इंडियन नस्वाद
इतिहासकारों का मानना है कि जामुन भारत की ही संतान है और इसी प्रायद्वीप से अन्यत्र भारतवंशी प्रवासियों के साथ दुनिया के कुछ हिस्सों में पहुंचा है. स्वाद में अपने तरह का बेहद निराले और कैसेले-मिठास वाले इस फल के बहुत से सेहतवाले फायदे हैं. यह पाचन शक्ति बढ़ाने में बहुत मददगार होता है. ज्यादा दिन ताे नहीं रहता, लेकिन जितने दिन रहता है, उतने दिन मौसमी स्वाद में जामुनी रंग घोले रहता है. जामुन से संबंधित कुछ अन्य जानकारियां दे रहे हैं खान-पान और व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…
एक पुरानी कहावत है- ‘फागुन के दिन चार’, पर इन दिनों हमारे मन में एक दूसरी तुकबंदी घुमड़ रही है- ‘जामुन के दिन चार!’ हर साल यही होता है, मन की चाहत भर रसीले, कसैली मिठास के साथ अपना रंग भी जुबान पर चढ़ानेवाला यह फल कुछ ही दिन में गायब हो जाता है. ‘झुलसानेवाली गर्मी का अंत नजदीक है’ का संदेश देनेवाला जामुन कभी आम आदमी की पहुंच वाला फल था- राजधानी में इंडिया गेट के सामने वाले घास के मैदान पर जामुन के पेड़ों तले चादर बिछाकर ठेकेदार फलों का पहरा करते थे- उन्हें छकाकर फलों को लूट ले जाने को आतुर बच्चों के झुंड भी नजर आते थे.
बहुत पुराने जमाने की बात है- जामुन का दोना या पुडिया नमक के साथ दो रुपये में खरीदा जा सकता था. इस साल मौसम की पहली पैदावार को ठेले पर लदा देखकर मन ललचाया, लेकिन कीमत पूछते ही आगे बड़ा हाथ पीछे लौट आया- दो सौ रुपये किलो! जाहिर है कि एकाध जामुन से ही संतोष करना पड़ेगा, यदि बेचनेवाला इसके लिए राजी हुआ! पिछले साल भी जामुन देखने को ही मिले थे- चखने को नहीं- फूड मार्ट में डब्बे में बीज रहित आयातित सऊदी या ईरानी खजूरों की तरह. बहरहाल.
इतिहासकारों का मानना है कि जामुन भारत की ही संतान है और इसी प्रायद्वीप से अन्यत्र भारतवंशी प्रवासियों के साथ पहुंचा है. इसके अंग्रेजी नाम ‘मालाबार प्लम’ से भी यह सूचित होता है. कुछ इसे ‘जावा प्लम’ भी कहते हैं. स्वाद में निराला होने के साथ जामुन को बेहद गुणकारी भी समझा जाता है. यह मधुमेह को नियंत्रण में रखता है, रक्तचाप घटाने तथा पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए भी लाभदायक समझा जाता है. चूंकि फालसे की तरह यह भी ताजा बहुत कम समय तक बाजार में रहता है. लिहाजा इसके रस, शरबत तथा सिरके को काम में लाते हैं.
झारखंड में हमने जामुन की जैली भी खायी, जो बहुत स्वादिष्ट थी. उसी राज्य के मशहूर शैफ निशांत चौबे ने, जो तब एक पांच तारा छाप होटल में काम कर रहे थे, अपने रेस्त्रां में जामुन का नायाब सलाद पेश किया था, जिसकी जुगलबंदी महुए का मुरब्बा कर रहा था. इसके साथ ही जामुन का अचार भी उन्होंने बनाया. खाने में वह मजेदार था, पर दिक्कत यह थी कि अचारी मसाले जामुन को बहुत तेजी से गलाते हैं और इसका बेमौसमी आनंद पखवाड़े भर ही लिया जा सकता है. लेकिन, निशांत इस बात से परेशान नहीं नजर आये.
उनका मानना है कि दुनियाभर में खान-पान के शौकीन इस बात को मान कर चलते हैं कि कुछ फलों और दुर्लभ सब्जियों का रसास्वाद चंद दिन या सप्ताहभर ही लिया जा सकता है. क्या हम भारतीय इसे स्वीकार नहीं करते? शहतूत हो या चेरी, ये भी साल भर नहीं मिलते! इस साल वह जामुनी शाकाहारी पुलाव पका रहे हैं और इसी स्वाद और कुदरती रंग वाली जामुन कुल्फी-मलाई का प्रयोग कर रहे हैं.
अंत में, यह बात ध्यान मे रखें कि जामुन के आकार पर न जाएं. जरूरी नहीं कि बड़ा फल मीठा और रसीला निकलेगा या उसका गूदा गुठली के अनुपात में ज्यादा होगा. छोटे जामुन भी कभी चकित कर देते हैं! यह भी न भूलें कि गुलाब जामुन की प्रेरणा इसी फल ने दी है और भारत का जंबू द्वीप नामकरण भी इसी से जुड़ा है!
रोचक तथ्य
इसके अंग्रेजी नाम ‘मालाबार प्लम’ से भी यह सूचित होता है. कुछ इसे ‘जावा प्लम’ भी कहते हैं.
जामुन को बेहद गुणकारी भी समझा जाता है. यह मधुमेह को नियंत्रण में रखता है, रक्तचाप घटाने तथा पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए भी लाभदायक समझा जाता है.
फालसे की तरह जामुन भी ताजा बहुत कम समय तक बाजार में रहता है. इसके रस, शरबत तथा सिरके को काम में लाते हैं.
गुलाब जामुन की प्रेरणा इसी फल ने दी है और भारत का जंबू द्वीप नामकरण भी इसी से जुड़ा है!
इतिहासकारों का मानना है कि जामुन भारत की ही संतान है और इसी प्रायद्वीप से अन्यत्र भारतवंशी प्रवासियों के साथ पहुंचा है.
पुष्पेश पंत