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नया कारोबार है ‘कंपनियों की कर्ज़ माफ़ी’

पी साईनाथ वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिन्दी डॉटकॉम के लिए भारत में कंपनियों को दी जाने वाली टैक्स की छूट और क़र्ज़ की माफ़ी हमेशा से विवाद का विषय रहे हैं. केंद्र सरकार 2006-07 से हर साल बजट में इस बात का ज़िक्र करती है कि उसने कंपनियों को टैक्स में कितनी छूट दी और आयकर […]

भारत में कंपनियों को दी जाने वाली टैक्स की छूट और क़र्ज़ की माफ़ी हमेशा से विवाद का विषय रहे हैं.

केंद्र सरकार 2006-07 से हर साल बजट में इस बात का ज़िक्र करती है कि उसने कंपनियों को टैक्स में कितनी छूट दी और आयकर दाताओं को कितनी छूट मिली.

मशहूर लेखक और वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ का कहना है कि सरकार ने पिछले नौ सालों में कंपनियों को 365 खरब रुपए की टैक्स छूट दी है.

इसका एक बड़ा हिस्सा तो हीरे और सोने जैसी चीज़ों पर टैक्स छूट में दिया गया. साईनाथ का कहना है कि सरकार अगर ये रक़म टैक्स छूट में नहीं देती तो इससे लंबे समय तक मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ख़र्च उठाया जा सकता था.

उनका कहना है कि टैक्स छूट एक कारोबार बन गया है.

आगे पढ़ें पी साईनाथ का पूरा विश्लेषण.

2013-14 में कारोबार सामान्य ढंग से चल रहा था. कहा जाए तो बिल्कुल धड़ल्ले से चल रहा था.

इस साल के बजट के दस्तावेज़ों के मुताबिक़ हमने 2013-14 में ज़रूरतमंद कॉर्पोरेट और अमीरों को 5.32 लाख करोड़ रूपए दे दिए.

हालांकि बजट के मुताबिक़ ये आंकड़ा 5.72 लाख करोड़ है लेकिन मैं वो चालीस हज़ार करोड़ रुपए नहीं गिन रहा जो निजी आयकर के खाते में गए हैं क्योंकि इसका फ़ायदा कई लोगों को मिलता है.

बाक़ी की रक़म व्यावसायिक घरानों और दूसरे अमीरों को दी जाने वाली छूट का हिस्सा है.

सरकार जो माफ़ी देती है उसका बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट आयकर, उत्पाद और सीमा शुल्क है.

अगर आपको लगता है कि दौलतमंदों से 5.32 लाख करोड़ का टैक्स न वसूलना कोई बड़ी बात नहीं है तो दोबारा सोचिए.

‘मनरेगा का 105 साल का ख़र्च’

साल 2005-06 से अब तक जो रक़म माफ़ की गई है वो 36.5 लाख करोड़ से ज़्यादा है. यानी सरकार ने 365 खरब रुपए माफ़ किए हैं.

365 खरब रुपए से क्या किया जा सकता है इस पर एक नज़र डालिए:

मौजूदा स्तर पर मनरेगा का ख़र्च 105 साल तक उठाया जा सकता है.

इतना तो कोई इंसान जीने की कल्पना भी नहीं करता. कोई खेतीहर मज़दूर तो शायद ही इतना जीने के बारे में सोचे.

अभी इस योजना का ख़र्च 34,000 करोड़ है. यानी इस रक़म से पूरे दो पीढ़ी तक मनरेगा कार्यक्रम चलाया जा सकता है.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का 31 साल का ख़र्च उठाया जा सकता है. अभी इसे 1,15,000 करोड़ आवंटित हैं.

वैसे, अगर सरकार ये पैसे माफ़ नहीं करती तो इस आमदनी का तीस फ़ीसदी हिस्सा राज्यों को जाता. यानी केंद्र की इस ज़बरदस्त कॉर्पोरेट कर्ज़ माफ़ी का असर राज्यों की वित्तीय हालत पर भी पड़ा है.

(स्रोत: बजट 2006 से 2014 तक; सभी आंकड़े करोड़ रुपयों में)

बाक़ी बातें तो अलग है, अगर सिर्फ़ 2013-14 में सरकार ने जो रक़म माफ़ की है उसी से मनरेगा का तीन दशकों तक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का साढ़े चार साल तक ख़र्च उठाया जा सकता है.

हीरे और सोने पर भी टैक्स माफ़ी

ये रक़म साल 2012-13 में सरकारी तेल कंपनियों के कथित ‘घाटे’ से भी चार गुना ज़्यादा है

सीमा शुल्क में कैसी-कैसी छूट दी गई है ये देखिए. ‘हीरे और सोने’ पर 48,635 करोड़ रुपए माफ़ कर दिए गए. शायद ही इसे आम आदमी या आम औरत की चीज़ माना जा सकता है.

ये ग्रामीण रोज़गार पर ख़र्च होने वाली रक़म से भी ज़्यादा है.

तथ्य तो ये है कि हीरे और सोने पर बीते 36 महीनों में कुल 16 खरब रुपए की टैक्स छूट दी गई. ये रक़म उस रक़म से कहीं ज़्यादा है जो हम आने वाले साल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर ख़र्च करेंगे.

ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ सरकार ने जो रक़म माफ़ की है ये उसका 16 फ़ीसदी है.

2013-14 में बजट में सरकार ने 5.72 लाख करोड़ की जो रक़म माफ़ की है उसका विवरण भी बेहद दिलचस्प है.

‘तेज़ी से बढ़ता कारोबार’

इसमें से 76,116 करोड़ रुपए सिर्फ़ कॉर्पोरेट आयकर पर माफ़ किए गए. इसके दोगुना से भी ज़्यादा रक़म (1,95,679 करोड़) उत्पाद शुल्क पर माफ़ कर दी गई और आयात शुल्क पर तीन गुना से ज़्यादा (2,60,714) करोड़ रुपए माफ़ कर दिए गए.

‘सुधारों’ के युग में ये कई सालों से चल रहा है लेकिन बजट में इन आंकड़ों का ज़िक्र होना 2006-07 से ही शुरू हुआ. इसलिए टैक्स माफ़ी का ये आंकड़ा 365 खरब का है.

अगर इससे पहले के सालों के आंकड़े होते तो ये रक़म और भी ज़्यादा होती. (वैसे ये पूरी रक़म यूपीए सरकार के दौर की है.) और इस दिशा में झुकाव बढ़ता ही जा रहा है.

जैसा कि बजट दस्तावेज़ों में माना गया है, “केंद्रीय करों की माफ़ी बढ़ती ही जा रही है.“

वाक़ई में ऐसा ही है. साल 2005-06 के मुक़ाबले साल 2013-14 में माफ़ की गई रक़म में 132 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई.

सच कहा जाए तो कॉर्पोरेट क़र्ज़ माफ़ी एक तेज़ी से बढ़ता कारोबार है.

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