"कोई दिन ऐसा नही होता था जब मैं रोती नहीं थी. देखती थी कि दोस्त रोज़ खेलने के लिए ग्राउंड जा रहे हैं. मन करता था कि भाग जाऊं, कुछ कर लूं. बहुत परेशान थी. कुछ समझ नहीं आता था. दो दिन तक खाना भी नहीं खाया था."
ये शब्द हैं बिहार की महिला हैंडबॉल टीम की कैप्टन ख़ुशबू के, जिनके खेलने पर परिवारवालों ने दो साल पहले बंदिश लगा दी थी. मगर अब वह उज्बेकिस्तान के ताशकंद में 23 सितंबर से 2 अक्तूबर तक होने जा रही एशियन विमन क्लब लीग हैंडबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लेंगी.
ख़ुशबू मूलत: बिहार के नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड के भदौर गांव की रहने वाली हैं हैं. उनके माता-पिता पटेल नगर में रहते हैं. पिता अनिल कुमार आटा चक्की चलाते हैं और इसी से परिवार का गुज़ारा चलता है.
ख़ुशबू की एक बहन है और एक भाई. बहन बीएसएफ़ में एसआई हैं और भाई विद्युत विभाग में काम करते हैं.
घरवालों ने लगा दी थी बंदिश
आज ख़ुशबू भारतीय हैंडबॉल महिला टीम में बिहार की इकलौती खिलाड़ी हैं. मगर वह इस जगह न होतीं, अगर एक चिट्ठी ने उनका जीवन न बदला होता.
ख़ुशबू बताती हैं, "खेल की प्रैक्टिस की वजह से मैं कभी-कभी देर रात घर पहुंचती थी. कोई लड़की यह खेल नहीं खेलती थी, ऐसे में प्रैक्टिस लड़कों के साथ होती थी. आस-पड़ोस का कोई देख लेता था तो मम्मी-पापा को ताने मारने लगता था. पड़ोसियों के दबाव में आकर घरवालों ने मेरे खेलने पर रोक लगा दी."
ख़ुशबू बताती हैं कि एक महीने तक उन्हें घर से निकलने नहीं दिया गया. वह कहती हैं, "आम लड़कियों की तरह जीना सीख लिया था मैंने. मुझे लगा कि आगे नहीं खेल पाऊंगी."
मगर ख़ुशबू जब हताश हो चुकी थीं, एक चिट्ठी उनके लिए उम्मीदें लेकर आई. ख़ुशबू बताती हैं, "उस समय इंडिया कैंप का एक लेटर आया था, जिसमें बारहवें सैफ खेलों के लिए मेरा चयन हुआ था. मैंने घरवालों को विश्वास दिलाया, उन्हें मनाया, एक चांस मांगा."
ख़ुशबू बताती हैं कि मां ने तो मदद की, मगर पापा ने सपॉर्ट नहीं किया. फिर भी घरवाले किसी तरह एक मौका देने के लिए तैयार हो गए.
बंदिश के बाद ख़ुशबू जब घर से बाहर निकलीं तो उनका आत्मविश्वास बढ़ चुका था. वह 2015 में बांग्लादेश के चटगांव में आयोजित गेम्स में भारतीय टीम में शामिल हुईं और बेहतरीन प्रदर्शन किया. 2016 में वियतनाम में आयोजित पांचवें एशियन बीच गेम्स में भी उन्होंने हिस्सा लिया. आज वह बिहार पुलिस में भी काम कर रही हैं.
आज माता-पिता को है नाज़
पहले भले ही माता-पिता को ख़ुशबू का खेलना पसंद नहीं था, मगर अब उन्हें अपनी बेटी पर नाज़ है.
ख़ुशबू की मां प्रभा देवी कहती हैं, "हमारे यहा लड़कियां कम खेलती थीं. लोग आकर शिकायत करते थे तो हमने इसका खेल छुड़वा दिया. फिर ख़ुशबू ने कहा कि एक मौका दे दो, मैं बढ़िया खेलकर दिखा दूंगी."
वह याद करती हैं, "ख़ुशबू जब बांग्लादेश में अच्छा प्रदर्शन करके लौटी तो साथी खिलाड़ियों ने उसका ज़ोरदार स्वागत किया. घर के बाहर ढोल बजाते हुए भीड़ आ रही थी. पहले लगा कि किसी की शादी होगी, मगर बाहर देखा तो ख़ुशबू फूलमालाओं से लदी थी."
प्रभा बताती हैं कि अब माहौल बदल गया है और लोग कहने लगे हैं कि आपकी बेटी नाम कर रही है.
दादा तो अब भी नाराज़ हैं
ख़ुशबू के पापा अनिल भी अब बेटी के आगे बढ़ने से ख़ुश हैं. वह कहते हैं, "लोग बोलते थे कि आपकी बेटी लड़कों के साथ खेलती है. बुरा लगता था. हम छोटे आदमी हैं. हमें लगता था कि ऐसी बात फैल जाएगी तो उसकी शादी में दिक्कत हो जाएगी. मगर आज हम बाज़ार से निकलते हैं तो लोग बहुत इज्जत देते हैं."
बाकी लोग तो ख़ुश हैं, मगर ख़ुशबू के दादा आज भी नाराज़ हैं. उन्होनें तो यह तक कह दिया था कि जल्दी से ख़ुशबू की शादी करवा दो.
आज तक उन्होंने ख़ुशबू को शुभकामनाएं नहीं दी हैं.
‘जबरदस्त खिलाड़ी है ख़ुशबू’
2008 में नवादा में 54वें नेशनल स्कूल गेम्स का आयोजन हो रहा था. हैंडबॉल की गर्ल्स टीम नहीं थी. तभी प्रोजेक्ट स्कूल की आठवीं की छात्रा ख़ुशबू को टीम में शामिल किया गया और इस टीम ने जीत भी हासिल की. इसके बाद उन्हें कैप्टन बनाया गया . वह लगातार बिहार की बेस्ट खिलाड़ी के ख़िताब से नवाज़ी जाती रही हैं.
हैंडबॉल के जानकर ख़ुशबू के खेलने की शैली के मुरीद हैं. बिहार हैंडबॉल पुरुष टीम के कप्तान कनक कुमार ने बीबीसी से कहा, "ख़ुशबू का फ़ेकिंग स्टाइल बहुत अच्छा है. अकेला डिफ़ेंडर उसे रोक नही पाता. इसके लिए दो खिलाड़ियों की ज़रूरत पड़ती है. दूसरी ख़ासियत है उसका बॉल दागने का अंदाज़. गोलकीपर भी धोखा खा जाता है.’
भारतीय हैंडबॉल गर्ल्स टीम के मुख्य कोच शिवाजी सिंधु ने बीबीसी से कहा, "वह एशियन चैम्पियनशिप में पहली दफ़ा मेरे साथ जा रही है, मगर इसके पहले एशियन बीच गेम में गई थी और काफ़ी बढ़िया खेली थी. उसमें काफ़ी इंप्रूवमेंट है. वह काफी मेहनत कर रही है और आनेवाले समय में और बेहतर करेगी."
सरकार से निराशा
ख़ुशबू 2008 से लगातार बिहार की हैंडबॉल महिला टीम की कैप्टन हैं. वह बेस्ट खिलाड़ी का अवॉर्ड भी जीत चुकी हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह कई मेडल और प्रशस्ति पत्र हासिल कर चुकी हैं. मगर परिवार को मलाल है कि ख़ुशबू को सरकार से ख़ास सहयोग नहीं मिल रहा.
ख़ुशबू के भाई अभिषेक दीपक कहते हैं, "दीदी नवादा और बिहार का नाम रोशन कर रही हैं, मगर खेल कोटे से आजतक उन्हें कुछ नहीं मिला. बिहार पुलिस में भी वह अपने बूते नौकरी कर रही हैं. सरकार को इस पर विचार करना चाहिए."
बिहार राज्य हैंडबॉल एसोसिएसन के महासचिव ब्रजकिशोर सरकार की अनदेखी पर कहते हैं, "बिहार के बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है. अगर सरकार उदासीन नहीं है तो हरियाणा कैसे आगे निकल गया?"
मैदान में अब भी कम हैं लड़कियां
ख़ुशबू को लगता है कि अभी भी लोगों की सोच नहीं बदली है और इसी वजह से नवादा में बहुत कम लड़कियां खेलने आती हैं.
वह कहती हैं, "बिहार पुलिस कैंप में भी लड़कियों की संख्या कम है. 12-13 लड़कों के साथ अकेले प्रैक्टिस करनी पड़ती है."
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