वाशिंगटन : वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक दवाओं की प्रमाणिकता की जांच के लिए पेपर पर आधारित एक ऐसी जांच प्रणाली विकसित की है, जिससे कुछ ही मिनट में पता चल जायेगा कि दवाई असली है या नकली. दवाई नकली होने पर यह कागज खास तरह के लाल रंग में तब्दील हो जाता है.
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विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर घटिया दवाओं का उत्पादन और वितरण होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 10 फीसदी दवाइयां फर्जी हो सकती हैं. उनमें से 50 फीसदी एंटीबायोटिक के रूप में होती हैं.
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नकली एंटीबायोटिक दवाइयों से न केवल मरीज की जान को खतरा पैदा होता है, बल्कि दुनिया भर में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध की बड़े पैमाने पर समस्या भी पैदा होती है. अनुसंधानकर्ताओं ने कागज आधारित जांच का विकास किया है, जिससे तेजी से इस बात का पता चल सकता है कि दवाई असली है या नहीं या क्या उसमें बेकिंग सोडा जैसी चीजें मिलायी गयी हैं.