलू बाल श्रमिकों को खतरनाक परिस्थितियों में काम करना होता है. इनमें से 47 प्रतिशत बच्चे 14 वर्ष से कम उम्र के हैं. 35 लाख बच्चे 5 से 11 वर्ष और 38 लाख बच्चे 12 से 14 वर्ष की उम्र के हैं.

आइएलओ के लक्ष्य

बाल श्रम के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने एक एक्शन प्लान प्रस्तावित किया है. इस एक्शन प्लान के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और उसके सदस्य देशों को 2016 तक बाल श्रम के कुरूपतम रूपों को समाप्त करने के लिए एकजुट होना चाहिए. संगठन का कहना है कि यह एक प्राप्त किया जा सकने लायक लक्ष्य है.

इससे 2015 तक पूरे किये जानेवाले सहस्नब्दी विकास लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी. लेकिन आइएलओ का कहना है कि मकसद यह होना चाहिए कि हर किस्म के बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त किया जाये.

क्या हो काम करने की न्यूनतम उम्र

आइएलओ के मुताबिक काम करने की एक न्यूनतम उम्र तय की जानी चाहिए. आइएलओ के मानकों के अनुसार किसी भी बच्चे को किसी भी सूरत में 18 वर्ष से कम उम्र में जोखिम भरे काम में नहीं लगाया जाना चाहिए. खासकर ऐसे कामों को जो किसी भी तरह से बच्चे के शारीरिक, नैतिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक हो. आइएलओ के प्रावधान यह भी कहते हैं कि काम करने की न्यूनतम उम्र अनिवार्य शिक्षा पूरी करने की उम्र यानी 15 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए.

भारत में बालश्रम को लेकर प्रावधान

परिभाषाओं की विसंगतियों का हाल यह है कि 10 अक्तूबर 2006 से पहले खतरनाक और गैर-खतरनाक उद्योगों के मकड़जाल में ही हमारे कानून उलङो हुए थे. जरा सोचिये कि किसी बच्चे के काम करने को खतरनाक और गैर-खतरनाक में कैसे बांटा जा सकता है, क्योंकि एक बच्चे के लिए तो काम करना ही सबसे खतरनाक है.

बहरहाल, बाल श्रम अधिनियम 1986 में संशोधन के बाद केवल इतना भर हुआ कि घरों, ढाबों और होटलों में भी बच्चों को काम पर रखा जाना दंडनीय अपराध हो गया. इसके अनुपालन के लिए बाल श्रमिकों के मालिकों ने अपने संस्थान के बाहर ‘हमारे यहां कोई बाल श्रमिक नहीं है’ की तख्ती लगाकर अपने कर्तव्य को पूरा मान लिया और श्रम विभाग ने भी इन तख्तियों के प्रति पूरी आस्था जताते हुए इनके पीछे के भयानक सच से अपनी आंखें मूंद लीं.

सरकार की इस गैर-जिम्मेदारी का एक उदाहरण भी सामने आता है, जिसमें मध्य प्रदेश में कुछ वर्ष पूर्व तक बाल श्रमिकों की संख्या महज 94 बतायी गयी थी. यदि इन आंकड़ों को सही माना जाये, तो फिर उन परियोजनाओं को सरकार क्यों चला रही है जो खास तौर पर बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए हैं.

कैसे हो समस्या का समाधान

जानकारों का कहना है कि बालश्रम की समस्या एक जटिल आर्थिक-सामाजिक समस्या है और इसका हल सिर्फ बाल श्रम पर पाबंदी करने से नहीं निकलेगा. जानकार इसके लिए निमAलिखित अपनाये जाने की वकालत करते हैं.

1. परिवार की आमदनी बढ़ा कर, ताकि बच्चों को काम पर जाने पर मजबूर न होना पड़े.
2. बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करा कर ताकि अच्छी आमदनी के लिए वे कौशल हासिल कर सकें. भारत में बालश्रम को रोकने के लिए स्कूलों में मिड डे मील योजना चलायी जाती है, जिसका मकसद है कि बच्चे स्कूल आयें, काम करने न जायें.
3. सामाजिक सेवाएं, जो बच्चों और परिवार को बीमारी या किसी अन्य आपदा की स्थिति में सहायता कर सकती हैं
4. जन्म दर नियंत्रण को प्रभावी बनाकर. क्योंकि माना जाता है कि ज्यादा बच्चे होने पर उनके लालन-पालन, शिक्षा का खर्चा उठा पाने में परिवार अक्षम हो जाते हैं. अगर बच्चे कम होंगे, तो उनकी पढ़ाई की व्यवस्था करना आसान होगा.

वर्ष 2013 के विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस के मुद्दे

1. घरेलू कार्य में बाल श्रम को समाप्त करने के लिए विधायी और नीतिगत सुधार किया जाना. कानूनी रूप से नियुक्त हो चुकने की उम्र तक पहुंच गये घरेलू कामगारों के लिए बेहतर कार्य-परिस्थितियां सुनिश्चित करना.
2. आइएलओ कंवेंशन संख्या 189 के तहत घरेलू कामगारों के लिए काम करने की बेहतर व्यवस्थाओं के साथ आइएलओ बाल श्रम कंवेंशन को कार्यान्वित करना.
3. बाल श्रम के खिलाफ विश्वव्यापी आंदोलन छेड़ना और बाल श्रम को उजागर करते हुए घरेलू श्रम संगठनों की क्षमता का निर्माण करना.

भारत में बाल श्रम की स्थिति

हमारे देश में लगभग 21 वर्ष पूर्व बच्चों के अधिकार (सीआरसी) संबंधी समझौते को स्वीकार किया गया था. बाल श्रम में लगे बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार ही अकेले प्रयास नहीं कर सकती बल्कि लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी.

प्रसिद्ध अभिनेत्री एवं यूनिसेफ के बाल अधिकारों की पक्षकार नंदिता दास का मानना है कि जब तक आम लोगों को अपनी जिम्मेवारी का अहसास नहीं होगा तब तक मासूम बचपन इसी तरह से कुचला जाता रहेगा.

यूनिसेफ के अधिकारियों के मुताबिक, भारत में मासूमों पर भारी अत्याचार हो रहे हैं. शिक्षा का अधिकार के तहत 14 वर्ष से नीचे के प्रत्येक बच्चे के लिए आवश्यक और नि:शुल्क शिक्षा का वादा किया गया है.

जबकि यह एक कड़वी सच्चई है कि भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के बाल श्रमिकों की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा है. स्कूल न जाने वाले ये बच्चे बालश्रम सहित, किसी न किसी तरह के शोषण से जूझ रहे हैं. नंदिता दास का कहना है कि बच्चों की स्थिति में सुधार के लिए सभी को प्रयास करना होगा.

वैसे सरकारी आंकड़ों में तो इनकी संख्या काफी कम करके बतायी जाती है लेकिन हकीकत में इनकी संख्या बहुत ज्यादा है. ऐसा भी नहीं है कि सरकारी मशीनरी को इस बारे में जानकारी नहीं होती, बल्कि वे इस ओर पूरा ध्यान नहीं देते हैं. इस मुद्दे की अनदेखी करना देश और समाज के लिए काफी घातक साबित हो सकता है.

संवैधानिक प्रावधान

भारत के संविधान के अनुच्छेद 24 में यह प्रावधान किया गया है कि 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान समेत किसी भी तरह के खतरनाक उद्योग में काम नहीं दिया जा सकता.

इसके साथ ही संविधान में बच्चों को स्वस्थ तरीके से विकसित होने के लिए अवसर और सुविधाएं मुहैया कराने और किसी भी तरह के शोषण एवं उत्पीड़न से उनके बचपन को बचाने की बात कही गयी है. लेकिन, वर्तमान में सरकार की अनेक नीतियों के बावजूद बाल श्रम का उन्मूलन नहीं हो पाया है. बाल श्रम के खिलाफ बनाये गये कानूनों की अनदेखी की जा रही है.

इस दिशा में बेहतर नतीजे हासिल करने के लिए कानून को प्रभावी बनाने वाली तमाम एजेंसियों के बीच तालमेल कायम करना होगा. बढ़ती आबादी पर रोकथाम लगाते हुए बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना होगा और उन्हें बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के लिए देश के सकल घरेलू उत्पाद में से पर्याप्त निधि का प्रावधान करना होगा.

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