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सर्दी की आहट और आहार
गरमी और बारिश के उमस भरे मौसम में किचेन में खड़ा होना बहुत मुश्किलभरा होता है. लेकिन सर्दियों के आगमन के साथ ही आग के सामने बैठना अच्छा लगता है, इसलिए किचेन गर्म रखने का एक विकल्प बनता है. यही वजह है कि सर्दियों में ऐसे व्यंजन पकाये और खाये-खिलाये जाते हैं, जो लंबा समय […]
गरमी और बारिश के उमस भरे मौसम में किचेन में खड़ा होना बहुत मुश्किलभरा होता है. लेकिन सर्दियों के आगमन के साथ ही आग के सामने बैठना अच्छा लगता है, इसलिए किचेन गर्म रखने का एक विकल्प बनता है. यही वजह है कि सर्दियों में ऐसे व्यंजन पकाये और खाये-खिलाये जाते हैं, जो लंबा समय लेते हैं. सर्दियों के आहार के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत...
शरद ऋतु के आगमन के साथ हवा में हल्की सी खुनकी महसूस होने लगती है और मन मचलने लगता है मिष्ठान और पकवान चखने के लिए. शायद इसी लिए हमारे पुरखों ने इतने सारे उत्सवों-पर्वों की कल्पना की, ताकि हम अपने भोजन में स्वाभाविक रूप से इनको शामिल कर लें. नवरात्रि के उपवास वाले अंतराल के बाद दुर्गा पूजा के दौरान सारी कमी दूर करने की होड़ लग जाती है और जीभर खाने-पीने की ‘प्रतियोगिता’ दिवाली, छठ पूजा, बड़े दिन (क्रिसमस), नववर्ष, माघ मेले और पोंगल तक फैली रहती है.
देश के विभिन्न हिस्सों में इस मौसम के अपने विभिन्न व्यंजन हैं. कुछ मिठाइयां हैं- मसलन खीर, हलवे आदि सभी जगह लोकप्रिय हैं, तो कुछ व्यंजन महज कुछ ही जगहों के साथ जुड़े हुए हैं.
अगर मांसाहार से परहेज न हो, तो आप निहारी, पाये, मौलहम या तार-कोरमा सरीखे रोगन में तर-बतर चीजों को अपनी थाली में जगह दे सकते हैं. मालपुए, शाही टुकड़े, इमरतियां, गुलाब जामुन आदि कई मिष्ठान प्रकट होने लगते हैं. खुरचन-रबड़ी, नये गुड़ के संदेश का लालच बड़े-बड़ों का संयम भ्रष्ट कर देता है.
शाकाहारी शौकीनों के लिए खिचड़ी के चार यारों में घी की स्वादिष्ट महिमा सर्वोपरि है. कुछ पारंपरिक सब्जियां मसलन, हल्दी और मेथी की अपनी गरम तासीर के कारण रोज के मेनू में अपनी जगह बनाने लगती हैं.
जहां गरमियों और बारिश के उमस भरे दिनों में रसोई में काम करना कष्टप्रद होता है, वहीं जाड़े के आगमन के साथ आग के सामने बैठना अच्छा लगने लगता है.
शायद यही कारण है कि ऐसे व्यंजन पकाये, खाये और खिलाये जाते रहे हैं, जो लंबा समय लेते हैं. मुसल्लम मुर्ग-मछली हो या लौकी-गोभी, आदि सब्जियां इस मौसम की सौगात हैं. मक्के की रोटी और सरसों के साग की जोड़ी बिना ताजे मथे मक्खन के लोंदे के अधूरी लगती है. दम आलू हों या बिरयानी, इनका असली रस जाड़े में ही उठाया जा सकता है.
इन्हीं दिनों शरबत-शिकंजी को विस्थापित कर देते हैं धीमी आंच पर काढ़ा, हल्दी खजूर वाला केसरिया दूध या फिर मसालेदार दूधिया चाय.
दिन की धूप- जब कभी नसीब होती है- तेज लगती है. उस वक्त फलों की चाट, ताजा सब्जियों का मिर्च-मसाले वाला सलाद अच्छा लगता है. गुड़ की पट्टी, चिक्की, गजक और रेवड़ियां, सूखा या रसदार अंगूरी पेठा किसी भी वक्त नजर आकर हमें अपनी दावत कबूल करने का न्यौता देने लगते हैं, जिसे अस्वीकार करना बहुत कठिन होता है.
जरा ठहरकर विचारें कि कैसे बड़ी खाद्य पदार्थ निर्माता देसी-विदेशी कंपनियों के विज्ञापनों के मायाजाल में फंसकर हमने आज तमाम कचरा खाना शुरू कर दिया है.
समय की बचत और महिलाओं को रसोई की गुलामी से मुक्ति दिलाने के बहाने ऐसे सुविधाजनक तुरंत तैयार हो जानेवाले खाद्य पदार्थों से बाजार पटा हुआ है. कुदरती स्वाद-रंग-रूप की याद भी नौजवान पीढ़ी को नहीं है. शरीर को तंदुरस्त रखने के लिए पैकेट बंद फैक्ट्रियों में बनी भोजन सामग्री में ऊपर से विटामिन आदि डाले जाते हैं. इसे खराब होने से बचाने के लिए जिन रसायनों का इस्तेमाल आंख मूंदकर किया जाता है, उनके बारे में अब उपभोक्ता सतर्क होने लगे हैं.
यह संतोष का विषय है कि नये सामाजिक मीडिया ने लोगों का ध्यान अपने इलाके, अपने समुदाय के पारंपरिक खानपान और अपनी पहचान की ओर दिलाया है. यह आशा निर्मूल नहीं कि यह जागरूकता मौसम के अनुकूल स्थानीय पारंपरिक व्यंजनों को लुप्त होने से बचायेगी.
मुसल्लम मुर्ग-मछली हो या लौकी-गोभी आदि सब्जियां सर्दी के मौसम की सौगात होती हैं.
मक्के की रोटी और सरसों के साग की जोड़ी बिना ताजे मथे मक्खन के लोंदे के अधूरी लगती है. गुड़ की पट्टी, चिक्की, गजक और रेवड़ियां, अंगूरी पेठा हमें अपनी दावत कबूल करने का न्यौता देने लगते हैं, जिसे मना करना कठिन होता है.
दिन की धूप तेज लगती है, तब फलों की चाट, ताजा सब्जियों का मिर्च-मसाले वाला सलाद अच्छा लगता है.
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