मित्रो,
सत्येंद्रनाथ दुबे और बिहार-झारखंड के नौ आरटीआइ एक्टिविस्टों की शहादत का सटीक नतीजा सामने आने वाला है. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए आरटीआइ एक्टिविस्ट के बाद अब ह्विसिल ब्लोअरों की टीम तैयार होने वाली है. इसमें सरकारी और गैर सरकार दोनों लोग होंगे. ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन बिल को संसद की मंजूरी मिलने के बाद अब राष्ट्रपति की भी स्वीकृति मिल गयी है.
यह सिविल सोसाइटी के लिए सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने का एक और बड़ा हथियार होगा. खास कर उन अधिकारियों और बिचौलियों के भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करना ज्यादा संभव हो सकेगा, जो दबंग हैं और अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों से साजिश कर बदला लेने की मंशा रखते हैं. उनके इस तेवर के कारण ही आम आदमी चुपचाप अन्याय और लूट देखते रहने के लिए अब तक मजबूर था. अब इस मजबूरी से बाहर निकलने और अपनी चुप्पी तोड़ने का अवसर मिलने जा रहा है. अब सरकारी कर्मचारी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला सकेंगे. ह्विसिल ब्लोअर कानून बिहार-झारखंड के सोशल एक्टिविस्टों और घूस को घूंसा मारने वालों के लिए ज्यादा अहम है, क्योंकि सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार को उजागर करने की मुहिम में यहां के नौ आरटीआइ एक्टिविस्टों को अपनी जान गंवानी पड़ी. नेशनल हाइवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट डायरेक्टर इंजीनियर सत्येंद्र दुबे, जिनकी हत्या 27 नवंबर 2003 को गया में केवल इसलिए कर दी गयी थी कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिख कर ऑथोरिटी के भ्रष्टाचार का खुलासा किया था, बिहार के सीवान के रहने वाले थे. इस घटना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वालों में दहशत पैदा कर दी थी. तब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे कानून की मांग तेज हुई थी, जो भ्रष्टाचार को उजागर करने की जोखिम उठाने वालों को संरक्षण और सुरक्षा दे. ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन कानून गांव-पंचायत के उन लोगों के लिए अहम होगा, जो शासन-प्रशासन के भ्रष्टाचार के शिकार हैं, लेकिन इस डर से इसकी शिकायत नहीं करते कि बाद में उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है. ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट शिकायतकर्ताओं के नाम, पता और पहचान को गुप्त रखने की व्यवस्था देता है. इस अंक में हम इसी विषय पर बात कर रहे हैं.
आरके नीरद
ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को नयी मजबूती देगा, यह उम्मीद की जानी चाहिए. इसकी मांग लंबे समय से हो रही थी. इससे भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों को प्रोत्साहन और संरक्षण मिलेगा. सरकार सेवा में जो अच्छे लोग हैं और वहां के भ्रष्ट और अनैतिक माहौल में घुटन महसूस करते थे, उनके लिए स्वच्छ और स्वस्थ्य माहौल बनने की उम्मीद जगेगी. यह तय है कि सूचनाधिकार की तरह इसके रास्ते भी बहुत आसान नहीं होंगे. इतने सालों से चली आ आ रही भ्रष्ट व्यवस्था की जड़ों को हिलाना आसान नहीं होगा, लेकिन यह असंभव भी नहीं रहेगा.
ह्विसिल ब्लोअर कौन
ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट में इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. वहां ‘सरकारी और प्रशासनिक तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, अवैध गतिविधि तथा पद के दुरुपयोग का खुलासा करने वाले’ को संरक्षण देने की बात कही गयी है. इस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले ह्विसिल ब्लोअर होंगे. ‘ह्विसिल’ का अर्थ है सीटी और ‘ब्लोअर’ का अर्थ है बजाने वाला. सीटी बजा कर लोगों को सावधान करने का काम पहरेदार करता है. ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट नागरिकों को देश का पहरेदार बनने के लिए प्रोत्साहित करता है. इसमें आम जनता, सरकारी सेवक और गवाह शामिल होंगे. उन्हें एक्ट में परिवादी यानी शिकायतकर्ता कहा गया है.
ह्विसिल ब्लोअर को किस तरह का संरक्षण
एक्ट सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले ह्विसिल ब्लोअर को संरक्षण देने के लिए है. यह संरक्षण दो प्रकार से है. पहला कि ह्विसिल ब्लोअर की पहचान को हर हाल में गुप्त रखा जाना है. यानी कोई व्यक्ति जिस प्राधिकारी से कोई शिकायत करता है, उसे उस व्यक्ति की पहचान हर-हाल में गुप्त रखनी है. वह शिकायत पर कार्रवाई तो करेगा, लेकिन यह बतायेगा नहीं कि किसने शिकायत की या मामले में गवाही दी. अगर वह ऐसा करता है, तो इस कानून के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी. दूसरा कि शिकायतकर्ता के खिलाफ बदले की भावना से कोई कार्रवाई करना गैर कानूनी होगा. इस कानून के तहत ऐसा करने वाले के खिलाफ कार्रवाई होगी.
जल में रह कर मगर करसकेंगे बैर
ब्लोअर प्रोटेक्शन कानून सरकारी सेवकों को ‘जल में रह कर मगर से बैर मोल लेने’ की हिम्मत देगा. ईमानदार अफसर और कर्मचारी अब अपने संस्थान में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा कर सकेंगे. वे संबंधित प्राधिकार से इसकी लिखित शिकायत करेंगे, जिस पर कार्रवाई होगी, लेकिन उनके नाम का खुलासा नहीं होगा. इसलिए उन्हें पूरा संरक्षण मिलेगा. अगर इसके बाद भी सहकर्मी या वरीय अधिकारी साजिश कर उनके खिलाफ कार्रवाई करते हैं, तो वे सजा के हकदार होंगे.
सूचनाधिकार को मिलेगी ताकत
यह तो सच है कि पिछले साढ़े नौ सालों में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 ने सरकारी क्षेत्र में और उससे जुड़े संगठनों पर अपना असर दिखाया है, लेकिन सैकड़ों ऐसे मामले हैं, जिसमें सूचना मांगने वालों और आरटीआइ एक्टिविस्टों को भारी कीमत चुकानी पड़ी. सूचना मांगने वालों पर हमले और बदले की कार्रवाई को लेकर बिहार देश भर में बदनाम हुआ. देश के दूसरे हिस्सों में भी ऐसी घटनाएं हुईं. इसे लेकर विभिन्न जनसंगठनों और आरटीआइ एक्टिविस्टों ने भी ब्लोअर प्रोटेक्शन कानून की मांग की. इस कानून से भ्रष्टाचार को उजागर करने में आरटीआइ एक्टिविस्टों को भी मदद मिलेगी.
शिकायत का मतलब
इस कानून में शिकायतकर्ता का मतलब है, ऐसा व्यक्ति जो अपनी शिकायत में कोई खुलासा करे. यह खुलासा सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार या अवैध गतिविधियों का हो सकता है. सामान्य शिकायत इसमें शामिल नहीं है. यह शिकायत किसी सक्षम प्राधिकारी के पास होना चाहिए. यह हस्तलिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में हो सकता है. जैसे ई-मेल.
खुलासा का मतलब
खुलासा यानी प्रकटीकरण को इस कानून में परिभाषित किया गया है. इसके मुताबिक कोई ह्विसिल ब्लोअर इन विषयों का खुलासा कर सकता है :
पहला : अगर कोई सरकारी कर्मचारी या अधिकारी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत कोई अपराध करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है. जैसे घूस या कमीशन की मांग, पक्षपातपूर्ण कार्रवाई आदि.
दूसरा: कोई कर्मचारी या अधिकारी अपने पद या अधिकार का जानबूझ कर दुरुपयोग करता है और इसके कारण सरकार को प्रत्यक्ष रूप से हानि हुई या उसने ऐसा करके लाभ पाया हो या किसी को लाभ पहुंचाया हो. जैसे कमीशन मांगना.
तीसरा : किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी ने ऐसा कोई काम किया हो या प्रयास किया हो, जो दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है.
एनजीओ भी शामिल
लोक सेवकों के साथ-साथ स्वयं सेवी संस्थाओं को भी इस कानून के दायरे में लाया गया है. अगर किसी एनजीओ में कोई गड़बड़ी या भ्रष्टाचार हो रहा है, तो उसके सदस्य भी इस कानून के तहत शिकायतकर्ता के रूप में संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं.
इन्हें रखा गया है अधिनियम से बाहर
सूचना का अधिकार अधिनियम की तरह इस अधिनियम में भी कुछ क्षेत्रों को इसके दायरे से अलग किया गया है. जैसे उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश.
विशेष सुरक्षा अधिनियम, 1988 के तहत केंद्र सरकार के सशस्त्र बल के विशेष सुरक्षा समूह के सदस्य.
भारत की एकता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के मित्रतापूर्ण संबंधों एवं लोक व्यवस्था, न्यायालय अवमानना या किसी अपराध के दुष्प्रेरण से संबंधित सूचना.
हर खुलासा सद्भावना में
ह्विसिल ब्लोअर के लिए जरूरी है कि वह कोई भी खुलासा जनहित में कर सकता है. व्यक्तिगत दुश्मनी साधने के लिए इस कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. किसी को परेशान करने की नीयत से इस कानून का इस्तेमाल दंडनीय अपराध की श्रेणी में आयेगा. यानी ऐसा करने पर दंड मिलेगा.
देना होगा घोषणा-पत्र
ह्विसिल ब्लोअर को शिकायत-पत्र के साथ इस बात का निजी घोषणा-पत्र भी देना होगा कि वह इस विश्वास के साथ मामले का खुलासा कर रहा है कि उसके द्वारा प्रकट की गयी सूचना और उसमें लगाया गया आरोप सही है. सक्षम प्राधिकारी जब भी चाहे, इस मामले में और सूचनाओं की मांग कर सकता है.
किसके पास करेंगे खुलासा
कोई भी खुलासा केवल सक्षम प्राधिकारी के समक्ष ही किया जा सकता है. सक्षम पदाधिकारी संस्थान के प्रमुख को माना गया है. जैसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए प्रधानमंत्री, संसद के लिए लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति, विधानसभा के मामले में उसके अध्यक्ष, केंद्र सरकार के संस्थानों के मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग, राज्य सरकार के लोक सेवकों के मामले में राज्य सतर्कता आयोग. यानी प्रशासनिक क्षेत्र के कर्मचारियों और अधिकारियों के मामले में कोई शिकायत सतर्कता आयोग में की जा सकेगी. यहां एक
बात खास है. न्यायालय को इसके दायरे में लाया गया है, लेकिन उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय को इससे अलग रखा गया है.
ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन का इतिहास
भ्रष्टाचार को उजागर करने के वालों के खिलाफ बदले की कार्रवाई को रोकने के लिए दुनिया भर में चिंता का एक दौर चला. यह अनुभव के आधार पर जरूरी समझा गया कि भ्रष्टाचार को अगर रोकना है, तो उन लोगों को संरक्षण देना जरूरी होगा, जो इसे किसी रूप में उजागर करते हैं. इस पर पहला कानून संभवत: अमेरिका ने बनाया. आज से 236 साल पहले यानी 1778 में वहां के दौ नौसैनिकों ने अपने कमांडर-इन-चीफ के भ्रष्टाचार को उजागर किया. तब ऐसे ह्ििसल ब्लोकर को संरक्षण देने की मांग उठी और उसके 85 साल बाद, 1863 में वहां ‘फाल्स क्लेम एक्ट, 1863’ बना. 133 साल तक यह कानून वहां चलता रहा. 1986 में इसकी समीक्षा हुई और 1989 में ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट (ध्यानाकर्षक संरक्षण अधिनियम) बना. इसे संक्षेप में डब्ल्यूपीए कहा गया. यह कानून वहां के सरकारी संगठन में होने वाली बेईमान या अवैध गतिविधियों के बारे में स्वेच्छा से जानकारी का खुलासा करने पर बदले की भावना से की जाने वानी कार्रवाई से कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए है. वहां के उच्चतम न्यायालय ने गारिसटी बनाम सीवेलोज (2006) के मामले में टिप्पणी की कि ह्ििवसल ब्लोअर की सुरक्षा के लिए प्रथम संविधान संशोधन में कोई व्यवस्था नहीं है. 2009 में सीनेटर डैनियल अकाका ने इस कानून को मजबूत बनाने के लिए ह्विसिल ब्लोअर इनहेंसमेंट एक्ट’ का प्रस्ताव लाया.
इसे संक्षेप में डब्ल्यूपीइए (ध्यानाकर्षक संरक्षण संवर्धन अधिनियम ) कहा गया. इसे कानून का दर्जा नवंबर 2012 में बना. 19 दिसंबर 2012 को वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इंटेलिजेंस एजेंसी के कर्मचारियों के मामले में अतिरिक्त ह्ििसल ब्लोअर प्रोटेक्शन देने का आदेश दिया.
इन देशों में है यह कानून
ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट दुनिया के कई देशों में पहले से लागू है. इसका मकसद भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों और गवाहों को कानूनी तौर पर सुरक्षा देना है. इन देशों में अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आयरलैंड आदि शामिल हैं.
भारत में ह्विसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन कानून का इतिहास
किसी भ्रष्टाचार की शिकायत करने और ऐसे मामले में गवाही देनों वालों को परेशान करने, उनकी हत्या करने, झूठे मुकदमों में फंसाने, उन्हें बड़ा नुकसान पहुंचाने जैसी घटनाएं आम हैं. इसका नतीजा यह होता है कि आमतौर पर लोग सब कुछ जानते हुए भी किसी सरकारी सेवक, संस्थान या उससे जुड़े लोगों के भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग, सरकारी धन की लूट, गड़बड़ी आदि के बारे में मुंह खोलने से बचना चाहते हैं. ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि देश में अब तक ऐसा कोई कानून नहीं था, जिसमें शिकायतकर्ता को संरक्षण देने और उसकी पहचान को छुपाने की व्यवस्था हो. फर्जी और बिना नाम-पता वाले शिकायत-पत्र को आमतौर पर स्वीकार नहीं किया जाता है. ऐसे में हर आदमी जोखिम लेने को तैयार नहीं होता.
इसका नतीजा है कि सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार ‘व्यवस्था का एक हिस्सा’ बन गया और लोगों ने मान लिया कि इसके बगैर सरकारी तंत्र काम नहीं कर सकता. इसका नुकसान देश को हर क्षेत्र में उठाना पड़ा है. इस स्थिति से निबटने के लिए यह जरूरी हो गया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को आगे आने के ठोस उपाय किये जायें. पहले तो गवाहों और सूचना देने वालों की पहचान छुपाने और उन्हें संरक्षण देने की मांग केवल न्यायिक
क्षेत्र में हो रही थी, लेकिन जल्द ही इसकी जरूरत प्रशासनिक क्षेत्र में भी महसूस की जाने लगी.देश के विधि आयोग और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका पक्ष लिया.
विधि आयोग ने 2001 की अपनी रिपोर्ट में इस तरह के कानून की जरूरत बतायी. 2003 में बिहार के गया में इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की हत्या के बाद इस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस छिड़ी. उच्चतम न्यायालय ने भी 2004 में केंद्र सरकार को इस मामले में निर्देश दिया. तब जाकर ‘द ह्विसिल ब्लोअर्स संरक्षण विधेयक, 2011’ बना. इसे लोकसभा ने 27 दिसंबर, 2011 को और राज्यसभा ने इसे 21 फरवरी 2014 को पारित किया. अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चुकी है. अब भष्ट्राचार का परदाफाश करने वाले लोगों के लिए यह हथियार काफी मददगार सिद्ध होगा, ऐसी उम्मीद की जाती है. भष्ट्राचार से लोगों को निजात दिलाने के लिए यह हथियार का इस्तेमाल पूरी सजगता से करना होगा.