अमेरिका एक ऐसा देश है, जो लोगों को अपनी ओर हमेशा ही आकर्षित करता है. कुछ यहां घूमने के लिए बैचेन रहते हैं, तो युवा अमेरिका से पढ़ाई करने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं.
पिछले दिनों काउंसिल ऑफ ग्रेजुएट स्कूल्स (सीजीएस) के अध्ययन से सामने आया कि भारत से अमेरिका जाकर ग्रेजुएशन करनेवाले विद्यार्थियों की संख्या प्रभावशाली तरीके से 32 फीसदी बढ़ गयी है.
इस तरह अब वहां कुल अंतरराष्ट्रीय स्नातक छात्रों में भारतीय छात्रों का आकड़ा 18 फीसदी का होगा. इस मामले में चीन से आनेवाले स्नातक छात्रों की संख्या में एक फीसदी की गिरवाट देखी गयी है. अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या बढ़ना खुद संस्थान के लिए भी काफी मायने रखता है.
सीजीएस प्रेसिडेंट डेब्रा डब्ल्यू स्टेवर्ट के मुताबिक अमेरिका के स्नातक संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में पिछले एक साल के दौरान सात फीसदी की बढ़ोतरी होना सकारात्मक चिह्न है.
* लगातार बढ़ रहे हैं अंतरराष्ट्रीय छात्र
इस अध्ययन पर गौर करें तो इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय स्नातक आवेदनों की संख्या में हुई बढ़ोतरी को स्थिर नहीं माना जा सकता है, क्योंकि यह बढ़ोतरी सिर्फ एक देश के कारण हुई है और वह देश है भारत. यह कहना है सीजीएस की प्रेसिडेंट का. इस सर्वे के मुताबिक 2013 में अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय स्नातक की संख्या दो फीसदी बढ़ी थी, जबकि 2014 में सात फीसदी. 2006 से 2012 और अब 2014 में हुई लगातार बढ़ोतरी दर्शाती है अमेरिका में 9/11 की घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय स्नातक में आयी गिरावट अब दूर हो गयी है.
* कौन से मुख्य देश
अमेरिका के विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय स्नातक देनेवाले देशों में भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और कनाडा मुख्य भूमिका निभाते हैं. यह सर्वे मुख्य रूप से सात देशों (भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, टाइवान, कनाडा, मेक्सिको और ब्राजील) और तीन रीजंस (मिडिल इस्ट, अफ्रीका और यूरोप) में कराया गया है.
अमेरिका ने ऐतिहासिक ढंग से सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभावान अंतरराष्ट्रीय स्नातकों को नौकरी दी है. इससे अमेरिका अनुसंधानों और इनोवेशंस करने में सबसे आगे निकल सका है.
* किन क्षेत्रों की है मांग
अध्ययन के मुताबिक शुरू में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय स्नातकों के आवेदन इंजीनियरिंग, फिजिकल और अर्थ साइंसेस, बिजनेस के साथ एकाउंट्स में मिले हैं. इसमें 64 फीसदी की बढ़ोतरी मिली. वैसे 2014 में आर्ट्स और ह्यूमेनिटीज में तीन फीसदी और अन्य क्षेत्रों में दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई. सोशल साइंसेस और साइकोलॉजी के प्रोग्राम में आवेदन पिछले वर्ष के बराबर ही रहे. जबकि एजुकेशन में एक फीसदी और लाइफ साइंस में छह फीसदी की गिरावट भी देखी गयी.