पूरब से आने वाली सड़क जैसे ही मोसूल की सरहद से गुजरती है, आप पहली जांच चौकी पर ही एक काले बैनर को लहराता हुआ पाएंगे. इस चौकी पर आईएसआईएस के लड़ाकों का कब्जा है.
सेना और विद्रोहियों के बीच जारी घमासान के बीच भी एक विदेशी के लिए मोसूल जाना काफ़ी सुरक्षित है.
इस्लामिक स्टेट इन इराक ऐंड अल-शाम (आईएसआईएस) ख़ुद को चर्चाओं से दूर रखने की कोशिश करते हुए इराक़ के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसूल पर शासन कर रहा है.
वो दूसरी विद्रोही ताकतों जैसे- असंतुष्ट सुन्नी जनजातियों, सेना के पूर्व अधिकारियों, सद्दाम हुसैन की पुरानी बाथ पार्टी के समर्थकों और दूसरे गुटों के साथ वहाँ नियंत्रण बनाए हुए है.
आईएसआईएस विदेशियों के अपहरण में शामिल रहा है और हाल में उसने तुर्की के 49 नागरिकों को मोसूल से अगवा किया था और उनकी रिहाई के लिए काफी मोलभाव भी हो रहा है.
बेहतर हालात?
मोसूल की करीब 20 लाख आबादी में जो लोग विद्रोहियों के शहर में कब्जा जमाने तक भाग नहीं सके या कुछ एक जो लौटकर अपने घर वापस आ गए हैं, उनका जीवन कुछ हद तक बेहतर ही हुआ है.
निवासियों का कहना है कि जब सरकारी बल यहां था तो शहर में कई जांच चौकियां, अस्थाई दीवारें और बैरियर थे, जिनमें से ज्यादातर को अब हटा दिया गया है. इससे शहर में आना-जाना आसान हुआ है.
यहां हमेशा बम विस्फोट और गोलीबारी होती रहती थी, अब वे भी नहीं होते. स्वाभाविक भी है क्योंकि इन हमलों के पीछे विद्रोही ही रहते थे. इसलिए अब हालात बदल गए हैं.
शहर से बाहर आने और शहर में जाने वाले ट्रैफिक को देखकर संकेत मिलता है कि हालात सामान्य हो गए हैं. ये अलग बात है कि ऐसा सिर्फ ऊपरी तौर पर ही दिखाई देता हो.
मोसूल से जितनी गाड़ियां बाहर आ रही हैं, उससे कहीं अधिक शहर में दाखिल हो रही हैं. जो गाड़ियाँ बाहर आ रही हैं वे भी शरणार्थियों से खचाखच भरी नहीं हैं.
महिलाओं और बच्चों के साथ कार में बैठे एक व्यक्ति ने हंसते हुए कहा, "हम परिवार से मिलने निकले हैं."
भविष्य की चिंता
उन्होंने बताया, "आम सेवाओं के अलावा हालात भी ठीक हैं. ये सुरक्षित है. लेकिन लोग चिंतित हैं. वे नहीं जानते हैं कि मोसूल का क्या होगा."
उनका कहना था, "उन्हें डर है कि इराकी सेना इसे वापस पाने की फिर कोशिश कर सकती है. हमें गोलाबारी और हवाई हमलों का डर है."
शहर से बाहर आने वाले ज्यादातर लोग पानी, बिजली और पेट्रोल की कमी जैसी शिकायतें कर रहे हैं. पेट्रोल की कीमत तो करीब के कुर्द इलाकों के मुकाबले कई गुना बढ़ चुकी हैं.
महिलाओं का कहना है कि उन्हें बुर्का पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है, हालांकि कई महिलाएं ऐसा कर रही हैं.
इन सभी का कहना था कि आईएसआईएस उन्हें परेशान नहीं कर रहा है.
लेकिन ऐसी खबरें मिलीं हैं कि आईएसआईएस ने शहर की कुछ समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को ध्वस्त किया है.
ध्वंस की खबरें
बताया जा रहा है कि 19वीं शताब्दी के प्रसिद्ध संगीतकार ओथमान अल-मोसूली और कवि अबु तम्माम की मूर्तियों और 12वीं सदी के इतिहासकार इब्न अल-अथीर की मज़ार को तोड़ दिया गया है.
ऐसा लगता है कि पैगंबर नोआ की मजार अभी तक बची हुई है, हालांकि सरकार का अनुमान था कि इसे तोड़ दिया जाएगा.
तो क्या ये सुन्नी कट्टरपंथी वास्तव में बदल गए हैं या आईएसआईएस सिर्फ़ और समय हासिल करने की कोशिश कर रहा है. या कहीं ऐसा तो नहीं कि ये संगठन लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है जिससे उसे वहाँ से निकालना या फिर अलग-थलग करना मुश्किल हो जाए.
एक वरिष्ठ कुर्द राजनेता ने बताया, "अल-ज़रक़ावी के तहत इराक में पुराने अल-कायदा के विपरीत ये लोग बगदाद के अत्याचारी शिया शासन के खिलाफ लोगों के संरक्षक के रूप में सामने आ रहे हैं "
उन्होंने बताया, "वो हालात से काफी बेहतर ढंग से निपट रहे हैं और ये बात उन्हें अधिक खतरनाक बना देती है. क़बायलियों को उनके खिलाफ करना काफी कठिन होगा."
आईएसआईएस ने जब सीरिया में रक़्क़ा की प्रांतीय राजधानी पर नियंत्रण किया था तो वहाँ भी पहले वे काफ़ी उदारवादी दिखाई दिए थे. मगर बाद में उन्होंने दूसरे धड़ों को वहाँ से खदेड़ दिया.
इसके बाद आईएसआईएस ने एक सख्त इस्लामी शासन लागू किया. संगीत पर प्रतिबंध, महिलाओं के लिए सख़्त ड्रेस कोड, सिर काटने जैसी सख्त सजा का प्रावधान, जहां उन्हें लगता है कि मूर्ति पूजा हो रही है ऐसे चर्च या किसी भी स्मारक को तोड़ना, उनके कारनामो में शामिल हैं.
इसमें आश्चर्य नहीं है कि मोसूल में कई लोग भविष्य को लेकर आशंकित हैं.
हो सकता है कि मौजूदा शांति बहुत लंबे समय तक कायम न रहे. साथ ही ये कल्पना करना भी मुश्किल है कि भविष्य की किसी भी संभावना में और अधिक उथल-पुथल शामिल नहीं होगी.
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