केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव को मंजूरी दे दी.
अब इसकी जगह जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्श ऑफ़ चिल्ड्रेन) बिल 2014 अस्तित्व में आएगा.
नए विधेयक के तहत 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोर अपराधियों को व्यस्क मानने का प्रावधान है.
ऐसा होने पर किशोर अपराधी पर सामान्य कोर्ट में मुक़दमा चलाए जाने के बारे में निर्णय लेने का अधिकार जुवेलाइल जस्टिस बोर्ड के पास होगा.
विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक़ जघन्य अपराधों में दोषी पाए गए किशोर अपराधी को जेल की सज़ा दी जा सकती है, हालांकि उसे उम्र क़ैद या मौत की सज़ा नहीं होगी.
मौजूदा क़ानून के तहत अगर किसी आरोपी की उम्र 18 साल से कम होती है, तो उसका मुक़दमा अदालत की जगह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में चलता है.
दोषी पाए जाने की सूरत में किशोर को अधिकतम तीन साल की अवधि के लिए किशोर सुधार गृह भेजा जाता है.
दिल्ली में दिसंबर 2012 में हुए सामूहिक बलात्कार के बाद किशोर अपराधियों पर सामान्य अदालतों में मुकदमा चलाए जाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी थी.
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