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फीफा वर्ल्ड कप:एक नायक का इंतजार

अभिषेक दुबे, वरिष्ठ खेल पत्रकार भारत की नौजवान पीढ़ी ‘ये दिल मांगे मोर’ की पीढ़ी है. विश्व इनके लिए अब ‘ग्लोबल विलेज’ बन चुका है और इस पीढ़ी को अब हर विधा में अपनी माटी के नायक की तलाश रहती है. फुटबॉल भी इससे अछूता नहीं है. दिल्ली, कोलकाता, गोवा, रांची और केरल में तो […]

अभिषेक दुबे, वरिष्ठ खेल पत्रकार

भारत की नौजवान पीढ़ी ‘ये दिल मांगे मोर’ की पीढ़ी है. विश्व इनके लिए अब ‘ग्लोबल विलेज’ बन चुका है और इस पीढ़ी को अब हर विधा में अपनी माटी के नायक की तलाश रहती है. फुटबॉल भी इससे अछूता नहीं है. दिल्ली, कोलकाता, गोवा, रांची और केरल में तो हर कोई फुटबॉल में अपने नायक को तलाश रहा है और अपनी टीम की जर्सी पहन कर वर्ल्‍ड कप में चीयर करने को बेताब है.

‘ओले ओला’ यानी ‘हम एक हैं’ की धुन के बीच, दुनिया का सबसे लोकप्रिय टूर्नामेंट 64 साल बाद विश्व मानचित्र के अपने सबसे चहेते घर, ब्राजील लौट आया है. यहां अगले एक महीने तक, दुनिया में इस खूबसूरत खेल को खेलनेवाले 207 देशों में से 32 सबसे धाकड़ टीम बादशाहत के लिए 12 स्टेडियमों में खेले जानेवाले 64 मैचों में आपस में टकरायेंगी. फुटबॉल के इस दीवाने देश में पहला मैच साओ पाउलो शहर में खेला गया. इसमें मेजबान टीम और क्रोएशिया के बीच टक्कर के साथ ही ‘फीफा वर्ल्‍ड कप-2014’ का विधिवत आगाज भी हो गया है.

इस बीच लोगों के मन में कई सवाल भी उठे. मसलन, क्या ब्राजील का एक बड़ा तबका ‘ओले ओला’ (फीफा वर्ल्‍ड कप-2014 का आधिकारिक गीत) में पारंपरिक अपनेपन का अहसास नहीं करा पा रहा है? क्या अर्थव्यवस्था से जुड़े सवालों को लेकर ब्राजील को पीले और हरे रंग में रंगने में देरी हुई? और क्या पॉप स्टार जेनिफर लोपेज के कार्यक्रम होने या न होने को लेकर आखिरी वक्त तक जारी रहे असमंजस के कारण उद्घाटन समारोह के रंग में कुछ भंग पड़ गया? हालांकि, पहले गेम के लिए हूटर बजते ही ये सब सवाल बेमानी हो गये हैं.

इन सवालों को पीछे छोड़ते हुए अब दुनिया के 200 से अधिक देशों की करोड़ों टकटकी निगाहें अगले एक महीने तक इस टूर्नामेंट में इस्तेमाल की जा रही ‘एडिडास ब्रजूका’ बॉल पर थम जायेंगी. इस खेल के दीवाने दिन-रात मेस्सी, नेयमार, रोनाल्डो और पिरलो समेत फुटबॉल के स्टार जांबाजों का नाम जपेंगे और ब्राजील, अर्जेटीना, नीदरलैंड्स समेत 32 टीमों के नाम पर आपस में लड़ेंगे-भिड़ेंगे, हंसेंगे और रोयेंगे.

यह सच है कि फुटबॉल दुनिया का सबसे खूबसूरत और सबसे सरल खेल है. इसमें भी दो राय नहीं कि विश्व के इस सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट को जीतना दुनिया के हजारों फुटबॉल खिलाड़ियों का आखिरी सपना होता है. लेकिन, असली जिंदगी की तरह ही खेल की यह दुनिया का सबसे बड़ा मेला अकेलेपन का भी अहसास कराता है. दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादीवाले देश, चीन और भारत, इस मेले में सक्रिय तौर पर हिस्सा लेने का दमखम नहीं रखते. ब्राजील में स्थानीय समय 3:15 बजे जब ‘फीफा वर्ल्‍ड कप 2014’ का विधिवत आगाज हुआ, भारत और चीन के फुटबॉल प्रेमी भी इसमें शरीक हो गये. इंगलिश प्रीमियर लीग ने वर्ल्‍ड कप में हिस्सा लेनेवाले बड़े खिलाड़ियों को घर-घर में पहुंचा दिया है.

अब फुटबॉल के भारतीय दीवाने भी इस टूर्नामेंट के खत्म होने तक ब्राजील से लेकर अर्जेटीना, जर्मनी से लेकर नीदरलैंड्स, पुर्त्तगाल से लेकर स्पेन और फ्रांस से लेकर इंग्लैंड समेत अलग-अलग खेमों में बंट जायेंगे. वे क्रिकेट के सितारों को भुला कर फुटबॉल के स्टार जांबाजों के आईने में इस खेल में बादशाहत की जंग का दीदार करेंगे. टेलीविजन और इंटरनेट ने विश्व फुटबॉल को हर भारतीय घर में ला दिया है. चेन्नई से लेकर बेंगलुरु और कोलकाता से लेकर दिल्ली तक प्रमुख भारतीय महानगरों में इंगलिश प्रीमियर लीग नौजवान पीढ़ी के लिए स्टाइल स्टेटमेंट बन चुकी है. यह पीढ़ी इस बात पर बहस करती है कि नेयमार, मेस्सी, रोनाल्डो समेत टॉप स्टार में से किसे मिलेगा गोल्डन बूट.

इतिहास और परंपरा के पुट ने आज भी भारत के कई हिस्सों को फुटबॉल से जोड़े रखा है. पश्चिम बंगाल में सैकड़ों परिवार फुटबॉल वर्ल्‍ड कप का उसी तरह इंतजार करते हैं, जैसे दुर्गा पूजा का. वहां कई परिवार ऐसे हैं, जो महीनों तक यह सोच कर पैसे जमा करते हैं कि जिंदगी में एक बार वर्ल्‍ड कप वाले देश में जाकर ब्राजील या अर्जेटीना जैसी टीम के लिए चीयर कर सकें. गोवा में फुटबॉल वर्ल्‍ड कप के दौरान कार्निवाल जैसा माहौल रहता है और पुर्त्तगाल से जुड़े मैच में तो अजीब तरह की दीवानगी छा जाती है.

केरल के कई हिस्सों में सैकड़ों ऐसे परिवार हैं, जो वर्ल्‍ड कप के दौरान घर में होनेवाले बच्चों के नाम भी फुटबॉल के बड़े सितारों के नाम पर रखते हैं. वहां आपको पेले से लेकर माराडोना, मेस्सी से लेकर जिदान तक सब मिल जायेंगे. पूर्वोत्तर के कई इलाकों में रहनेवाले नौजवान आज भी अपनी दिनचर्या को तबतक पूरा नहीं मानते, जब तक कि फुटबॉल का एक मैच नहीं खेल लेते. लेकिन, इस सिक्के का एक पहलू और भी है. भारतीय महानगरों के मॉल्स से लेकर गांवों के चौपाल तक, फुटबॉल मैच देख रहे तमाम दीवानों को यह मलाल क्यों आता है कि ‘हम ब्राजील में क्यों नहीं?’

भारत की नौजवान पीढ़ी ‘ये दिल मांगे मोर’ की पीढ़ी है. विश्व इनके लिए अब ‘ग्लोबल विलेज’ बन चुका है और इस पीढ़ी को अब हर विधा में अपनी माटी के नायक की तलाश रहती है. फुटबॉल भी इससे अछूता नहीं है. दिल्ली, कोलकाता, गोवा और केरल में तो हर कोई फुटबॉल में अपने नायक को तलाश रहा है और अपनी टीम की जर्सी पहन कर वर्ल्‍ड कप में चीयर करने को बेताब है. नियति और इतिहास ने भारत को यह मौका दिया था, जिससे आज की पीढ़ी शायद रूबरू नहीं है.

1950 के फीफा वर्ल्‍ड कप में भारत को भाग लेने का मौका मिला था. क्वालिफाइंग स्टेज में भारत का जिन देशों से मुकाबला होना था, उन्होंने खुद को मैच से अलग कर लिया था. लेकिन, ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने तमाम तरह के बहाने बनाये- पैसे की कमी है, अभ्यास के लिए वक्त नहीं है और ओलिंपिक्स को तवज्जो देना है. जाहिर है, जब भारत को मौका मिला, वह इसकी अहमियत को नहीं समझ सका था और आज जब हम इसकी अहमियत समझ पाये हैं, एक मौके के लिए तरस रहे हैं. फुटबॉल वर्ल्‍ड कप में हिस्सा लेने की कड़ी में, अंडर 17 वर्ल्‍ड कप के आयोजन से लेकर इंडियन सुपर लीग कराये जाने जैसे छोटे कदम उठाये तो गये हैं, लेकिन अरमानों को पंख देने के लिए अभी लंबा फासला तय करना है.

एक महीने बाद इस बात का पता चल जायेगा कि विश्व फुटबॉल में एक नये बादशाह की ताजपोशी होगी या फिर पुराना बादशाह ही अपना ताज बनाये रखने में कामयाब होगा. ‘हैंड ऑफ द गॉड’ से लेकर ‘हेड बट’ की अगली कड़ी क्या होगी, फुटबॉल का ‘गोल्डन बूट’ किसके नाम होगा, यह सब भी हर किसी के जुबान पर छा जायेगा. ब्राजील अपनी सरजमीं पर वर्ल्‍ड कप जीतने के लिए बेताब है, जबकि दुनिया की दूसरी टीमें उसे रोकने के लिए आतुर. ब्राजील में फीफा वर्ल्‍ड कप-2014 के लिए बना ‘काउंट डाउन क्लॉक’ साल, महीने, घंटे और मिनट की उल्टी के बाद 0-0-0 दिखा रहा है. कहते हैं कि ब्राजील का एक आदमी इंग्लैंड गया था, जहां उसने फुटबॉल सीखा और अपने देश वापस लौट आया. यह वही ट्रेनर था, जिसने ब्राजील में ‘फुटबॉल क्रांति’ की नींव रखी थी, जिस पर पांच बार विश्व चैंपियन बन कर ब्राजील एक बुलंद इमारत में तब्दील हो चुका है. सवा सौ करोड़ लोगों के देश भारत को भी इंतजार है एक ऐसे ही नायक और एक ऐसे ही कदम का.

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