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स्मृति इरानी के वो ”दांव” जिन पर उन्हें पीछे खींचने पड़े पांव

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार शाम को एक प्रेस रिलीज़ ज़ारी करके कहा था कि अगर कोई मान्यता प्राप्त पत्रकार फ़ेक न्यूज़ का प्रचार-प्रसार करता है तो उसे ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है. लेकिन सूचना प्रसारण मंत्रालय के इस फ़ैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 घंटे के भीतर ही बदल दिया. प्रधानमंत्री कार्यालय […]

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार शाम को एक प्रेस रिलीज़ ज़ारी करके कहा था कि अगर कोई मान्यता प्राप्त पत्रकार फ़ेक न्यूज़ का प्रचार-प्रसार करता है तो उसे ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है.

लेकिन सूचना प्रसारण मंत्रालय के इस फ़ैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 घंटे के भीतर ही बदल दिया.

प्रधानमंत्री कार्यालय के ताज़ा निर्देश के बाद प्रेस इन्फ़ॉर्मेशन ब्यूरो यानी पीआईबी के महानिदेशक फ़्रैंक नरोन्हा ने कहा है कि फ़ेक न्यूज़ को लेकर जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी उसे वापस लिया जाए और इस मामले को केवल भारतीय प्रेस परिषद में ही उठाया जाना चाहिए.

विवादों से पुराना नाता

ये पहला मौक़ा नहीं है जब स्मृति इरानी का कोई फ़ैसला या ख़ुद स्मृति इरानी विवादों में रही हों.

उनका सबसे ताज़ा विवाद प्रसार भारती के चेयरमैन ए सूर्य प्रकाश के साथ हुआ था.

ए सूर्य प्रकाश ने सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय पर प्रसार भारती के कर्मचारियों की तनख्वाह समय पर न देने का आरोप लगाया था, जिस पर बाद में मंत्रालय को अपनी तरफ से स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा था.

हैदराबाद यूनिवर्सिटी में दलित छात्र की मौत के बाद राज्यसभा में चर्चा के दौरान स्मृति अपने बयान के लिए विवादों में घिर गई थी. उस वक़्त मायावती सदन में रोहित वेमुला मामले से जुड़े केंद्रीय मंत्रियों के इस्तीफ़े की मांग कर रहीं थीं. साथ ही उनका कहना था कि मौत की जांच करने वाली समिति में दलित सदस्य को शामिल किया जाए. इस पर बतौर शिक्षा मंत्री जवाब देते हुए स्मृति इरानी ने कहा था कि अगर आप मेरे जवाब से संतुष्ट नहीं हों तो मैं सिर कलम कर आपके चरणों में छोड़ दूंगी.

मायावती ने भी सदन में तुरंत जवाब दिया था, "मैं आपके जवाब से संतुष्ट नहीं हूं कहां है आपका सिर."

बिल पर बिगड़ी बात

मानव संसाधन मंत्री के तौर पर उनकी कुर्सी जाने के पीछे भी उनके और पीएमओ के बीच की अनबन को ही वजह बताया गया था.

उस वक़्त पीएमओ और स्मृति के बीच विवाद आईआईएम बिल को लेकर था.

तब ख़बरों में कहा गया था कि आईआईएम बिल में पीएमओ चाहता था कि शिक्षा मंत्री आईआईएम फ़ोरम की हेड न हों, लेकिन स्मृति इरानी को ये मंज़ूर नहीं था.

इसके अलावा पीएमओ आईआईएम डायरेक्टर को नियुक्त करने की ताक़त राष्ट्रपति को नहीं देना चाहते थे, लेकिन स्मृति इसके लिए भी तैयार नहीं थीं.

स्मृति फ़ीस तय करने का अधिकार भी अपने पास रखना चाहती थीं, हालांकि पीएमओ के बहुत कहने पर ये अधिकार संस्थान को देने के लिए तैयार हो गई थी.

लेकिन शायद तब तक देर हो चुकी थी. स्मृति को इसकी क़ीमत अपनी कुर्सी गंवाकर चुकानी पड़ी.

इसके अलावा संस्कृत को सिलेबस की तीसरी भाषा बनाने के चक्कर में जर्मन भाषा से ऐसा विवाद मोल ले लिया कि जर्मनी के साथ रिश्तों में इसका असर पड़ता दिखा. नौबत ये आ गई कि पीएम मोदी और जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल को इस पर बात करनी पड़ी.

वैसे स्मृति इरानी और विवादों का नाता पहली बार मंत्री पद संभालने के साथ ही शुरू हो गया था और मामला शिक्षा मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय से लेकर, सूचना और प्रसारण मंत्रालय तक चल रहा है.

सबसे पहला हमला स्मृति की शैक्षणिक योग्यता को लेकर ही हुआ और मामला कोर्ट तक पहुंच गया था. स्मृति पर चुनावी शपथ पत्र में अपनी डिग्री में ग़लत जानकारी देने का आरोप लगा. स्मृति ने साल 1996 में बीए की डिग्री लेने की जानकारी दी वहीं दूसरे शपथ पक्ष में उन्होंने 1994 में दिल्ली के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग से बीकॉम पार्ट वन की परीक्षा पास करने की जानकारी थी.

विवाद जब बढ़ा तो स्मृति ने अपने पास येल यूनिवर्सिटी की डिग्री होने का भी दावा तक कर डाला.

ट्विटर वार

स्मृति का विवाद नई शिक्षा नीति को लेकर भी हुआ. नई शिक्षा नीति के ड्राफ़्ट को बेवसाइट पर डालने की गुहार लगाने के बाद भी जब उन्होंने कमेटी के अध्यक्ष टी एस आर सुब्रमण्यम की नहीं सुनी तो सुब्रमण्यम ने ड्राफ़्ट पब्लिक करने की धमकी दे दी. इस पर भी दोनों में काफ़ी अनबन रही और बतौर शिक्षा मंत्री स्मृति ने टी एस आर सुब्रमण्यम को यहां तक कह दिया कि ड्राफ़्ट किसी एक इंसान की जागीर नहीं है.

इसके अलावा स्मृति ने नामी न्यूक्लियर साइंटिस्ट अनिल काकोडकर से भी अनबन मोल ले ली थी. अनिल काकोडकर ने आईआईटी मुम्बई के बोर्ड ऑफ गवर्नर के चेयरमैन के पद से कार्यकाल ख़त्म होने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था. बताया जाता है कि वो आईआईटी के कामकाज में मंत्री के ज़्यादा दखल से परेशान थे.

विवादों से बच कर निकलना तो मानो स्मृति ने सीखा ही नहीं. फिर चाहे ‘डियर’ शब्द पर बिहार के शिक्षा मंत्री से ट्विटर पर विवाद हो, या कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी के साथ ट्विटर वार.

ख़बरों को लेकर पत्रकारों से ट्विटर पर झगड़ना भी स्मृति के लिए आम बात रही है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर भी कई मौकों पर वार और पलटवार करती रही है. डेटा लीक पर राहुल गांधी को संबोधित करते हुए उन्होंने ट्वीट किया था, " राहुल गांधी जी, छोटा भीम भी जानता है कि ऐप डाउनलोड करने पर मांगी जाने वाली अनुमतियों से जासूसी नहीं होती."

इससे पहले उनकी ‘लोकप्रियता’ पर सवाल उठाते हुए उन्होंने हाल ही में ट्वीट किया था, ‘शायद राहुल गांधी रूस, इंडोनेशिया और कज़ाखस्तान में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं? #RahulWaveInKazakh

हालांकि प्रधानमंत्री ने कुछेक मौक़ों पर स्मृति की तारीफ़ की है. स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकारी स्कूलों में शौचालय बनवाने का टारगेट, उन्होंने जिस तरह से पूरा कराया, उसकी तारीफ़ प्रधानमंत्री मोदी ने कई मंचों पर की.

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