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शरीफ का आना संबंधों में बेहतरी की गारंटी नहीं

(डॉ अमित रंजन फेलो, आइसीडब्ल्यूए) एनडीए की तरफ से नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के अन्य राष्ट्राध्यक्षों के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को निमंत्रण देना एक स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसिजर है, जिसके तहत ऐसे कार्यक्रमों में उन देशों के नेताओं को निमंत्रित किया जाता है, जिससे हमारा जुड़ाव […]

(डॉ अमित रंजन फेलो, आइसीडब्ल्यूए)

एनडीए की तरफ से नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के अन्य राष्ट्राध्यक्षों के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को निमंत्रण देना एक स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसिजर है, जिसके तहत ऐसे कार्यक्रमों में उन देशों के नेताओं को निमंत्रित किया जाता है, जिससे हमारा जुड़ाव है. ऐसा कर हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी वैधता को प्रदर्शित करते हैं.

मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने या पाकिस्तान में नवाज शरीफ ने गद्दी संभाली, तो इन्होंने भी निमंत्रण भेजा था. नवाज शरीफ ने मोदी के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए भारत आने का फैसला किया है, यह अच्छी बात है. लेकिन, इस दौरे से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को बेहतर बनाया जा सकेगा, या उसमें सुधार आयेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता. इस संक्षिप्त यात्र के दौरान दोनों नेताओं के बीच बातचीत भी होगी, लेकिन यह बातचीत किसी खास दिशा में या खास नतीजे पर पहुंचेगी, इस विषय में किसी भी तरह का भ्रम नहीं होना चाहिए.

मोदी ने आमंत्रण दिया और नवाज शरीफ भारत आ रहे हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हैं. वाजपेयी नेहरूकालीन समाजवाद के पके-पकाये नेता थे. वे विदेश मंत्री भी रहे थे. मोदी की छवि प्रो हिंदुत्व ग्रुप के नेता की है. इसलिए अभी तो यही लगता है कि दोनों देशों मे समस्याएं बनी रहेंगी. ऐसा तब तक रहेगा, जब तक बहुत साहसिक कदम नहीं उठाये जायेंगे. नवाज के भारत दौरे के पीछे कई कारण नजर आते हैं. अभी-अभी हेरात में भारतीय दूतावास पर आतंकी हमला हुआ है.

इस हमले के विषय में यह आरोप भी लग रहे हैं कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह व आइएसआइ की इस हमले में संलिप्तता है. इसलिए नवाज को ऐसा लगा होगा कि भारत, पाक विरोधी रुख न अख्तियार कर ले. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी की तरह ही नवाज शरीफ की छवि भी व्यावसायिक घरानों व समूहों के हितकारी की है. इसलिए इस दौरे के बाद भले ही सामरिक दृष्टि से दोनों देशों के संबंध बेहतर न हों, आर्थिक संबंधों में बेहतरी आयेगी और आर्थिक राजनय बढ़ेगा. कारगिल के समय जब सेना लड़ रही थी, उस समय भी ऐसा ही हुआ था. अगर नवाज या मोदी संबंधों में बेहतरी भी लाना चाहेंगे, तो पाकिस्तान में कट्टरवादी मुसलिम समूह और भारत में हिंदुत्व सर्मथक समूह एक सीमा से आगे रिश्तों में सुधार नहीं होने देगा. दोनों को अपने-अपने छवि के अनुरूप घरेलू समर्थकों की आंकाक्षाओं पर भी खड़ा उतरना है. जहां तक सार्क देशों के साथ संबंध का सवाल है, जब तक भारत और पाकिस्तान इसे लेकर गंभीर नहीं होंगे, सार्क सम्मिट का आयोजन सिर्फ खानपूर्ति मात्र ही बना रहेगा.

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