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नौसैन्य सहयोग बढ़ाने पर भारत का जोर

मानसिक, शारीरिक और तकनीकी तौर पर सेना का मनोबल ऐसे युद्धाभ्यासों से बढ़ता है. दो देशों की सेनाओं का आपस में भरोसा भी बढ़ता है. भारत, जापान और अमेरिका के बीच जो नेवल एक्सरसाइजेज होनेवाले हैं, वे रक्षा-सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी हैं. इनमें से जापान और अमेरिका के बीच में सिक्योरिटी पार्टनरशिप है. भारत […]

मानसिक, शारीरिक और तकनीकी तौर पर सेना का मनोबल ऐसे युद्धाभ्यासों से बढ़ता है. दो देशों की सेनाओं का आपस में भरोसा भी बढ़ता है.

भारत, जापान और अमेरिका के बीच जो नेवल एक्सरसाइजेज होनेवाले हैं, वे रक्षा-सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी हैं. इनमें से जापान और अमेरिका के बीच में सिक्योरिटी पार्टनरशिप है. भारत का अभी किसी के साथ ऐसा पार्टनरशिप नहीं है. इसलिए भारत के लिए यह जरूरी है कि ऐसी एक्सरसाइजेज का हिस्सा बने, ताकि आनेवाले समय में बातचीत और समझौतों के जरिये कोई पार्टनरशिप बने. इसमें आॅस्ट्रेलिया को शामिल होना था, लेकिन किन्हीं कारणों से वह इन तीनों के साथ युद्धाभ्यास में नहीं आया. अभी तो ऐसा लग रहा है कि कुछ देश आपस में मिलजुलकर पूरे इंडो पैसेफिक पर अपना नियंत्रण रखना चाह रहे है.

इस तरह के युद्धाभ्यास इस लिहाज से किये जाते हैं, ताकि कभी अगर एक साथ मिलकर किसी आॅपरेशन को अंजाम देना हो, तो सेनाओं के बीच आपसी समझ काम आ सके और दोनों की रणनीतिक साझेदारी से आॅपरेशन को आसान बनाया जा सके. लेकिन, यह अभी दूर की बात है, क्योंकि अभी जापान और अमेरिका के बीच ही पार्टनरशिप है. भारत को अभी इस दिशा में कदम बढ़ाना है. हालांकि, काउंटर टेररिज्म जैसी समस्या को हल करने के लिए और उन्हें मुंहतोड़ जवाब देने के लिए दो-तीन-चार देशों की सेनाओं को ऐसे युद्धाभ्यासों से ही तैयार किया जा सकता है. इससे देशों के सीमा क्षेत्रों में शांति की स्थापना करने में भी काफी मदद मिल सकती है.

यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि दो या तीन देशों के बीच में सिर्फ संयुक्त युद्धाभ्यास से ही काम नहीं बनता है, बल्कि स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप भी बननी चाहिए, ताकि संबंधों में ज्यादा से ज्यादा नजदीकी आ सके. यह बात दो देशों में तो आसानी से संभव है, लेकिन तीन देशों के बीच थोड़ा मुश्किल है. फिर भी यह जरूरी है कि इसे जारी रखा जाये और आगे की रणनीति पर भी सोचा जाये. मानसिक, शारीरिक और तकनीकी तौर पर सेना का मनोबल ऐसे युद्धाभ्यासों से बढ़ता है. दो देशों की सेनाओं का आपस में भरोसा भी बढ़ता है कि हां हम किसी भी परिस्थिति से मुकाबला कर सकते हैं. किसी देश के साथ युद्ध की स्थिति में इससे मदद तो मिलती है,

लेकिन ये अभ्यास यह सोचकर नहीं किये जाते कि हम फलां देश के खिलाफ लड़ने के लिए ऐसा कर रहे हैं. इसलिए सिर्फ जापान और अमेरिका के साथ ही नहीं, बल्कि कई अन्य एशियाई देशों के साथ भारत ने अपना नवल को-आॅपरेशन बढ़ाने पर जोर दिया है. आगे आनेवाले समय को देखते हुए यह जरूरी कदम है और हमें ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षण की जरूरत है. यह एक ग्रैंड लेवल की ट्रेनिंग है और भारतीय सेना को इससे कई फायदे हो सकते हैं.

थाईलैंड-सिंगापुर के साथ त्रिपक्षीय अभ्यास

बहुत जल्द भारत, थाईलैंड और सिंगापुर के साथ एक और साझा सैन्य अभ्यास शुरू करेगा. हालांकि, इस नौसैनिक अभ्यास के लिए अभी कोई तिथि तय नहीं की गयी है. इस त्रिपक्षीय अभ्यास का निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन दोनों देशों के हाल में किये गये दौरे के समय लिया गया.

शशांक

पूर्व विदेश सचिव

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