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‘बांग्लादेशी घुसपैठ’ की आड़ में हिंसा की राजनीति

असम के कोकराझार और बक्सा में हाल के नरसंहार ने बोडो क्षेत्र में बीते दो दशकों से समय-समय पर हो रही हिंसा की ओर फिर ध्यान खींचा है. कुछ लोगों की नजर में बांग्लादेश से वर्षों से हो रहा ‘अवैध’आप्रवासन इसकी मुख्य वजह है. इस आम चुनाव में भी आप्रवासन और घुसपैठ का मुद्दा चर्चा […]

असम के कोकराझार और बक्सा में हाल के नरसंहार ने बोडो क्षेत्र में बीते दो दशकों से समय-समय पर हो रही हिंसा की ओर फिर ध्यान खींचा है. कुछ लोगों की नजर में बांग्लादेश से वर्षों से हो रहा ‘अवैध’आप्रवासन इसकी मुख्य वजह है. इस आम चुनाव में भी आप्रवासन और घुसपैठ का मुद्दा चर्चा में है. असम की हिंसा और कथित ‘अवैध’ आप्रवासन के विभिन्न आयामों को जानने-समझने का एक प्रयास..

सबसे पहले तो इस बात को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाना चाहिए कि असम के बोडो क्षेत्र में हाल में हुई हिंसा या पहले की ऐसी घटनाओं का बांग्लादेश से होनेवाले कथित ‘अवैध’ आप्रवासन से कोई संबंध नहीं है. यह हिंसा राजनेताओं की भाषणों की हिंसा, आरोप-प्रत्यारोप और परिस्थितियों से निपटने में राज्य सरकार की नाकामी का परिणाम है. आज असम में अल्पसंख्यकों के जान-माल की रक्षा करने में राज्य सरकार की क्षमता और इच्छाशक्ति पर गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं.

यह बात भी ध्यान में रखी जानी चाहिए कि बोडो क्षेत्र में 1993, 2008, 2012 में और हाल में हुई हर बड़ी हिंसा के दौरान असम में कांग्रेस की सरकार रही है. हालांकि राज्य सरकार ने इस हत्याकांड के लिए बोडोलैंड नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट के सोंगबजीत गुट को जिम्मेवार ठहराया है, लेकिन इस घटना के पीछे कई कारक हैं, जिन्हें समझना बहुत जरूरी है. बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट की नेता प्रमिला रानी ब्रह्मा ने चुनाव के बाद यह बयान दिया था कि मुसलमानों ने उनकी पार्टी के प्रत्याशी के पक्ष में मतदान नहीं किया है जिसके कारण वे हार सकते हैं.

अविश्वास के माहौल में इस बयान का नकारात्मक असर पड़ा. सरकार के पास यह भी सूचना है कि कुछ हमलों में वन विभाग के हथियारबंद कर्मचारी भी शामिल हैं. कुछ समय पूर्व आतंकियों ने सोनितपुर जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक की हत्या कर दी थी, जिसके बाद पुलिस ने बदले की कारवाई करते हुये सोंगबजीत गिरोह के कुछ सदस्यों को मार गिराया था. पुलिस के दबाव में उसके 150 से अधिक सदस्यों ने आत्मसमर्पण भी किया है. कई सदस्य गिरोह छोड़ के भाग भी गये हैं. ऐसे में यह गिरोह कोई बड़ी वारदात कर अपने वर्चस्व को साबित करने की फिराक में था. इस तरह की वारदात से सरकार और सुरक्षा-तंत्र पर दबाव बनता है, सांप्रदायिक तनाव का माहौल बनता है और आतंकियों को पुन: संगठित होने तथा अपनी ताकत बढ़ाने का समय मिल जाता है.

यदि हम बोडो क्षेत्र के इतिहास को देखें, तो 1993 से पहले वहां कोई बोडो व मुसलिम समुदायों के बीच हिंसा की स्थिति नहीं थी. वहां जो आंदोलन था, वह सरकार के विरुद्ध था और उनकी मांग अलग बोडो राज्य की थी.

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