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आज भी यूरोप ही है फुटबॉल का घर

।। सत्येंद्र रंजन ।। वरिष्ठ खेल पत्रकार विश्वकप फाइनल में भारत के खेलने की कोई संभावना नहीं विश्वकप फुटबॉल से भारत का इतना ही नाता रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद 12 साल के अंतराल पर जब फिर से इस टूनार्मेट का ब्राजील में आयोजन हुआ, तो उसमें जिन 16 टीमों को आमंत्रित […]

।। सत्येंद्र रंजन ।।

वरिष्ठ खेल पत्रकार

विश्वकप फाइनल में भारत के

खेलने की कोई संभावना नहीं

विश्वकप फुटबॉल से भारत का इतना ही नाता रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद 12 साल के अंतराल पर जब फिर से इस टूनार्मेट का ब्राजील में आयोजन हुआ, तो उसमें जिन 16 टीमों को आमंत्रित किया गया, उनमें अपना देश भी था. लेकिन भारत सहित तीन देशों ने वह न्योता ठुकरा दिया. इसका कारण संसाधनों की कमी बतायी जाती है. वैसे यह किंवदंती भी प्रचलित है कि तब भारतीय खिलाड़ी खाली पांव खेलते थे, जबकि विश्वकप में जूते पहन कर खेलना जरूरी था, इसलिए तब हमारी टीम ब्राजील नहीं गयी. बहरहाल, फुटबॉल से भारत का संबंध बहुत पुराना है. संभवत: लैटिन अमेरिका से भी पुराना.

जानकार बताते हैं कि आधुनिक फुटबॉल के जन्मदाता अंगरेज इस खेल को दक्षिण अमेरिका (कहा जाता है कि वहां सबसे पहले ये खेल अर्जेटीना में खेला गया) से पहले इसे भारत ले आये. इसने यहां लोगों के बीच तो जगह बनायी, लेकिन इस फुटबॉल की दुनिया में भारत पिछड़ा ही रहा है.

भारत के विश्वकप फाइनल में खेलने की कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती, जबकि दक्षिण अमेरिका के देशों का इस टूर्नामेंट में बोलबाला है. विश्वकप-2014 में वहां से (मेजबान ब्राजील समेत) छह टीमें खेलने आयीं.

पांच टीमों में से चार-ब्राजील, चिली, कोलंबिया और उरुग्वे आखिरी 16 टीमों में पहुंच चुकी हैं और अर्जेटीना का पहुंचना लगभग तय है. इक्वाडोर ने भी जगह बना ली, तो यह दक्षिण अमेरिका की अभूतपूर्व सफलता होगी. उत्तर अमेरिकी महाद्वीप के मैक्सिको और कोस्टा रिका प्री-क्वार्टर फाइनल दौर में पहुंच चुके हैं. अमेरिका की संभावना बनी हुई है. चार में से तीन (चौथी टीम होंडूरास है) टीमों का आखिरी 16 में पहुंचना कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं होगी.

इन टीमों की सफलताएं अधिकांशत: यूरोपीय टीमों की कीमत है, जबकि फुटबॉल में वित्तीय और ढांचागत शक्ति के लिहाज से आज भी फुटबॉल का घर यूरोप ही है. ग्रीस ने आश्चर्यजनक रूप से अंतिम 16 में जगह बना कर ये संभावना कायम रखी है कि कि यूरोप की कम से कम छह टीमें शायद इस बार भी प्री-क्वार्टर फाइनल में पहुंच जाएं. इस तरह यूरोप 2010 के न्यूनतम रिकॉर्ड से नीचे नहीं जायेगा, हालांकि ऐसा होने की संभावना भी कम प्रबल नहीं है. अफ्रीका के घाना, अल्जीरिया और नाइजीरिया की संभावनाएं धूमिल होने के बावजूद अभी भी कायम हैं.

मगर एशिया की चुनौती लगभग खत्म हो चुकी है. यह प्रमाण है कि दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले महाद्वीप की फुटबॉल में हैसियत फिसड्डी जैसी है. मगर इसे फुटबॉल की महिमा ही कहेंगे कि इससे इस खेल की लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ता. यह गुजरते वक्त के साथ दुनिया भर में बढ़ती ही जा रही है. अमेरिका में इस बार रिकॉर्ड बना, जब उसके (अमेरिका) और पुर्तगाल के मैच को टेलीविजन पर दो करोड़ 47 लाख लोगों ने देखा. 1932 में जब ओलिंपिक्स खेल लॉस एंजिल्स में हुए थे, तब इस आधार पर फुटबॉल को उसमें शामिल नहीं किया गया था, क्योंकि ये खेल अमेरिका में लोकप्रिय नहीं था. इसकी जगह वहां के प्रिय शगल अमेरिकन फुटबॉल को जगह दी गयी थी. उसी अमेरिका में आज कम से कम विश्वकप फुटबॉल के मैच टीआरपी (टीवी दर्शक संख्या) की सूची में (अमेरिकन फुटबॉल के बाद) दूसरे नंबर पर पहुंच गये हैं.

भारत पर गौर करें, तो अभी चल रहे 20वें विश्वकप फाइनल की अपने देश में लोकप्रियता इसी से जाहिर है कि इसके प्रसारक चैनल ने क्वार्टर फाइनल और उसके बाद के मैचों के लिए विज्ञापन दरों में 25 फीसदी इजाफा कर दिया है. इससे दस सेकंेड के विज्ञापन की दरें तीन से साढ़े तीन लाख रुपये तक पहुंच गयी है. 80 फीसदी विज्ञापन स्लॉट बिक चुके हैं. भारत में सबसे महंगा बिकने वाले खेल उत्पाद- इंडियन प्रीमियर लीग- के पिछले सीजन में 10 सेकंेड के विज्ञापन स्लॉट 4 से 6 लाख रुपये में बेचे गये थे.

इसका अर्थ यह है कि भारतीय बाजार में फुटबॉल क्रिकेट को टक्कर देने के करीब पहुंचता दिख रहा है. प्रसारक चैनल ने विज्ञापन दरें तो बढ़ायीं, तो इसीलिए कि विश्वकप के मैचों को खूब टीआरपी मिली है, जबकि मैचों का समय भारतीय दर्शकों के लिहाज से सुविधाजनक नहीं है. टीवी दर्शक संख्या की माप करनेवाली एजेंसी टैम के रिसर्च के अनुसार 2011 में भारत में आठ करोड़ 30 लाख फुटबॉल दर्शक थे, जबकि क्रिकेट के टीवी दर्शकों की संख्या सवा 12 करोड़ के करीब थी. भारत में ज्यादातर फुटबॉल दर्शक यूरोपीय फुटबॉल लीग ने बनाये हैं. इससे उच्च क्रय शक्ति वाले और नौजवान वर्गो में फुटबॉल प्रेमियों का बड़ा समूह तैयार हुआ है. इससे भारत फुटबॉल के आकर्षक बाजार के रूप में उभर रहा है.

इसलिए यह कोई अनहोनी घटना नहीं है कि अगले सितंबर से शुरू रही इंडियन सुपर लीग (आइएसएल) का इंगलिश प्रीमियर लीग (इपीएल) के साथ महत्त्वपूर्ण करार हुआ है. आइएसएल के आयोजकों में रिलायंस इंडस्ट्रीज का आइएमजी ग्रुप और रुपर्ट मरडॉक का स्टार टीवी समूह शामिल है. उधर, इपीएल दुनिया की सबसे लोकप्रिय लीग है.

अब आइएसएल का ढांचा खड़ा करने, संचालन, मार्केटिंग, रेफरी ट्रेनिंग, स्टेडियम प्रबंधन, खिलाड़ियों के विकास, भ्रष्टाचार नियंत्रण आदि मामलों में उसके अनुभव का लाभ मिलेगा. इससे फुटबॉल का बाजार कितना बढ़ेगा और उसके परिणाम स्वरूप इस खेल का भारत में वास्तव में कितना प्रसार होगा, यह देखने की बात है. फिलहाल, भारतीय बाजार की ताकत को पहचानते हुए ही फीफा ने 2017 के अंडर-17 विश्वकप फुटबॉल टूनार्मेट की मेजबानी भारत को सौंपी है.

आधुनिक फुटबॉल (या कोई भी खेल) जिस भूमंडलीकृत रूप में हमारे सामने है, वह असल में अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और आधुनिक संचार एवं सूचना तकनीक के प्रसार का परिणाम है. खेलों के राजा जैसी फुटबॉल की छवि बनाने में इसकी सरलता, सुग्राह्यता और छोटी अवधि का बड़ा योगदान है. इन सारे पहलुओं के सम्मिश्रण से कैसा जादू या दीवानगी पैदा होती है, उसकी झलक इस वक्त सारी दुनिया देख रही है. फुटबॉल की ये महिमा फिलहाल चरमोत्कर्ष पर है.

फुटबॉल से भारत का संबंध बहुत पुराना है. जानकार बताते हैं कि आधुनिक फुटबॉल के जन्मदाता अंगरेज इस खेल को दक्षिण अमेरिका से पहले इसे यहां ले आये. इस खेल ने लोगों के बीच जगह तो बनायी, लेकिन इस खेल की दुनिया में भारत पिछड़ा ही रहा है.

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