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स्टालिन की अकेली तस्वीर का राज

<p>आज दुनिया एक ग्लोबल विलेज में बदल चुकी है. सारी दुनिया आज एक दूसरे से संपर्क में है. </p><p>दुनिया में कहीं भी कुछ भी होता है, चंद सेकेंड में सबको ख़बर हो जाती है. ये सब संभव हो पाया है सोशल मीडिया के सबब. सिक्के के दो पहलुओं की तरह सोशल मीडिया के फ़ायदे और […]

<p>आज दुनिया एक ग्लोबल विलेज में बदल चुकी है. सारी दुनिया आज एक दूसरे से संपर्क में है. </p><p>दुनिया में कहीं भी कुछ भी होता है, चंद सेकेंड में सबको ख़बर हो जाती है. ये सब संभव हो पाया है सोशल मीडिया के सबब. सिक्के के दो पहलुओं की तरह सोशल मीडिया के फ़ायदे और नुक़सान दोनों हैं. </p><p>प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल एक मज़बूत हथियार की तरह होता है. अफ़वाहें फैलाने में व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर मददगार साबित होते हैं. </p><p>ऐसा भी नहीं है कि ‘प्रोपेगेंडा’ सोशल मीडिया युग की देन है. तथ्य को तोड़ने-मरोड़ने की कोई नई पैदावार है. जब ये संसाधन नहीं थे तब भी सत्ताधारी पार्टियां अपने फ़ायदे के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाती थीं. </p><p>अक्टूबर 1917 की रूसी क्रांति का इतिहास में बड़ा महत्व है. इसी साल इस क्रांति के सौ साल पूरे होने के मौक़े पर लंदन की मशहूर टेट मॉडर्न आर्ट गैलरी में एक नुमाइश लगी. नाम था ‘रेड स्टार ओवर रशिया’. इस प्रदर्शनी में 1905 से 1955 तक की सोवित संघ और रूस की तमाम सियासी शख़्सियतों और सियासी मंज़रनामे की तस्वीरें लगाई गई हैं. </p><p><a href="http://www.bbc.com/hindi/international-41788488">अक्तूबर क्रांति को नवंबर में क्यों मनाया जाता है?</a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/magazine-42079407">लेनिन कैसे बने आधुनिक दुनिया की पहली ‘ममी'</a></p><h1>तस्वीर में अकेले होते स्टालिन</h1><p>ये तस्वीरें मौजूदा सियासी माहौल समझने के लिए भी मौज़ू हैं. प्रदर्शनी में उन लोगों की तस्वीरें लगी हैं जिन्हें स्टालिन के ज़माने में मौत के घाट उतार दिया गया था. कुछ उन लोगों की तस्वीरें हैं, जिन्हें बंधक बनाकर गुलाग के बदनाम लैबर कैंप में भेज दिया गया था. </p><p>ग़ौर से देखने पर मालूम होता है कि इन तस्वीरों में वो लोग शामिल हैं जो स्टालिन के निज़ाम के निशाने पर थे.</p><p>मिसाल के लिए स्टालिन की कुछ तस्वीरें उनके कुछ साथियों के साथ हैं. ये तस्वीरें अलग-अलग दौर की हैं. पहली तस्वीर में स्टालिन अपने चार साथियों के साथ हैं. दूसरी तस्वीर 23 साल बाद की है. जिसमें स्टालिन के तीन साथी नदारद हैं. </p><p>जबकि तीसरे फोटो में स्टालिन अकेले नज़र आते हैं. इन तस्वीरों को दखकर ये माना जा सकता है कि जिनके साथ स्टालिन के संबंध ख़राब हुए, उन्हें स्टालिन ने तस्वीरों से भी हटा दिया. </p><p>तस्वीरें इतिहास होती हैं. वो बोलती हैं. जहां शब्द कमज़ोर पड़ जाते हैं वहां एक तस्वीर पूरी कहानी बयान कर देती है. शायद इसीलिए इन तस्वीरों से विरोधियों को एक-एक कर हटा दिया गया. </p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/12/131210_lenin_statue_dp">ख़ास हैं लेनिन की ये पाँच प्रतिमाएँ</a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-41941076">जोसेफ़ स्टालिन: इंक़लाबी राजनीति से ‘क्रूर तानाशाह’ बनने का सफ़र</a></p><h1>इतिहास</h1><p>कहा जा सकता है कि स्टालिन आने वाली पीढ़ियों को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ इतिहास बताना चाहते थे. </p><p>लेकिन इन तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ भी मुमकिन है. अगर इन तस्वीरों के साथ छेड़ छाड़ हुई है, तो ये इतिहास को ही बदल देती हैं. </p><p>ये तस्वीरें उस दौर की हैं जब तकनीक आला दर्जे की नहीं थी. लेकिन आज तकनीक बहुत एडवांस है. </p><p>अगर इसी तरह आज फोटोशॉप के ज़रिए किसी भी ऐतिहासक तस्वीर को बदल दिया जाए तो आने वाली पीढ़ी नए तरह का इतिहास ही समझेगी. </p><p>लेकिन प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए ऐसी तस्वीरों का इस्तेमाल अक्सर होता रहा है.</p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-41876683">रूसी क्रांति में लेनिन से कम महत्वपूर्ण नहीं थीं मिसेज़ लेनिन</a></p><h1>पुराने ज़माने में फ़ोटोशॉप</h1><p>बीस और तीस के दशक में ‘फोटोमोंटाज’ तकनीक का इस्तेमाल करके मुख़्तलिफ़ फोटो मिलाकर एक नई फोटो तैयार कर ली जाती थी. </p><p>इस तकनीक का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता था. आज भी इस तकनीक का एडवांस रूप ख़ूब इस्तेमाल किया जा रहा है.</p><p>टेट गैलरी की प्रदर्शनी में लगा एक पोस्टर इस तरह की फोटोग्राफ़ी की बेहतरीन मिसाल है. इस पोस्टर में एक रूसी महिला की तस्वीर है जो हाथ में झंडा थामे है. </p><p>बुनियादी तौर पर ये फोटो एक ही रंग की है. लेकिन तस्वीर में नज़र आ रहे झंडे में बहुत सफ़ाई से लाल रंग भर दिया गया है जिससे ये एकदम ओरिजनल तस्वीर लगती है. </p><p>ये तस्वीर अपने आप में पैग़ाम देती है कि बोल्शेविक क्रांतिकारियों के दौर में रूस में इंक़लाबी बदलाव हुए. </p><p>’रेड स्टार ओवर रशिया’ नाम की इस प्रदर्शनी में ग्राफ़िक डिज़ाइनर डेविड किंग की बहुत से तस्वीरें लगाई गई हैं, जो भ्रम पैदा करने वाली हैं. </p><p>इन तस्वीरों का मक़सद सोवियत संघ के नागरिकों को कम्युनिस्ट सरकार को स्वीकार करने के लिए ज़हनी तौर पर तैयार करना था. </p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-40055214">रूस क्यों चाहता है, इस लेखक को पढ़ें अमरीकी?</a></p><h1>महिला की तस्वीर</h1><p>दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्टालिन को ज़रूरत थी ऐसे लोगों की, जो अपने वामपंथी नेता के लिए लड़ सकें. लेकिन उसके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जो लोगों को जान की बाज़ी लगाने की प्रेरणा देता. लिहाज़ा मां या बेटी की तस्वीर इसकी प्रेरणा बन सकती थी. </p><p>इस मक़सद के लिए जो पोस्टर बनाए गए उनमें महिलाओं की ऐसी तस्वीरें बनाई गईं जो लोगों को फासीवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ लड़ने का हौसला दे रही थीं.</p><p>दरअसल हिटलर और मुसोलिनी की अगुवाई वाली फासीवादी ताक़तें महिलाओं को आज़ादी देने के हक़ में नहीं थीं. </p><p>लिहाज़ा स्टालिन ने महिलाओं की तस्वीरों का इस्तेमाल कर ये संदेश देने की कोशिश की कि अगर आज़ादी चाहिए तो फासिस्टों के ख़िलाफ़ उठना ही होगा. </p><p>ये और बात है कि बाद में यही तस्वीरें महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाने में अहम रोल निभाती नज़र आईं. </p><p>इसके बाद ही यूरोप में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला. </p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2011/04/110422_22april_history_pa">’अर्थ डे’ की शुरुआत, लेनिन का जन्म</a></p><h1>लेनिन की तस्वीरें</h1><p>धर्म का दबदबा हमारी ज़िंदगी में हमेशा से रहा है. इसीलिए धार्मिक महत्व की मूर्तियों की कॉपी करके कोई संदेश लोगों तक पहुंचाना आसान था. </p><p>धर्म के अफीमची और कम पढ़े-लिखे लोगों को बरग़लाने के लिए इस तरह की तस्वीरों का खूब इस्तेमाल हुआ. </p><p>हालांकि ये भी एक तरह का प्रोपेगेंडा ही था. अगर उस दौर की लेनिन की कुछ तस्वीरों को देखा जाए तो उन्हें करीब छह मुख़्तलिफ़ अंदाज़ से दिखाया गया है. हरेक तस्वीर में लेनिन को एक क्रांतिकारी के तौर पर दिखाने की कोशिश की गई है. </p><p>असल में इन तस्वीरों का मक़सद कला को प्रोत्साहन देना कम और सियासी फ़ायदों के लिए ज़्यादा इस्तेमाल करना था.</p><p>सोवियत संघ में शुरूआती दौर में इस तरह की तस्वीरें बनाने का चलन गली-मोहल्लों में था. बाद में इनका इस्तेमाल, पोस्टर, रेलगाड़ियों, अख़बार, मैग्ज़िन और होर्डिंग में होने लगा. </p><p>धीरे धीरे जब इन तस्वीरों की ताक़त समझ में आने लगी, तो ख़त्म होते सोवियत संघ ने इस कला का इस्तेमाल अपने फ़ायदे के लिए करना शुरू कर दिया. </p><p>ये तस्वीरें कला के नुक़्ते-नज़र से तो अहम थी हीं, लेकिन इनके सियासी मानी ज़्यादा होते थे. </p><p>प्रदर्शनी में आज जो तस्वीरें लगाई गई हैं वो हैरान करने वाली हैं. उस दौर में हो सकता है इनकी अहमियत सिर्फ़ कला की हैसियत से रही हो. लेकिन आज इनका मतलब साफ़ समझ में आता है कि ये कला सियासी फ़ायदे हासिल करने के लिए तैयार की गई थी. </p><p>मौजूदा दौर में जब सियासी फ़ायदे उठाने के लिए अफ़वाहों और झूठी खबरों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है, तो ऐसे में इन तस्वीरों की अहमियत और बढ़ जाती है.</p><p>(<a href="http://www.bbc.com/culture">बीबीसी कल्चर</a> पर इस स्टोरी को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए <a href="http://www.bbc.com/culture/story/20171110-the-early-soviet-images-that-foreshadowed-fake-news">यहां</a> क्लिक करें. आप बीबीसी कल्चर को <a href="https://www.facebook.com/BBCCulture/">फ़ेसबुक</a> और <a href="https://twitter.com/bbc_culture">ट्विटर</a> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</p><p>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए <a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a> करें. आप हमें <a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a> और <a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a> पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)</p>

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