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विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए कुछ नये वैक्सीन
कन्हैया झा भारत में टीकाकरण कार्यक्रमों के जरिये पोलियो को भले ही नियंत्रित किया जा चुका है, लेकिन कई खतरनाक बीमारियां ऐसी हैं, जिनसे बचाव के लिए अब भी या तो वैक्सीन नहीं हैं, या हैं भी तो समाज के हर तबके को मुहैया नहीं हो पा रही हैं.इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने कुछ […]
कन्हैया झा
भारत में टीकाकरण कार्यक्रमों के जरिये पोलियो को भले ही नियंत्रित किया जा चुका है, लेकिन कई खतरनाक बीमारियां ऐसी हैं, जिनसे बचाव के लिए अब भी या तो वैक्सीन नहीं हैं, या हैं भी तो समाज के हर तबके को मुहैया नहीं हो पा रही हैं.इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने कुछ नये वैक्सीन को आम लोगों को उपलब्ध कराने की घोषणा की है. इन बीमारियों और इनसे बचाव के लिए उपलब्ध वैक्सीन समेत इससे जुड़े पहलुओं पर नजर डाल रहा है नॉलेज…
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में भारत के वैश्विक प्रतिरक्षण कार्यक्रम (यूआइपी) के एक हिस्से के रूप में चार नये वैक्सीन जारी करने के भारत सरकार के फैसले की घोषणा की है. इसके तहत रोटा वायरस, रूबेला और पोलियो (इंजेक्टेबल) से लड़ने के लिए वैक्सीन के माध्यम से एक साथ मिल कर प्रयास किये जायेंगे.
दरअसल, भारत में वर्ष 2015 तक शिशु मृत्यु दर को दो-तिहाई तक घटाने का सहस्नब्दी विकास लक्ष्य प्राप्त करना है और वैश्विक स्तर पर पोलियो के खात्मे का लक्ष्य हासिल करना है. इसके अलावा, जापानी मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित जिलों में वयस्कों के लिए एक वैक्सीन शुरू किया जायेगा.
अभी हाल में पेंटावालेंट वैक्सीन की शुरुआत के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार का यह फैसला 30 वर्षो में हुए बहुत ही महत्वपूर्ण नीति परिवर्तन को दर्शाता है, जिससे करीब एक लाख शिशुओं की मृत्यु और कार्यरत आयु समूह में काम कर रहे वयस्कों की मृत्यु पर रोक लगेगी.
उम्मीद की जा रही है कि इन नये वैक्सीन्स के आ जाने से भारत अपने ‘वैश्विक प्रतिरक्षण कार्यक्रम’ के तहत मानव जीवन के लिए चुनौती बनी 13 बीमारियों से वार्षिक स्तर पर दो करोड़ 70 लाख बच्चों की जिंदगी बचा पाने में कामयाब हो पायेगा. साथ ही, इन वैक्सीन्स की सफलता के बाद प्रत्येक वर्ष 10 लाख वयस्क लोगों को अस्पताल में भर्ती होने से बचाया जा सकता है.
बताया गया है कि चार नयी जीवन रक्षक वैक्सीनों की शुरुआत, देश में शिशुओं और बच्चों में रुग्णता और मृत्यु दर घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी. हालांकि इनमें से ज्यादातर वैक्सीन, जो इन्हें खरीद सकते हैं, वे निजी चिकित्सकों के माध्यम से पहले से उपलब्ध हैं. सरकार अब यह सुनिश्चित करेगी कि वैक्सिनेशन यानी टीकाकरण का लाभ सामाजिक और आर्थिक हैसियत को न देखते हुए समाज के सभी वर्गो तक पहुंचाया जा सके.
बच्चों को बचाने में कामयाब वैक्सीन
रोटा वायरस जनित दस्त से देश में प्रत्येक वर्ष करीब 80 हजारबच्चों की मृत्यु हो जाती है. इसका एक अन्य दुष्परिणाम यह भी देखा गया है कि इसके चलते भारत में सालाना तकरीबन दस लाख मरीजों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, जिससे बहुत सारे परिवार गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं.
इससे देश पर प्रति वर्ष 300 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आर्थिक भार भी पड़ता है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा विज्ञान मंत्रालय की सार्वजनिक निजी सहभागिता के तहत स्वदेश में विकसित पहले रोटा वायरस वैक्सीन का विकास किया गया है और उसका लाइसेंस भी हासिल कर लिया गया है. इस वैक्सीन को देश में चरणबद्ध तरीके से लागू किया जायेगा.
सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक और बड़ी चिंता से निपटने के लिए भारत सरकार के वैश्विक प्रतिरक्षरण कार्यक्रम (यूआइपी) के तहत रूबेला से निपटने यानी उसे खत्म करने के लिए वैक्सीन जारी किया जायेगा.
रूबेला रोग से नवजात शिशुओं में एकरूपता वाली गंभीर कमियां जैसे अंधता, बहरापन और ह्दय रोग जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. एक अनुमान के अनुसार, देश में प्रत्येक वर्ष ऐसी अक्षमताओं के साथ पैदा होने वाले बच्चों की संख्या करीब दो लाख है.
यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम
भारत को भले ही पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया गया है, लेकिन भविष्य में इसका खतरा पूरी तरह से खत्म हो गया है, अभी ऐसा नहीं कहा जा सकता. इसके तमाम कारण हैं.
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में अभी भी यह बीमारी पूरी तरह से दूर नहीं हुई है. हालांकि, अब तक पोलियो की खुराक मुंह से दी जाती रही है, लेकिन अब इसे इंजेक्शन से देने की तैयारी है. यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की योजना अगले एक वर्षो में इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सिन को तैयार करते हुए उसे लोगों को मुहैया कराने की तैयारी है.
दरअसल, वर्ष 2018 में पोलियो को दुनिया से पूरी तरह से खत्म करने के मकसद से इस वैक्सीन को बनाया जा रहा है. मालूम हो कि रोटावायरस, रूबेला और एडल्ट जापानी इनसेफलाइटिस वैक्सीन भी यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआइपी) के तहत ही लागू करने की सरकार की योजना है.
इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन
यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम यानी वैश्विक प्रतिरक्षण कार्यक्रम के तहत जापानी मस्तिष्क ज्वर वाले नौ राज्यों के 179 पीड़ित जिलों में वयस्कों के लिए वैक्सीन जारी की जायेगी. पोलियो मुक्त विश्व के लिए प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए भारत वैश्विक स्तर पर 125 देशों के साथ इंजेक्शन से दिये जानेवाला पोलियो वैक्सीन जारी करेगा.
दरअसल, भारत को मार्च, 2014 में पोलियो मुक्त देश घोषित किया जा चुका है और इंजेक्शन के माध्यम से पोलियो वैक्सीन दिये जाने की सुविधा से देश की आबादी को पोलियो वायरस से दीर्घकाल तक बचाया जा सकेगा.
इन नये वैक्सीनों को लागू करने की सिफारिश, प्रतिरक्षण के लिए गठित देश की सर्वोच्च वैज्ञानिक सलाहकार संस्था एनटीएजीआइ (नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन) के प्रयासों और अनेक वैज्ञानिकों द्वारा किये गये संबंधित अध्ययनों के आधार पर की गयी है. उम्मीद है कि जल्द ही इन वैक्सीन्स को आम लोगों के लिए मुहैया कराया जा सकता है.
रोटावायरस
– बीमारी का कारण : इसके वायरस रियोविरिडाइ परिवार से संबंधित होते हैं, जो पेट और आंत से संबंधित बीमारियों का कारण बनते हैं.
– कैसे होता है इसका प्रसार : इसके वायरस मुख्यत: मल और गंदगी में पनपते हैं. यह एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य से सीधे या परोक्ष रूप से पहुंचते रहते हैं. प्रभावित क्षेत्र में सांस लेने से भी इस वायरस के फैलने का खतरा रहता है.
– इस बीमारी के लक्षण : रोटावायरस आंतों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. छोटे बच्चों में गंदे पानी से होने वाले डायरिया (दस्त) होने की हालत में इसका खतरा अधिक रहता है, जिससे उलटी और बुखार भी आता है. नवजात बच्चों को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए पानी की कमी नहीं होने देना चाहिए.
– भौगोलिक प्रभाव : रोटावायरस के लक्षण दुनियाभर में देखे जा सकते हैं. पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में डायरिया ही रोटावायरस का सबसे अहम कारण होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिवर्ष तकरीबन ढाई करोड़ लोग रोटावायरस से संक्रमित होते हैं. इसके अलावा, इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2008 में दुनियाभर में 4,53,000 बच्चों की रोटावायरस संक्रमण की वजह से मौत हो गयी.
क्या है रोटा वायरस वैक्सीन
वैश्विक स्तर पर दो ओरल रोटा वायरस वैक्सीन को लाइसेंस दिया गया है. ज्यादातर देशों में नियमित रूप से बच्चों का टीकाकरण किया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी ओर से तकरीबन सभी देशों के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में रोटावायरस टीकाकरण को अनिवार्य रूप से शामिल करने की सिफारिश करता है.
खासकर उन देशों को विशेष रूप से सलाह दी जाती है, जिन देशों में रोटावायरस और इससे होने वाली मौत का खतरा अधिक होता है.
रोटारिक्स वैक्सीन पहले व दूसरे डीटीपी (डिफ्थेरिया-टेटनस-पर्टसिस) डोज के साथ चार हफ्तों के अंतराल पर दो बार दी जाती है. डीटीपी1, डीटीपी2 और डीटीपी3 के साथ चार से 10 हफ्तों के बीच में रोटाटेक वैक्सीन के डोज दिये जाते हैं.
(स्नेत : विश्व स्वास्थ्य संगठन)
रूबेला वायरस और वैक्सीन
– क्या है रूबेला?
रूबेला एक वायरल बीमारी है, जो मुख्य रूप से गर्भ (भ्रूण) को प्रभावित करता है.
– यह बीमारी किसे होने की आशंका रहती है?
यदि कोई महिला गर्भधारण के शुरुआती तीन महीनों के दौरान इस वायरस से संक्रमित हो, तो उसे यह बीमारी हो जाती है. 11 से 19 वर्ष की उम्र की लड़कियों और गर्भधारण करनेवाली महिलाओं में इसका जोखिम काफी बढ़ जाता है.
– कैसे फैलती है यह बीमारी?
रूबेला एक संक्रामक रोग है और यह खांसने, छींकने या कई बार बातचीत से भी हवा के माध्यम से फैलता है.
– भारत में रूबेला का कितना फैलाव है?
देखा गया है कि प्रसव धारण करने की उम्र के दौरान तकरीबन 40 फीसदी महिलाएं इसकी चपेट में आती हैं. गर्भावस्था के दौरान इसकी चपेट में आने से देश में सालाना करीब दो लाख नवजात शिशु इस रोग के साथ पैदा होते हैं.
– इसके लक्षण और प्रतिकूल प्रभाव क्या हैं?
गर्भावस्था के आरंभिक दौर में इस संक्रमण से बच्चे में जन्मजात विकृति पैदा हो जाती है. इन जन्मजात विकृतियों में बहरापन, मोतियाबिंद, ह्दय संबंधी रोग और मानसिक रूप से अक्षमता शामिल हैं. इतना ही नहीं, इस बीमारी से गर्भपात होने का खतरा भी बढ़ जाता है. गर्भावस्था के शुरुआती तीन माह के भीतर इस बीमारी का संक्रमण होने की स्थिति में बच्चे में जन्मजात विकृति का जोखिम और भी बढ़ जाता है.
– इस बीमारी का क्या इलाज है?
दुर्भाग्यवश देश में इस बीमारी का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है. इससे बचाव का एक मात्र तरीका टीकाकरण है.
– इसका टीका कब लिया जाना चाहिए?
बच्चों को रूबेला से बचाने के लिए 12 से 15 माह की उम्र के दौरान एमएमआर का डोज दिया जाता है. यदि कोई बच्चा इससे वंचित रह जाता है, तो 12-13 साल की उम्र तक भी इसे दिया जा सकता है. डॉक्टर की सलाह के मुताबिक इस संबंध में अन्य प्रावधान भी हैं.
– गर्भवती महिला को यह टीका दिया जा सकता है?
नहीं, रुबेला वैक्सीन किसी गर्भवती महिला को नहीं दिया जा सकता है. रुबेला वैक्सीन लेने के कम से कम एक माह तक महिलाओं को गर्भधारण नहीं करना चाहिए. – रूबेला के खिलाफ सुरक्षा के लिए टीकाकरण दीर्घकालिक प्रभावी है?
टीकाकरण से रूबेला से दीर्घकालिक सुरक्षा मिलती है. क्लीनिकल रिपोर्टो के मुताबिक, इसके टीकाकरण के 21 साल बाद तक इसका पर्याप्त असर देखा गया है.
जापानी इंसेफलाइटिस
जापानी इंसेफलाइटिस नामक बीमारी देश के कुछ इलाकों में अपना कहर बरपा रही है और हर साल इसकी चपेट में आकर कई सौ लोगों की असमय मृत्यु हो रही है.
त्नभौगोलिक प्रसार : जापानी इंसेफलाइटिस मुख्य रूप से वायरल इंसेफलाइटिस की वजह से होता है और इसका प्रभाव एशिया के लगभग सभी देशों में है. ग्रामीण इलाकों में खेती वाले ऐसे स्थानों पर, जहां बाढ़ का खतरा अधिक होता है, इसका संक्रमण बहुत तेजी से होता है. इसका प्रसार बारिश के मौसम में दक्षिणी-पूर्वी एशिया में अधिक होता है.उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में तो वर्षभर ऐसे मामले आने की संभावना बनी रहती है.
भारत में पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, बस्ती मंडल और उत्तर प्रदेश से ही सटे हुए बिहार के कुछ जिलों- गोपालगंज, सीवान आदि में इसका प्रभाव कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है. खासकर, गोरखपुर और उत्तर प्रदेश, बिहार व नेपाल से सटे इलाकों में इस बीमारी का असर सर्वाधिक देखा जाता है. इन इलाकों तकरीबन प्रत्येक वर्ष बड़ी तादाद में बच्चे इस बीमारी की चपेट में आते हैं. पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में भी इस बीमारी से मौतों की खबरें आ रही हैं.
– बीमारी का कारण : जापानी इंसेफलाइटिस वायरस के ज्यादातर मामले वेक्टर-बोर्न फ्लेवीवीरिडाइ से प्रभावित परिवारों में होते हैं. बीमारी का मूल कारण इसे माना जाता है.
– कैसे होता है प्रसार : सूअर और कई जंगली पक्षियों में यह वायरस प्राकृतिक रूप से मौजूद होता है. इनसे यह अन्य जानवरों में फैलता है. बाढ़ग्रस्त इलाकों में धान के पौधों में इसके मच्छर ज्यादा पाये जाते हैं.मनुष्यों में यह बीमारी कूलेक्स प्रजाति के मच्छरों द्वारा फैलती है. इसका संक्रमण स्पर्श करने या बीमार व्यक्ति के संपर्क में आने से होता है.
– बीमारी के लक्षण : शुरुआत में बुखार के साथ सिरदर्द होता है. बुखार ज्यादा होने से हालात बिगड़ने पर मस्तिष्क ज्वर हो जाता है. लगभग 25 प्रतिशत मामलों में यह जानलेवा साबित होता है.
बचाव के लिए टीकाकरण
– लाइव एटेन्यूटेड वैक्सीन (एसए 14-14-2 स्ट्रेन): चीन में इसकी पहली खुराक बच्चों को आठ माह की उम्र में दी जाती है. दो साल के बच्चों को इसकी बूस्टर खुराक दी जाती है और 7-8 साल की आयु में बच्चों को एडिशनल बूस्टर खुराक दी जाती है. ज्यादातर देशों में केवल इसका सामान्य डोज दिया जाता है. जबकि कुछ ही देशों में बच्चों को इसका बूस्टर डोज दिया जाता है.
– इनएक्टिवेटेड, वीरो सेल-डेराइव्ड, एलम एडज्वुनेटेड वैक्सीन (एसए 14-14-2 स्ट्रेन): शुरुआत में चार हफ्तों के अंतराल पर दो इंट्रामस्कुलर डोज दिया जाता है. इसका बूस्टर डोज एक साल बाद ही दिया जाता है.
– इनएक्टिवेटेड वीरो सेल-डेराइव्ड वैक्सीन (बीजिंग-1 स्ट्रेन): प्राथमिक प्रतिरोधक के रूप में इलाज के पहले दिन, सातवें और 28वें दिन तीन डोज या चार हफ्तों के अंतराल पर दो डोज दिये जाते हैं. यह प्रक्रि या पूरी होने से 12-14 माह बाद और उसके बाद हर तीसरे वर्ष बूस्टर डोज दिया जाता है.
– लाइव किमेरिक वैक्सीन: इसका केवल एक ही डोज दिया जाता है. बूस्टर डोज की जरूरत और संभावित समय सीमा अभी तय नहीं की गयी है. (स्नेत : विश्व स्वास्थ्य संगठन)
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