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किसान आंदोलन: चलते-चलते पत्थर हुए पैर

महाराष्ट्र में अपनी कई मांगों को लेकर नाराज किसानों का मार्च लगातार जारी है. 7 मार्च को नासिक से शुरू हुआ ये मार्च 12 तारीख़ को राज्य की राजधानी मुंबई पहुंचेगा. किसानों ने शनिवार को पहला पड़ाव भिवंडी में डाला था. अब यह मार्च मुंबई तक पहुंच गया है. किसानों ने एलान किया है कि […]

महाराष्ट्र में अपनी कई मांगों को लेकर नाराज किसानों का मार्च लगातार जारी है. 7 मार्च को नासिक से शुरू हुआ ये मार्च 12 तारीख़ को राज्य की राजधानी मुंबई पहुंचेगा.

किसानों ने शनिवार को पहला पड़ाव भिवंडी में डाला था. अब यह मार्च मुंबई तक पहुंच गया है.

किसानों ने एलान किया है कि वो 12 मार्च को मुंबई में राज्य की विधानसभा का घेराव करेंगे और अपनी आवाज़ राजनेताओं के कानों तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे.

महाराष्ट्र में ‘भारतीय किसान संघ’ ने इस मार्च का आयोजन किया है. सात दिन तक चलने वाले इस मार्च में हिस्सा लेने पूरे राज्य से किसान आए हैं.

किसानों की सरकार से कर्ज माफी से लेकर उचित समर्थन मूल्य और जमीन के मालिकाना हक जैसी कई और मांगें हैं.

किसानों का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और गरीब और मझौले किसानों का कर्ज़ माफ़ किया जाए.

मराठवाड़ा इलाके में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार संजीव उनहाले कहते हैं, "कर्ज़ माफ़ी के संबंध में जो आंकड़े दिए गए हैं को बढ़ा-चढ़ा कर बताए गए हैं. जिला स्तर पर बैंक खस्ताहाल हैं और इस कारण कर्ज़ माफ़ी का काम अधूरा रह गया है.’

संजीव उनहाले कहते हैं, "कर्ज़ माफ़ी की प्रक्रिया इंटरनेट के ज़रिए हो रही है लेकिन डिजिटल साक्षरता किसानों को दी ही नहीं गई है, तो वो इसका लाभ कैसे ले पाएंगे? क्या उन्होंने इसके संबंध में आंकड़ों की पड़ताल की है?"

किसानों की मांग है कि उन्हें स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के अनुसार C2+50% यानी कॉस्ट ऑफ कल्टिवेशन (यानी खेती में होने वाले खर्चे) के साथ-साथ उसका पचास फीसदी और दाम समर्थन मूल्य के तौर पर मिलना चाहिए.

वरिष्ठ पत्रकार निशिकांत भालेराव ने कहा, "किसानों की समस्या का समाधान करने के लिए उन्हें उचित समर्थन मूल्य दिया जाना चाहिए. सिर्फ़ न्यूनतम समर्थन मूल्य दे देना काफ़ी नहीं. उन्हें मदद चाहिए, उनकी स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ रही है.

राज्य के आर्थिक सर्वे की बात करें तो बीते सालों में कृषि विकास दर कम हुई है.

इस मार्च में हज़ारों की संख्या में आदिवासी हिस्सा ले रहे हैं. वास्तव में, मार्च में सबसे अधिक संख्या में आदिवासी ही शामिल हैं.

कई आदिवासियों ने बताया, "कई बार वन अधिकारी हमारे खेत खोद देते हैं. वो जब चाहें तब ऐसा कर सकते हैं. हमें अपनी ज़मीन पर अपना हक चहिए. हमें हमेशा दूसरे की दया पर जीना पड़ता है."

बताया जा रहा है कि मार्च के पहले दिन करीब पच्चीस हज़ार किसानों ने इसमें हिस्सा लिया था. मुंबई पहुंचते-पहुंचते इनकी संख्या और बढ़ेगी.

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