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भरतनाट्यम के लिए मजबूत इच्छाशक्ति जरूरी

शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम के क्षेत्र में भरतनाट्यम नृत्यांगना रश्मि अग्रवाल एक नया नाम जरूर है, लेकिन उन्होंने यह साबित किया है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो, तो बंदिशों के बावजूद कला को नयी ऊंचाईयां दी जा सकती हैं. पेश है भरतनाट्यम और कैरियर को लेकर रश्मि अग्रवाल से वसीम अकरम की बातचीत…पहली बार आपने कब […]

शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम के क्षेत्र में भरतनाट्यम नृत्यांगना रश्मि अग्रवाल एक नया नाम जरूर है, लेकिन उन्होंने यह साबित किया है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो, तो बंदिशों के बावजूद कला को नयी ऊंचाईयां दी जा सकती हैं. पेश है भरतनाट्यम और कैरियर को लेकर रश्मि अग्रवाल से वसीम अकरम की बातचीत…पहली बार आपने कब सोचा कि भरतनाट्यम सीखना है और इसी के साथ कैरियर के रूप में आगे बढ़ना है?

मैं करीब दस साल की थी, तब पहली बार डांस के प्रति मैं आकर्षित हुई और फिर सोच लिया कि इसी के साथ आगे बढ़ना है. मैं दिल्ली से हूं. डांस को लेकर मेरा कोई फैमिली बैकग्राउंड नहीं है और परिवार में दूर-दूर तक किसी का डांस से कोई रिश्ता भी नहीं है. कला के क्षेत्र में मैं अपने परिवार में पहली पीढ़ी हूं. तब मुझे डांस के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था. कथक को लेकर मैं यह सोचती थी कि फिल्मों में जो मुजरा दिखाया जाता है, यह कुछ वैसा ही है, इसलिए मैंने भरतनाट्यम को चुना. ऐसा किसी ने बताया नहीं था, फिल्में देखकर यह धारणा बन गयी थी. हालांकि, कथक को लेकर आज मैं ऐसा नहीं सोचती. जब मैंने भरतनाट्यम शुरू किया था, तब मैंने यह भी नहीं सोचा था कि इसे प्रोफेशन बनाना है. लेकिन, अब तो यही कैरियर है.
परिवार में कला का माहौल नहीं है, तो फिर क्या डांस सीखने के दौरान कुछ मुश्किलें आयीं?
हां, कुछ मुश्किलें आयीं, लेकिन मैंने सब एडजस्ट कर लिया. पति और बच्चे के साथ एक परिवार में रहते हुए और सबका ख्याल करते हुए डांस सीखने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति चाहिए होती है. यह इच्छाशक्ति भी तब काम करती है, जब परिवार के सदस्य का साथ मिले. इसमें मेरी मां ने मेरा साथ दिया. एक शादीशुदा लड़की के लिए डांस बहुत मुश्किल भरा क्षेत्र होता है. अगर कोई मुझसे पूछे कि परिवार के लिए क्या करना चाहिए, एडजस्टमेंट या सेक्रिफाईस? तो मैं एडजस्टमेंट को चुनने के लिए कहूंगी, क्योंकि मैं खुद किसी चीज के लिए अपने डांस को नहीं छोड़ सकती.
किसी भी चीज को सीखने के लिए गुरु जरूरी है. आपका पहला गुरु कौन था या थी?
मेरी पहली गुरु शर्मिष्ठा मलिक जी थीं, दिल्ली में, जिनसे मैंने सात साल तक भरतनाट्यम सीखा. उसके बाद मैं गुरु सरोजा वैद्यनाथन जी से सीखने लगी. पदमभूषण गुरु सरोजा जी से मैंने भरतनाट्यम प्रस्तुति की एक बाकायदा ट्रेनिंग हासिल की है. डांस के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम बॉडी मूवमेंट को बैलेंस करना जानें, ताल और अभिनय की बारीकियां समझें और मुद्राओं का ज्ञान हासिल करें. इन सभी जानकारियों को मैंने सरोजा वैद्यनाथन से ही सीखा है.
भरतनाट्यम की विशेषता क्या है और बहुत गिने-चुने लोग ही इस कला को क्यों अपनाते हैं?
सभी नृत्य कलाएं हमारे शास्त्रों से आयी हैं. हम धार्मिक लोग हैं. चार वेदों के अलावा एक पांचवा वेद भी है, जिसे ‘नाट्य वेद’ कहते हैं. भरतनाट्यम में हम भगवान नटराज को मानते हैं. यह बहुत पुराना डांस फॉर्म है. सिर से लेकर पैर तक का इस्तेमाल हम इसमें करते हैं और मुझे नहीं लगता कि कोई पश्चिमी कला में ऐसा इस्तेमाल होता हो. भरतनाट्यम से शरीर बहुत स्वस्थ रहता है.
डांस के लिए म्यूजिक की समझ भी जरूरी है. क्या इसके लिए भी कोई प्रशिक्षण लिया आपने?
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरगढ़ से भरतनाट्यम में मैं ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हूं. ग्रेजुएशन के दौरान मैंने कर्नाटक म्यूजिक सीखा. संगीत तो नृत्य का बेहद जरूरी पक्ष है, जिसके बिना थिरकन संभव ही नहीं है. इसलिए हर नृत्यांगना को संगीत की जरूरी और बुनियादी समझ होनी चाहिए.
हमारी सरकारें साहित्य, कला और संस्कृति को लेकर कोई खास ध्यान नहीं देतीं, सिर्फ खानापूर्ति करती नजर आती हैं. आपकी राय?
नहीं, यह बात पूरी तरह सच नहीं है. सरकार बहुत से काम कर रही है, जैसे कि वह सीसीआरटी की स्कॉलरशिप्स देती है, मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर और साहित्य कला परिषद् से कई स्कॉलरशिप्स और फेलोशिप मिलते हैं. इससे कलाकार का उत्साहवर्द्धन होता है और आर्थिक सहायता तो मिलती ही है. लेकिन ये सारी चीजें एक उम्र के बाद ही मिलती हैं. इसलिए मुझे लगता है कि यह सब स्कूलिंग से ही शुरू होनी चाहिए. क्योंकि हो सकता है कि बच्चे में आर्ट को लेकर स्कूल से ही समझ विकसित हो जाये.
आप अब डांस भी सिखाती हैं. क्या यह आपके उस कैरियर का ही हिस्सा है कि पूरा जीवन भरतनाट्यम को समर्पित करना है?
हां, बिल्कुल. मुझे मेरे गुरु जी से प्रेरणा मिली कि मैं बच्चों को सिखाना भी शुरू करूं, तो मैंने श्रीसुधा सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स नाम से एक ट्रस्ट शुरू किया. इसके तहत मैंने बच्चों को सिखाना और डांस फेस्ट का आयोजन शुरू किया. पहले मैंने बच्चों को प्लेटफॉर्म देना शुरू किया और फिर नृत्य धारा के जरिये उनकी प्रस्तुतियां कर उन्हें बड़े अवसरों की तरफ मोड़ना शुरू किया. पिछले छह सालों से नृत्य धारा नाम से दिल्ली में मैं यह डांस फेस्टिवल आयोजित करती आ रही हूं.
इस दौरान मैंने महसूस किया कि सिखाने से भी मैं बहुत कुछ सीख रही हूं. आर्ट एजुकेशन के प्रचार-प्रसार के लिए यह जरूरी था. बच्चों के साथ युवा लड़कियां भी हैं, जिनके ऊपर कैरियर बनाने का दबाव रहता है, इसके चलते वे डांस नहीं सीख पातीं. नृत्य धारा ऐसी लड़कियों को मौका देता है, ताकि वे अपनी कला-क्षमता को पहचान सकें.
आर्ट फेस्ट पर बड़े सवाल उठते हैं कि ये तो पिकनिक स्पॉट होते हैं. क्या लगता है आपको?
नहीं, बिल्कुल नहीं. डांस फेस्ट के बारे में मैं ऐसा नहीं मान सकती. भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपरा में देवी-देवताओं का बहुत महत्व है और डांस के जरिये हम ईश्वर से जुड़ाव महसूस करते हैं. हमारा सारा डांस कंपोजीशन ईश्वर, ईश्वरवाद और माइथोलॉजी पर ही आधारित हैं. कोई क्लासिकल डांसर अगर डांस कर रही है, तो वह दर्शक का मनोरंजन नहीं कर रही होती है, बल्कि इसके माध्यम से वह ईश्वर से जुड़ाव की कहानियों को दर्शा रही होती है.
आज टेलीविजन का दौर है, रियलिटी शोज का दौर है. क्या कला के विकास के लिए और बच्चों को मौके के लिए टीवी शोज बेहतर जरिया हैं?
हां, क्यों नहीं. मैं तो इसे अच्छा मानती हूं. जिन लोगों को कभी कहीं कोई मौका नहीं मिलता, वे लोग टीवी शोज के माध्यम से निखरकर आ रहे हैं. उनकी खुद की कला तो निखरती ही है,
उनसे प्रेरणा लेकर बाकी लोग भी अपने अंदर के कलाकार को मरने से बचा लेते हैं. लेकिन हां, इसे सिर्फ ग्लैमर के तौर पर नहीं लेना चाहिए, बल्कि कला के प्रसार के रूप में लेना चाहिए. बहुत से लोग टीवी देखकर अपनी कला-क्षमता को संवार लेते हैं, लेकिन ज्यादा जरूरी है कि वे एकेडमिक तौर पर भी सीखें. यह उनके भविष्य के लिए बहुत ही बेहतर होगा.

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