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पुस्तक समीक्षा: लोककथात्मक शैली की कहानियां

काफिर बिजूका उर्फ इब्लीस लेखक – सत्यनारायण पटेल आधार प्रकाशन – मूल्य : 200 रुपये कथाकार सत्यनारायण पटेल का तीसरा कहानी संग्रह है काफिर बिजूका उर्फ इब्लीस. इस संग्रह में कुल छह कहानियां हैं और हर कहानी अपने अनूठेपन से पाठक के मन को छू लेने का माद्दा रखती है. ये कहानियां अनूठी हैं, न […]

काफिर बिजूका उर्फ इब्लीस

लेखक – सत्यनारायण पटेल

आधार प्रकाशन – मूल्य : 200 रुपये

कथाकार सत्यनारायण पटेल का तीसरा कहानी संग्रह है काफिर बिजूका उर्फ इब्लीस. इस संग्रह में कुल छह कहानियां हैं और हर कहानी अपने अनूठेपन से पाठक के मन को छू लेने का माद्दा रखती है. ये कहानियां अनूठी हैं, न सिर्फ इस मायने में कि लोककथात्मक शैली में लिखी गयी हैं, बल्कि इनमें मौजूदा समय-समाज का दृश्य भी प्रभावी ढंग से शामिल है.

लेखक ने बहुत ही सहजता से लोक कथाओं के प्रतीकों और बिंबों का इस्तेमाल वर्तमान की कहानी कहने के लिए किया है. संग्रह की पहली कहानी …पर पाजेब न भीगेह्ण यूं तो एक बंजारे और बंजारन की प्रेम कथा लगती है, लेकिन इसके मूल में बांध निर्माण है. वो बांध, आज जिन्होंने कई गांवों और शहरों को जल समाधि दे दी है. घट्टी वाली माई की पुलिया कहानी में इशारा है इस बात का कि अनीतियों की सुरंग हमारे गांव, जंगल, जमीन, नदी और पहाड़ को निगलती जा रही है. वहीं ठग कहानी इंसान में बढ़ती जा रही पैसे की भूख को दर्शाती है. चंद रुपयों के लालच में लोग किस तरह एक-दूसरे ठग रहे हैं, यह इसमें बखूबी अभिव्यक्त किया गया है.

न्याय कहानी में आक्रोश से भरे पात्र आमिर की पीड़ा के जरिये लेखक ने मौजूदा न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े किये हैं. ये सवाल कहीं न कहीं मौजूं भी लगते हैं. वहीं एक था चिका, एक थी चिकी कहानी उस अतीत में ले जाती है, जिसमें दादी-नानी से कहानियां सुनने का चलन था. चिका और चिकी की माध्यम से कहानी गांव-कस्बों से महानगर में आ बसे लोगों के यथार्थ से रूबरू कराती है, जहां लोग दड़बेनुमा फ्लैट में साथ रह कर भी अलग-अलग जीने को विवश हैं.

संग्रह की अंतिम कहानी,काफिर बिजूका उर्फ इब्लीस जो इस किताब की शीर्षक कहानी भी है, यह सोचने के लिए विवश करती है कि धर्म ग्रंथों में लिखी बातें क्या सच में देवताओं के मुख से निकले शब्द हैं! या इनमें धर्म के तथाकथित ठेकेदारों के मन से उपजी हुई बातें लिखी हैं! लेखक ने इस कहानी के जरिये सवाल उठाया है कि प्रेम तो राजा- महाराजाओं के जमाने से किया जाता रहा है. लेकिन उस दौर में भी प्रेम को सर्व सम्मति से अपनाया जाता था, फिर आज जब हम आधुनिक कहलाने लगे हैं, समाज इसे मान्यता क्यों नहीं दे पा रहा!

संग्रह की सभी कहानियों में साहस का पुट है. यही कारण है कि बिजूका तरह ही एक आम आदमी अपना उपहास सहते हुए निखरते-निखरते पहले काफिर बनता है फिर इब्लीस, जैसा कि रोहिणी अग्रवाल ने इसकी भूमिका में लिखा है. भाषा की दृष्टि से भी कहानियां खास छाप छोड़ती हैं.

– पत्रिका

समकालीन भारतीय साहित्य

अतिथि संपादक : रणजीत साहा

अंक : मार्च-अप्रैल 2014,मूल्य :25 रु.

समकालीन भारतीय साहित्य के इस अंक में मोनिका गजेंद्रगडकर की मराठी से हिंदी में अनूदित कहानी ह्यदो छोरों के बीचह्ण धर्म और इंसान के साथ रिश्ते की पड़ताल करती है. हिंदी सहित विभिन्न भाषाओं से हिंदी में अनूदित अन्य कहानियां हैं, जया जादवानी की अब उठूंगी राख सेह्ण, अण्णा भाऊ साठे की मरघट का सोना, जसवीर राणा की घुंघरू कथा, इश्तियाक सईद की रेवड़ आदि. हिंदी और विभिन्न भाषाओं से हिंदी में अनूदित ए अरविंदाक्षन, एम कमालुद्दीन और नंदकिशोर आचार्य आदि की कविताएं पढ़ी जा सकती हैं.

– नयी पुस्तकें

तीन अकेले साथ-साथ

लेखक : मीरा कांत

मूल्य: 195 रुपये

प्रकाशक : स्वराज प्रकाशन

मगहर की सुबह

लेखक : वंदना शुक्ल

मूल्य: 200 रुपये

प्रकाशक : आधार प्रकाशन

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