।। दक्षा वैदकर ।।
‘अरे वह सुधीर, उस होटल का मालिक.. अरे वो तो मेरा बहुत अच्छा दोस्त है. उसको एक फोन लगाऊंगा, तो रहने-खाने हर चीज का इंतजाम कर देगा, लेकिन मैं उसे फोन लगाता नहीं हूं. मुङो यह सब पसंद नहीं है.’ ‘अरे मैंने तो वह नौकरी खुद ही छोड़ दी. आते वक्त मैनेजर को खूब सुनाया. उसकी तो बोलती बंद कर दी. मैंने तो सुना कि मेरे जाने के बाद वह अब पछता रहा है. एक दिन वह मुङो मिला भी था, कह रहा था कि वापस नौकरी पर आ जाओ, लेकिन मैंने साफ मना कर दिया. यार सम्मान भी कोई चीज होती है.’
इस तरह की फेकोलॉजी करनेवाले लोग हर तरफ बिखरे पड़े हैं. ये लोग 20 को 40 बना कर पेश करते हैं और लोगों के सामने अपनी इमेज बहुत मजबूत बनाने की कोशिश करते हैं. वे भूल जाते हैं कि उनकी यह पोल कभी भी खुल सकती है. जिस व्यक्ति को आप उस होटल के मालिक या बॉस के बारे में बता रहे हैं, वो उनका परिचित हो सकता है. वह तुरंत उनसे पूछ कर इस बात की पुष्टि कर सकता है और आपका सारा झूठ पकड़ा जा सकता है.
जब ऐसे झूठ एक-दो लोग पकड़ लेते हैं, तो वे यह बात सभी को बताते हैं. इस तरह मार्केट में यह बात फैल जाती है कि फलां आदमी बहुत फेंकता है. आपको वह जो भी बताये, उसका 50 परसेंट ही सही समझना. ऐसी इमेज बन जाने के बाद लोग आप पर भरोसा करना बंद कर देते हैं. इस इमेज के साथ अगर आप किसी दिन सच भी कहते हैं, तो लोग इसे झूठ ही मानते हैं.
बेहतर है कि हम हमेशा सच ही कहें. जो घटनाएं हुई हैं, उन्हें उसी रूप में बताएं. बेवजह का मिर्च-मसाला न लगाएं. सोचने वाली बात यह भी है कि अपनी ऐसी झूठी तारीफ कर के आपको क्या मिल जायेगा. हां, इस झूठ के खुल जाने से आपको नुकसान बहुत बड़ा होगा. कोई भी अधिकारी आप पर भरोसा नहीं करेगा. आपके दोस्त आपकी बातों को हल्के में लेने लगेंगे. दोस्तों, अभी भी वक्त है. संभल जाएं. अपनी इस आदत को बदलें. केवल असली किस्से ही सुनाएं.
बात पते की..
– जब हम बार-बार झूठ बोलते हैं, तो खुद भी भीतर ही भीतर इसे सच मानने लगते हैं. इस तरह हम अपनी ही गलती छवि के साथ जीने लगते हैं.
– झूठ बोल कर अपनी बढ़ाई करने से कुछ मूर्ख लोग भले ही आपकी हां में हां मिला लें, लेकिन समझदार लोग आपसे जरूरी दूरी बना लेंगे.