दशकों से रामलीला में ‘राम’ बन रहा यह परिवार
दुनिया रंग-बिरंगी है, और इसके हर रंग अनोखे हैं. ‘अजब परिवारों की गजब कहानियां’ श्रृंखला की अंतिम कड़ी में आज पढ़िए एक ऐसे परिवार के बारे में.. जिस परिवार से पहले पिता ने राम का किरदार निभाया.. अब बेटा बनता है राम. इसका ये असर है कि पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का हो गया है.
चंडीगढ़ में शिक्षा विभाग में एकाउंटेट 60 वर्षीय भगवती प्रसाद गौर रामलीला में राम का किरदार निभाते हुए बड़े हुए हैं. वह पांच साल के थे, जब उन्होंने पहली बार अपने गांव रौरखाल, उत्तराखंड की रामलीला में राम की भूमिका निभायी थी.
अपने जोरदार अभिनय से उन्होंने सारे दर्शकों का दिल जीत लिया. इस प्रदर्शन के बाद उनके पिता ने उनका हौसला बढ़ाया. बकौल भगवती, फिर क्या था! हर वर्ष मैं ही राम की भूमिका करता आया. सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था, मैं पढ़ाई के साथ रामलीला में व्यस्त था. पर जब मैं नौंवीं कक्षा में था, तो मानो मेरे सामने आसमान टूट पड़ा हो. मेरा पूरा परिवार, पिता, भाई, बहन, चाचा की अचानक मौत हो गयी. 14 वर्ष की उम्र में मु भविष्य के बारे कुछ सूझ नहीं रहा था.
इसलिए गांव छोड़ मैं अपने दूसरे चाचा के पास चंडीगढ़ चला गया. वहां मैं गढ़वाल रामलीला से जुड़ा और राम के किरदार के लिए करीब 20 लड़कों से मु मुकाबला करना पड़ा. अंत में बाजी मैंने ही मारी. इस ग्रुप को मेरा अभिनय इतना भाया कि मैं लगातार 27 वर्ष तक राम बनता रहा. केंद्रीय रामलीला महासभा द्वारा मु बेहतर अभिनय के लिए 10 वर्षो तक बेस्ट एक्टर अवार्ड से नवाजा गया. आज भी मैं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच राम नाम से ही प्रसिद्ध हूं. जब मैंने रामलीला से ब्रेक लिया, तो मेरे बड़े बेटे दीपक और छोटे बेटे विजय ने लक्ष्मण और राम का किरदार निभाना प्रारंभ किया. उन दोनों ने करीब 12 वर्षो तक रामलीला में काम किया. इनके बाद मेरे सबसे छोटे बेटे अजय ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. भगवती कहते हैं, राम का किरदार निभाना बेहद मुश्किल है. इसके लिए अनुशासन, समर्पण और लगन की जरूरत होती है. रामलीला से जुड़े लोगों को सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है. उन्हें तीन महीनों के लिए ब्रह्मचर्य जीवन बिताना पड़ता है.
धूम्रपान, शराब और नशाखोरी से दूर रहने की हिदायत दी जाती है. हमारा मानना है कि जो लोग इन नियमों का पालन नहीं करते उन्हें खुद भगवान राम मंच पर दंड देते हैं. एक बार की घटना मु याद है, रामलीला में शक्ति दृश्य के दौरान लक्ष्मण का किरदार निभा रहा शख्स सचमुच मंच पर बेहोश हो कर गिर पड़ा था. बाद में हमें पता चला कि उसने शराब पी रखी थी.
भगवती आगे कहते हैं, मैं चाहता हूं कि अब मेरा चार वर्षीय पोता भी जल्द रामलीला से जुड़े. इससे उसके अंदर एक मजबूत चरित्र का निर्माण होगा. रामलीला ने हमारे परिवार को बुरे कृत्य करने से बचाया है. 35 वर्षीय दीपक कहते हैं, राम के किरदार में जब आप सारोक कहते हैं तो आप खुद में ऊर्जान्वित महसूस करते हैं. ऐसे में आप कोई अपराध करने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं. भगवती अब केंद्रीय रामलीला महासभा में दफ्तर के काम संभालते हैं.
दीपक निर्देशक और अजय मेक-अप डायरेक्टर के तौर पर कार्यरत हैं. उनके हिसाब से 1980 की रामलीला और आज की रामलीला में बहुत बदलाव आया है. उस वक्त एक शो में जहां 25000 से 30000 रुपये की लागत आती थी, वहीं लागत अब पांच लाख रुपयों तक पहुंच चुकी है. कॉस्टय़ूम, स्टेज डिजाइन, मेकअप से लेकर प्रौद्योगिकीकरण, सब कुछ आधुनिक हो गया है.
पहले चेहरे को चमकाने के लिए हम लकड़ियों को जला कर उसकी भूति का प्रयोग करते थे, लेकिन आज अजय लॉरियल कंपनी के शिमर फाउंडेशन का प्रयोग करता है. युद्ध दृश्य को दर्शाने के लिए जहां लाल रंग में सोखे हुए कपड़ों का प्रयोग होता था, वहीं आज के युवा लाल रंग के पाउच को कपड़ों में छिपा कर रखते हैं. नयी तकनीक ने रामलीला को और भी आकर्षक बना दिया है.