पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के नजीबाबाद इलाके के चार दोस्त ‘हिंदू-मुस्लिम सिख-ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई’ के नारे को मूर्त रूप देने की कोशिश में हैं.
अलग-अलग धर्मों को मानने वाले ये चार दोस्त देश को एकता का संदेश देना चाहते हैं.
इन चार दोस्तों और उनके परिवार के लोगों को न तो मंदिर जाने में परहेज है और न ही मस्जिद. उनके लिए चर्च और गुरुद्वारा सभी एक जैसे पवित्र धार्मिक स्थल हैं.
यहां तक कि इन सभी ने देश की सांप्रदायिक एकता की ख़ातिर साथ मिलकर चार धाम तक की यात्रा एक साथ की.
मिसाल बने चार दोस्त
सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल बने ये चार दोस्त हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म से हैं.
नजीबाबाद की अदब सिटी निवासी हाजी अब्दुल मलिक मुस्लिम जबकि उनके साथी नजीबाबाद के आदर्श नगर निवासी दिलबाग सिंह सिख हैं.
दोस्तों की टोली में दिल्ली के अंबेडकर नगर निवासी रामनिवास पाल हिंदू हैं जबकि चौथे दोस्त प्रमोद मसीह ईसाई हैं.
ये चारों पिछले लगभग 30 वर्ष से दोस्त हैं.
मलिक बताते हैं, "हम सभी दोस्त 80 के दशक में दिल्ली के मदनगीर गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में सातवीं क्लास में साथ पढ़ते थे."
"धीरे-धीरे हम चारों की दोस्ती बढ़ती गई और आज हमारे परिवार एक दूसरे के काफी करीब आ चुके हैं."
इन दोस्तों के परिवारों में आज इतनी घनिष्ठता बन गई है कि कोई भी तीज-त्योहार ये एक दूसरे के साथ मनाए बिना नहीं रह पाते हैं.
देश को देना चाहते हैं संदेश
रामनिवास कहते हैं, "ईद का त्योहार होता है तो मलिक को हम सबसे पहले चांद की मुबारकबाद देते हैं."
"इसके बाद एक-एक कर सभी दोस्त और उनके परिवार के लोग एक दूसरे को मुबारकबाद देना शुरू कर देते हैं."
"ईद पर सारे दोस्त और परिवार के लोग एकत्रित होते हैं तो ईद का मज़ा दोगुना हो जाता है. भाभी हमारे लिए शीर लाती हैं तो सभी खाने के लिए उतावले हो जाते हैं."
त्योहार ईद का हो, दीपावली का या फिर क्रिसमस या प्रकाश पर्व, सभी दोस्त और उनके परिवार के लोग इन त्योहारों का पूरा आनंद लेते हैं.
दिलबाग सिंह कहते हैं, "समझ नहीं आता कैसे देश में हिंदू मुस्लिम दंगे होते हैं. हम दोस्तों ने तय किया है कि हम देश के लिए सांप्रदायिक एकता की मिसाल कायम करेंगे."
"जिससे देश में कोई दंग-फसाद न हो. लोग देखें कि जब हम लोग सालों से एक साथ रह सकते हैं तो फिर वे क्यों नहीं."
‘धर्म आड़े नहीं आया‘
ये दोस्त देश में सांप्रदायिकता बढ़ने के पीछे नेताओं को दोष देते हैं.
प्रमोद मसीह कहते हैं, "हम सभी दोस्त अलग-अलग धर्मों से हैं. हमारी दोस्ती को 30 वर्ष से अधिक का समय होने को है लेकिन कभी भी धर्म आड़े नहीं आया."
ये सभी दोस्त एक दूसरे के परिवारों से भी गहरा लगाव रखते हैं. इन दोस्तों की पत्नियां उन्हें अपने देवर-जेठ जितना ही सम्मान देती हैं.
अब्दुल मलिक की पत्नी शगुफ्ता कहती हैं, "मेरे लिए दिलबाग भाईजान, रामनिवास तथा प्रमोद मसीह भाईजान सगे देवर-जेठ जैसे ही हैं."
"हमने कभी इन दोस्तों को धर्म के मसले पर उलझते हुए नहीं देखा है. नमाज का वक्त होता है तो सभी दोस्त इस बात का लिहाज करते हैं."
"मैं कभी रामनिवास भाईजान या फिर इनके दोस्तों में से किसी के भी घर जाती हूं तो नमाज अदा करती हूं."
"मेरे लिए वज़ू के पानी की व्यवस्था उनकी पत्नियां करती हैं. वे मेरे लिए बहनों से भी बढ़कर हैं."
चार धाम यात्रा
मलिक कंस्ट्रक्शन के कारोबार में हैं जबकि दिलबाग किसान हैं.
प्रमोद मसीह दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं, वहीं रामनिवास का दिल्ली के ओखला इंडस्ट्रियल एरिया में रेस्तरां है.
सबसे दिलचस्प बात ये है कि इन दोस्तों ने देश में आपसी सौहार्द को कायम करने के लिए चार धाम यात्रा अपने परिवारों के साथ शुरू की है.
अब्दुल मलिक कहते हैं, "यूं तो हम सभी में ये मोहब्बत तीस सालों से है लेकिन हमें जब अपने देश में सांप्रदायिक दंगों की खबरें सुनाई देती थी तो तकलीफ होती थी."
"हम सब ने मिलकर तय किया कि क्यों ना हमारी ये दोस्ती देश के काम आए. पत्नी से कहा, सामान बांधो. बस फिर क्या था हम सब ने परिवारों के साथ-साथ चार धाम की यात्रा शुरू कर दी."
इन सभी दोस्तों ने 20 जून को नजीबाबाद से केदारनाथ और बद्रीनाथ के लिए यात्रा शुरू की.
रामनिवास कहते हैं, "पिछले 30 सालों से हम सभी दोस्त और उनके परिवार के लोग देशभर के तमाम मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च गए."
"लेकिन चार धाम यात्रा का विचार दोस्तों ने रखा तो मुझे बहुत अच्छा लगा."
"हाजी अब्दुल भी अपने परिवार के साथ चल दिए. हमने सोच लिया है कि हमारी दोस्ती से शायद देश का कुछ भला हो जाए."
चार धाम यात्रा के दौरान पढ़ी नमाज़
20 जून को चार धाम यात्रा के लिए निकलने के बाद सभी दोस्त और उनके परिवार के लोग हंसी खुशी रहे.
अब्दुल बताते हैं, "शुक्रवार होने के कारण मुझे और मेरे बेटे को नमाज अदा करने थी. हम जोशीमठ में थे."
"दोस्तों ने मस्जिद खोजने में मेरी मदद की. मैंने नमाज अदा की तो दोस्त और उनके परिवार के लोग मस्जिद के बाहर हमारा इंतजार करने लगे."
"थोड़ी देर बाद हम नमाज़ पढ़कर निकले और आगे बढ़ गए."
करीब पांच दिन के बाद ये सभी लोग केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा से लौट आए.
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