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दिल्ली और इसराइली शहर हाइफ़ा का कनेक्शन क्या है?

<p>राजधानी का तीन मूर्ति चौक अब तीन मूर्ति हाइफ़ा चौक कहलाएगा. </p><p>दिल्ली के कई लोगों के मन में ये सवाल आ सकता है कि नई दिल्ली के तीन मूर्ति चौक और हाइफ़ा का क्या कनेक्शन है? </p><p>इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू भारत आए तो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद उनकी अगवानी के लिए एयरपोर्ट पहुंचे […]

<p>राजधानी का तीन मूर्ति चौक अब तीन मूर्ति हाइफ़ा चौक कहलाएगा. </p><p>दिल्ली के कई लोगों के मन में ये सवाल आ सकता है कि नई दिल्ली के तीन मूर्ति चौक और हाइफ़ा का क्या कनेक्शन है? </p><p>इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू भारत आए तो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद उनकी अगवानी के लिए एयरपोर्ट पहुंचे और वहां से दोनों इसी चौक पर पहुंचे, जहां नाम बदलने से जुड़ा आधिकारिक समारोह हुआ.</p><p>दोनों नेताओं ने वहां पुष्प अर्पित किए और मेमोरियल की विज़िटर्स बुक में संदेश लिखकर दस्तख़त भी किए.</p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india-42683452">भारत के लिए क्यों ज़रूरी है इसराइल?</a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india-42681765">कश्मीर में इसराइल दिखा रहा है भारत को रास्ता?</a></p><h1>क्या लिखा मोदी ने?</h1><p>इसमें मोदी ने लिखा कि वो ‘उन भारतीय सैनिकों के त्याग को नमन करते हैं जिन्होंने हाइफ़ा शहर को आज़ाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी.'</p><p>&quot;इनमें से एक पन्ना 100 साल पहले लिखा गया था जो हाइफ़ा में भारतीय सैनिकों के बलिदान का कहानी कहता है. इस बलिदान को सौ साल पूरे हो रहे हैं. और इस ऐतिहासिक अवसर पर इस जगह का नाम तीन मूर्ति-हाइफ़ा चौक कर रहे हैं. इसराइल के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में हम बहादुर सैनिकों को सलाम करते हैं.&quot;</p><p>दिल्ली से चार हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा दूर मौजूद इसराइल का ये शहर अचानक इतना अहम क्यों हो गया? इसके जवाब से पहले हाइफ़ा के बारे में जानना ज़रूरी है.</p><p>हाइफ़ा दरअसल, उत्तरी इसराइल का बंदरगाह वाला शहर है जो एक तरफ़ भूमध्य सागर से सटा है और दूसरी तरफ़ माउंट कैरमल है. </p><p>इसी शहर में बहाई विश्व केन्द्र भी है, जो यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट है.</p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india-42682468">’यहूदी-हिंदू राष्ट्र की मुहिम मज़बूत करने की गर्मजोशी'</a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-42660952">मोहब्बत के जाल में फांसने वाली मोसाद की वो जासूस</a></p><h1>इसराइल के शहर का क्या रिश्ता?</h1><p>अब सवाल ये है कि दिल्ली के एक चौराहे पर लगी तीन प्रतिमाओं का हाइफ़ा शहर से क्या लेना-देना है?</p><p>इन दोनों का रिश्ता जानने के लिए हमें साल 1918 में झांकना होगा. </p><p>कांसे की ये तीन प्रतिमाएं असल में हैदराबाद, जोधपुर और मैसूर लांसर की नुमाइंदगी करती हैं जो 15 इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड का हिस्सा थे. </p><p>पहले <a href="https://www.ndtv.com/india-news/battle-of-haifa-23-sep-1918-433155">विश्व युद्ध </a>के दौरान 23 सितंबरको इन तीनों इकाइयों ने मिलकर हाइफ़ा को कब्ज़े से छुड़ाते हुए जीत दर्ज की थी. </p><p>इस शहर पर ओटोमन साम्राज्य, जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी की संयुक्त सेना कब्ज़ा था. </p><p>और इसे जीतना इसलिए ज़रूरी था क्योंकि मित्र राष्ट्रों की सेनाओं के लिए रसद पहुंचाने का समंदर का रास्ता यहीं से होकर जाता था.</p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-42674719">मोदी से मिलने मोशे इसराइल से भारत आ रहा है</a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-42677815">फीका पड़ गया है भारत और इसराइल का रोमांस?</a></p><h1>हाइफ़ा में क्यों मरे थे भारतीय सैनिक?</h1><p>ब्रिटिश हुकूमत की ओर से लड़ते हुए इस लड़ाई में 44 भारतीय सैनिक मारे गए थे. आज भी 61 कैवलरी 23 सितंबर को रज़िंग डे या हाइफ़ा डे के रूप में याद करता है.</p><p>इसी दिन 15th (इम्पीरियल सर्विस) कैवलरी ब्रिगेड को हाइफ़ा पर कब्ज़े का आदेश दिया गया था. </p><p>नह्र अल मुगत्ता और माउंट कैरेमल की चोटियों के बीच के इलाके में ओटोमन साम्राज्य की तोपें और आर्टिलरी तैनात थी.</p><p>ब्रिगेड के जोधपुर लांसर्स को ये पोज़िशन कब्ज़ाने का हुक़्म दिया गया था जबकि मैसूर लांसर्स को शहर के पूर्वी से उत्तरी हिस्से की तरफ़ हमला करते हुए बढ़ने के निर्देश थे.</p><p>मैसूर लांसर्स के जवानों ने खड़ी चढ़ाई कर अहम पोज़िशन कब्ज़ा ली थी और गोलीबारी को शांत कर दिया. </p><p>जोधपुर लांसर्स और मैसूर के बचे हुए जवानों ने जर्मन मशीन गनों पर हमला बोला.</p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-42520471">भारत और इसराइल का गोपनीय प्रेम संबंध? </a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-42650327">तीन धर्मों वाले यरूशलम की आंखोंदेखी हक़ीक़त</a></p><h1>लड़ाई काफ़ी मुश्किल रही</h1><p>वो ओटोमन की पोज़िशन की तरफ़ बढ़े और एक्रे रेलवे लाइन पार की लेकिन उन पर मशीन गन और आर्टिलरी से भारी गोलीबारी की गई. </p><p>नदी किनारे मिट्टी की वजह से उनके आगे बढ़ने में दिक्कतें आईं तो वो बाईं ओर से माउंट कैरेमल की छोटी चोटियों की तरफ़ बढ़ने लगे.</p><p>इस रेजीमेंट ने 30 सैनिक पकड़े, दो मशीन गन और दो कैमल गन को कब्ज़े में लिया जिससे हाइफ़ा का रास्ता साफ़ हो गया. </p><p>इस बीच जोधपुर लांसर्स ने आगे बढ़ना जारी रखा जिससे बचाव की मुद्रा में खड़े सैनिक सकते में आ गए.</p><p>इन दोनों रेजीमेंट ने 1350 ओटोमन और जर्मन सैनिकों को घुटने टिकवा दिए, जिनमें सैन्य अधिकारी भी शामिल थे.</p><p>जोधपुर लांसर्स के कमांडर मेजर दलपत सिंह शेखावत इस लड़ाई में मारे गए थे और उन्हें बाद में सैन्य सम्मान मिलिट्री क्रॉस से नवाज़ा गया. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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