18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गुड गवर्नेस का टूल बने सोशल मीडिया

इस चुनाव में सोशल मीडिया एक बड़ी भूमिका में सामने आया. अब यहां से एक असली सवाल शुरू होता है. सवाल यह है कि क्या जनता के बीच जाने का जो रास्ता सोशल मीडिया के जरिये बनाया गया है, वह आगे भी जारी रहेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि नतीजे आने के बाद संवाद की […]

इस चुनाव में सोशल मीडिया एक बड़ी भूमिका में सामने आया. अब यहां से एक असली सवाल शुरू होता है. सवाल यह है कि क्या जनता के बीच जाने का जो रास्ता सोशल मीडिया के जरिये बनाया गया है, वह आगे भी जारी रहेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि नतीजे आने के बाद संवाद की यह प्रक्रिया यहीं थम जायेगी.

नरेंद्र मोदी ने 30 अप्रैल को अहमदाबाद में वोट डालने के बाद मोबाइल फोन से खुद अपनी तसवीर यानी ‘सेल्फी’ ली. इस सेल्फी में वह स्याही के निशान लगी उंगली और बीजेपी के चुनाव चिह्न् कमल के साथ दिख रहे थे. इसे लेकर विवाद भले हुआ, लेकिन मोदी ने इस तसवीर को अपने ट्विटर एकाउंट पर पोस्ट किया, तो इसे 4,000 से ज्यादा लोगों ने री-ट्विट किया और 3,000 से ज्यादा ने ‘फेवरेट’ बनाया. मोदी तकनीक की समझ रखते हैं, और तकनीक के आसरे प्रचार का फार्मूला भी जानते हैं, लिहाजा उन्होंने अपनी सेल्फी के सहारे ट्विटर पर एक मई को (सेल्फी विद मोदी) ट्रेंड भी बनवा दिया.

सोशल मीडिया जानकार पुनीत पांडे मोदी के सेल्फी प्रचार का खुलासा करते हुए कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी ने वोट डालने के बाद सेल्फी शौक के लिए नहीं ली थी. यह उनकी रणनीति का हिस्सा थी, क्योंकि उन्होंने अपनी साइट पर एक अभियान आरंभ किया था, जिसमें लोगों से (सेल्फी विद मोदी) पर वोट डालने के बाद की सेल्फी पोस्ट करने की बात कही गयी थी. आम लोगों की वोट सेल्फी से साइट पर मोदी की एक बड़ी तस्वीर बनायी गयी थी. लोग माउस के कर्सर के जरिये मोदी की मोजेक तसवीर को बड़ा कर अपनी सेल्फी खोज सकते थे. मोदी की गुजारिश पर लोगों ने बड़ी संख्या में ट्विट किये और (सेल्फी विद मोदी) टॉप ट्रेंड बन गया.’

ट्विटर पर मोदी के करीब 35 लाख प्रशंसक हैं और इस मामले में वह नंबर वन भारतीय राजनेता हैं. वह सोशल मीडिया पर सक्रियता के बहाने मुख्यधारा के मीडिया में भी पैठ बनाते हैं. ग्रुप वीडियो चैट के लिए गूगल हैंगआउट का प्रयोग करने वाले मोदी पहले भारतीय नेता रहे. 116 देशों के करीब 82 हजार लोगों ने यू-ट्यूब के जरिये इस हैंगआउट सेशन का सीधा प्रसारण देखा. इस वीडियो चैट सेशन के दौरान मोदी पर 70 हजार ट्विट और मोदी की वेबसाइट पर 1,66,000 हिट्स आ गये. इस बार के चुनाव में भाजपा ने सोशल मीडिया और नयी तकनीक के इस्तेमाल में बाकी पार्टियों को कहीं पीछे छोड़ दिया. फेसबुक पर बीजेपी के पेज को जहां 45 लाख लाइक मिले हैं, वहीं कांग्रेस इस मामले में 33 लाख से कुछ ज्यादा लाइक ही जुटा पायी. सोशल मीडिया दोतरफा माध्यम है, और मोदी ने इस माध्यम का आम चुनावों में शानदार इस्तेमाल किया. सोशल मीडिया के जरिये मोदी ने नया प्रशंसक वर्ग तैयार किया है. वे सोशल मीडिया पर लगातार न केवल अपनी बात कहते हैं, बल्कि लोगों से संवाद भी करते हैं.

सिर्फ मोदी ही नहीं, कई बड़े नेताओं ने हाल के दिनों में सोशल मीडिया में कदम रखा. बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली से लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल तक इनमें शामिल हैं. आप की लोकप्रियता का तो बड़ा आधार ही सोशल मीडिया है. सोशल मीडिया एक्सपर्ट विवेक द्विवेदी कहते हैं, ‘आप ने चुनावों की घोषणा होने से लेकर नतीजे आने तक सोशल मीडिया पर मोरचा संभाले रखा. आलम यह कि ट्विटर और फेसबुक पर बीजेपी को कोई पार्टी टक्कर देती दिखी तो आप. आप को वोट भले जितने मिले, पर सोशल मीडिया पर उसका अपना प्रशंसक समूह है, जो लगातार उसके पक्ष में सक्रिय रहता है.

सोशल मीडिया की बड़ी कंपनियों ने भी चुनावों के दौरान लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करने में बड़ी भूमिका निभायी. फेसबुक इंडिया ने इंडिया इलेक्शन ट्रैकर लॉन्च किया है, जिसके जरिये लोग उम्मीदवारों की चुनावी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रख सकते थे. फेसबुक इंडिया के इस नये डैशबोर्ड के जरिये लोगों को चुनावी चर्चाओं और हलचल की लाइव जानकारी मिल सकती थे. फेसबुक ने हर हफ्ते अपने इलेक्शन ट्रैकर की रिपोर्ट मुहैया करायी और बताया कि किस राजनेता की लोकप्रियता में कमी या बढ़ोतरी हुई. इसी तरह, फेसबुक ने ‘फेसबुक टॉक्स लाइव’ शुरू की. इसके जरिये फेसबुक यूजर्स को चुनावों के लिहाज से कुछ अहम दावेदारों से रू-ब-रू कराया. फेसबुक की तरह गूगल इंडिया ने आम चुनाव के लिए एक अलग वेबसाइट पेश की. इसके तहत कोई भी व्यक्ति मतदाता सूची में अपने नाम की जांच कर सकता था, अपने मतदान केंद्र के बारे में पता लगा सकता है और अपने चुनाव क्षेत्र के नक्शे को खंगाल सकता था. यह वेबसाइट हिंदी और अंगरेजी दो भाषाओं में उपलब्ध थी.

चुनावी मौसम के दिलचस्प रंग ट्विटर पर दिखे, हर रोज चुनाव और राजनेताओं से जुड़ा कोई नया हैशटैग दिखाई दिया. चुनावों के पहले ही दिन यानी 10 अप्रैल को ‘वी वांट मोदी’ हैशटैग ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को बुरी तरह पछाड़ दिया था. सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी की यह बढ़त अंत तक कायम रही. राजनेताओं की चाहत और नाराजगी का रंग भी सोशल मीडिया के जरिये ही लोगों के सामने आया. कर्नाटक में जब श्रीरामुल्लू को बीजेपी में शामिल किया गया, तो सुषमा स्वराज ने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए ट्विटर को माध्यम बनाया. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर हमला करने के लिए अकसर इसी मंच का इस्तेमाल किया. आप के अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस, बीजेपी और मीडिया पर निशाना भी इसी सोशल मीडिया के मंच से साधा.

कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और शशि थरूर जैसे नेता सोशल मीडिया पर एक्टिव रहे, पर खुद राहुल गांधी इस मंच पर कहीं सक्रिय नहीं हैं. यह बात कांग्रेस रणनीतिकारों को शायद बहुत देर से समझ आयी कि बड़ी संख्या में देश का युवा अब इस नये माध्यम से मिलनेवाली सूचनाओं के आधार पर अपनी राय बना रहा है. वह संवाद करना चाहता है, अपने सवालों और जिज्ञासाओं के जवाब चाहता है, लेकिन इसे कुछ हद तक समझ न पाना रणनीतिक भूल करार दिया जा सकता है.

चुनावों के दौरान सोशल मीडिया ने नेता और वोटर की दूरी कम की है. इसने जन भागीदारी बढ़ायी है. जनता के सरकार के कामों पर नाराज या खुश होकर बैठने का वक्त चला गया. लोग अब अपनी राय देते हैं, आपसे सवाल पूछते हैं, वे चाहते हैं कि उनके चुने हुए जनप्रतिनिधि उन सवालों का जवाब दें. अब यहां से एक असली सवाल शुरू होता है. सवाल यह है कि क्या जनता के बीच जाने का जो रास्ता सोशल मीडिया के जरिये बनाया गया है, वह आगे भी जारी रहेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि नतीजे आने के बाद संवाद की यह प्रक्रिया यहीं थम जायेगी. नेता अपने आप में व्यस्त और मस्त हो जायेंगे और जनता एक बार फिर ठगी महसूस करेगी.

हालांकि, इंटरनेट उपभोक्ताओं के मामले में तीसरे पायदान पर खड़े भारत में कई और सवालों के जवाब तलाशे जाने बाकी हैं. भारत में करीब 15 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हैं. करीब सवा सौ करोड़ की आबादी में से मजह 12.5 फीसदी आबादी तक ही इंटरनेट पहुंच पाया है. यह तस्वीर और पेचीदा हो जाती है, जब हमें यह पता चलता है कि शहरों में रहने वाले 20 फीसदी भारतीय इंटनेट से जुड़े हैं, वहीं ग्रामीण भारत में यह आंकड़ा महज तीन फीसदी ही है. यानी संवाद स्थापित करने की यह सुविधा अब भी बड़ी संख्या में शहरी युवाओं तक ही सीमित है.

लेकिन, ज्यों-ज्यों देश तरक्की करेगा, यह आंकड़ा बढ़ता जायेगा और साथ ही सरकारों और सरकारी महकमों पर बेहतर काम करने का दबाव भी. कई सरकारी विभाग पहले से ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. लोग नगर निगम से अपनी सड़क और गली खराब होने की शिकायत कर रहे हैं. पुलिस को ओवरलोडेड ट्रकों की फोटो भेज रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ के 2012 के इ-गवर्नेस सर्वे 2012 में कहा गया था कि स्थायी विकास के लिए सरकारों के साथ जनता की भागीदारी जरूरी है. और इ-गवर्नेस इन दोनों के बीच एक पुल का काम करती है. यदि जनता को अपनी छोटी से छोटी जानकारी इंटरनेट के जरिये मिलने लग जाये, तो उसे सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. इ-गवर्नेस के समर्थन में यह तर्क भी दिया जाता है कि चूंकि मशीनें रिश्वत नहीं मांगती, इसलिए इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी जा सकेगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें