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पेंट में सीसा, इसके खतरों को जानिए

-डॉ अभय कुमार- घरेलू इस्तेमाल की चीजों, खासकर पेंट में सीसा (लेड) की मात्र स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिहाज से दुनियाभर में चिंता का विषय है. इसके मद्देनजर भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल में घरेलू पेंट में सीसा की मात्र कम करने के लिए कुछ नये मानक तय किये हैं. हालांकि, ये मानक स्वैच्छिक हैं, […]

-डॉ अभय कुमार-

घरेलू इस्तेमाल की चीजों, खासकर पेंट में सीसा (लेड) की मात्र स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिहाज से दुनियाभर में चिंता का विषय है. इसके मद्देनजर भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल में घरेलू पेंट में सीसा की मात्र कम करने के लिए कुछ नये मानक तय किये हैं. हालांकि, ये मानक स्वैच्छिक हैं, इसलिए अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है. पेंट में सीसे की मिलावट के खतरों और इसके लिए तय मानक की जानकारी दे रहा है आज का नॉलेज.

असिस्टेंट प्रोफेसर, उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, शिलांग

मानक निर्धारित करनेवाली भारत की सर्वोच्च संस्था, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस)ने एक अधिसूचना (आइएस: 133: 2013) के जरिये घरेलू पेंट (रंग) में सीसे (लेड) की स्वैच्छिक मानक मात्र को 1,000 पीपीएम (1,000 पार्ट्स प्रति दस लाख) से घटा कर 90 पीपीएम (90 पार्ट्स प्रति दस लाख) कर दिया है. यह एक स्वागतयोग्य कदम है. भारत में कई स्वयंसेवी संगठन और पर्यावरणकर्मी कई वर्षो से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि यह संघर्ष अभी पूरा नहीं हुआ है, क्योंकि ये मानक स्वैच्छिक हैं और पेंट बनानेवाली कंपनियां इन मानकों को अपनाने के लिए बाध्य नहीं हैं.

पेंट के प्रकार

पेंट को उनके उपयोग के आधार पर घरेलू (इन्हें ‘सजावटी’ भी कहा जाता है) या औद्योगिक पेंट में वर्गीकृत किया गया है. घरेलू (या सजावटी) पेंट मुख्य रूप से घरों और इमारतों की आंतरिक या बाहरी सतह पर कोटिंग में इस्तेमाल किया जाता है, जबकि औद्योगिक पेंट मोटर, स्टील से बनी संरचनाओं जैसे पुल, समुद्री जहाज इत्यादि के कोटिंग में उपयोगी होता है. विलायकों के आधार पर भी घरेलू पेंट कोवर्गीकृत किया गया है. एनामेल पेंट तेल आधारित हैं, जबकि प्लास्टिक पेंट पानी आधारित हैं.

सीसा और इसकी विषाक्तता

सीसा एक भारी धातु है, जो आधुनिक आवर्त सारिणी (रसायन विज्ञान) के 14वें समूह, छठे आवर्त का एक धातु है. इसका परमाणु संख्या 82 और सापेक्षिक परमाणु भार 207.2 है. सीसा प्रकृति में प्राय: सल्फाइड के साथ मिलता है. डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के एक दस्तावेज के मुताबिक, सीसा एक न्यूरोटौक्सिक धातु है. यानी सीसामुख्य तौर पर बच्चों के तंत्रिका तंत्र को विषाक्त करता है और उनके समग्र विकास में बाधा पहुंचाता है. सीसा से कई अन्य किस्म की बीमारियां भी हो सकती हैं- जैसे अंगुलियों, कलाई या टखनों में कमजोरी, एनीमिया आदि.

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, बच्चों के खून में यदि सीसा की मात्र पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसी लीटर से ज्यादा हो, तो यह चिंता का विषय है और फिर उसका इलाज होना चाहिए. वैसे डॉक्टरों के अनुसार, खून में सीसा की मात्र कीकोई सुरक्षित सीमा नहीं है. पीने लायक पानी में सीसा की मात्र 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.वायुमंडल में मौजूद हवा में सीसा का मानक 0.5 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर (वार्षिक औसत) है.

यही कारण है कि दुनियाभर में हमेशा ही यह प्रयास हुए हैं कि पर्यावरण से सीसा के स्नेत को यथासंभव कम किया जाये. सीसा के विषाक्त प्रभाव के कारण ही सीसा के प्रयोग को आखिरकार पेट्रोलियम पदार्थ से चरणबद्ध तरीके से हटा दिया गया. अब किसी भी देश में मोटर वाहनों में इस्तेमाल किये जाने वाले पेट्रोलियम ईंधन में सीसे का उपयोग नहीं होता है. सिर्फ इस एक उपाय से वायुमंडल में सीसे की मात्र में काफी कटौती हुई है. लेकिन हमें इस दिशा में कोशिश आगे भी जारी रखनी होगी, ताकि पर्यावरण से सीसे के स्नेत को कम किया जा सके.

पेंट में सीसा का इस्तेमाल

पेंट में सीसा का इस्तेमाल अनेक वजहों से किया जाता है. सीसा का उपयोग पेंट में न सिर्फ रंग के लिए किया जाता है, बल्कि सीसा पेंट को टिकाऊ और जंग प्रतिरोधी भी बनाता है. पेंट में सीसा का उपयोग दीवारों, लकड़ियों और धातु पर कोटिंग्स को ज्यादा से ज्यादा दिनों तक टिकाऊ बना कर रखता है. साथ ही, यह उसे अन्य प्रकार से भी सुरक्षित रखता है. सीसा के कई किस्म के यौगिकों- जैसे सीसा ऑक्साइड, सीसा काबरेनेट का इस्तेमाल पेंट में किया जाता है. इस तरह के यौगिक ही सीसा के साथ सीधे संपर्क के मुख्य स्नेत हैं. पेंट में सीसा के यौगिकों की जगह दूसरे सुरक्षित विकल्प हैं, जैसे टाइटेनियम के यौगिक.

पेंट से शरीर में पहुंचता सीसा

जब दीवारों, दरवाजों एवं खिड़कियों पर लगे पेंट क्षय हो कर धूल और मिट्टी में मिलते हैं, तो पेंट में इस्तेमाल होनेवाला सीसा भी उनका हिस्सा हो जाते हैं. बच्चों की एक सामान्य आदत होती है कि वे किसी भी चीज को मुंह में ले लेते हैं या वे अपने हाथ को बार-बार मुंह में लेते हैं. ऐसा करने के दौरान धूल-मिट्टी में मिला सीसा उनके शरीर के भीतर पहुंच जाता है और इस तरह से बच्चे सीसा के संपर्क में आते हैं. बच्चों के विकास के लिए यह काफी खतरनाक साबित होता है. कई और तरीकों से भी सीसा से खतरनाक संपर्क हो सकता है.

नगर निगम द्वारा घरों में पेयजल की आपूर्ति के लिए बिछाये गये पाइपलाइन के नेटवर्क में सीसा का इस्तेमाल पाइपों के जोड़ने के लिए किया जाता है. पेयजल में यह सीसा का एक संभावित स्नेत है. इसलिए कहा जाता है कि यदि आप नल से पीने के लिए पानी इकट्ठा करें, तो शुरू में आनेवाले पानी को किसी और उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करें, ताकि यदि पाइप के पानी में सीसा जमा हुआ हो, तो उससे हम बच सकते हैं.

घरेलू धूलकणों में सीसा

सीसा हमारे घर के आस-पास की मिट्टी या घर के धूल-कणों में भी पाया जा सकता है. यह सीसा घर में इस्तेमाल पेंट के खस्ताहाल होने से उसके क्षय से मिट्टी में मिलने से आ सकता है या विरासत में भी मिल सकता है. दरअसल, एक समय पेट्रोलियममें सीसा का इस्तेमाल मोटर वाहनों में होनवाली खड़-खड़ की आवाज को रोकने (एंटी-नॉकिंग एजेंट) के लिए किया जाता था.

एक शोध के दौरान दिल्ली के घरों में नंगे फर्श से धूल के 99 नमूने और खिड़कियों से धूल के 49 नमूने को लेकर सीसा की मात्रा की जांच की गयी. इसमें यह पाया गया कि धूलकणों में सीसा का ज्यामितीय औसत अमेरिकी राष्ट्रीय औसत के आंकड़ों से कहीं ज्यादा था. बच्चों के लिए यह बेहद घातक साबित हो सकता है, क्योंकि बच्चे जमीन पर खेलते हुए अकसर हाथ को मुंह में लेते हैं, जिससे सीसा से सना धूल भी शरीर के भीतर जाने का खतरा मंडराता रहता है.

पेंट में सीसा नियंत्रण के नियम

ज्यादातर पश्चिमी देशों ने बहुत समय पहले से ही पेंट में सीसा की मात्र के नियंत्रण के लिए नियम बना रखे हैं. घरेलू पेंट में सीसा की मात्र का मानक 1,000 पीपीएम या 600 पीपीएम था. अब अमेरिका या दूसरे देशों में जो मानक स्वीकृत हैं, वे 90 पीपीएम हैं. भारत ने अभी इसी मानक को अपनाया है.

भारत में उपलब्ध पेंट में सीसा की मात्र जानने के लिए कई अध्ययन किये गये हैं. ऐसे ही एक अध्ययन के अनुसार, भारत के प्रतिष्ठित घरेलू पेंट ब्रांड्स के 69 नमूनों का सीसे की मात्र जानने के लिए जांच किया गया. उस अध्ययन के अनुसार, जहां प्लास्टिक पेंट (पानी आधारित) में सीसे की मात्रा औसतन 25 पीपीएम थी, वहीं 80 प्रतिशत से ज्यादा एनामेल (तेल आधारित) पेंट के नमूनों में सीसा की मात्र 600 पीपीएम या 1000 पीपीएम से ज्यादा थी. गहरे चटख रंगों के पेंट में सीसा की मात्र प्रतिशत में पायी गयी.

शोध सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि पेंट निर्माण प्रक्रिया में यदि सीसा के यौगिकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, तो सीसा की मात्रा पेंट में अमूमन काफी कम होती है. वहीं दूसरी ओर यदि सीसा के यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है, तो निर्माण प्रक्रिया में तब पेंट में सीसा की मात्र काफी ज्यादा होती है. 600 पीपीएम या 1,000 पीपीएम के मानकों से कहीं ज्यादा. यानी पेंट में सीसा के मानक हों, तो उनकी मात्र कम ही होनी चाहिए.

पेंट से सीसा समाप्त करने की वैश्विक परिकल्पना

विभिन्न देशों की सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों, व्यक्तियों तथा अन्य हितधारकों के संयुक्त प्रयासों की वजह से जमीनी स्तर पर परिस्थितियांबदल रही हैं. अब कुछ ब्रांडेड कंपनियां सीसा रहित पेंट का निर्माण कर रही हैं. रासायनिक सुरक्षा पर अंतर-सरकारी फोरम (आइएफसीएस) के छठे सत्र (डकार, सेनेगल में सितंबर, 2008 में आयोजित) में दुनियाभर से पेंट में सीसा को खत्म करने के लिए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया.

बाद में ऐसा ही एक प्रस्ताव रसायन प्रबंधन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आइसीसीएम) के दूसरे सत्र (11 से 15 मई, 2009 को जिनेवा में आयोजित) में भी पारित हुआ. इस सम्मलेन में पेंट से सीसा को समाप्त करने के लिए एक वैश्विक गंठबंधन की परिकल्पना की गयी. यह गंठबंधन तमाम हितधारकों के साथ मिलकर यह प्रयास कर रहा है कि सीसा से संबंधित मुद्दों से न सिर्फ आम लोगों एवं उद्योगों को जागरूक किया जाये, बल्कि धीरे-धीरे पेंट से सीसा का वजूद ही खत्म कर दिया जाये, ताकि हमारी अगली पीढ़ी सुरक्षित हो सके.

सीसा का स्वास्थ्य पर प्रभाव

सीसा बच्चों के स्वास्थ्य को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. बच्चों के व्यावहारिक विकास में यह बाधक है. इंसान के खून में तो इसकी जरा सी भी मात्रा को बेहद खतरनाक माना जाता है. शरीर में इसकी मात्र का स्तर कितना घातक है, इसका सटीक आकलन चिकित्सा विज्ञान का विषय है, लेकिन अब तक के अध्ययनों और शोधों में पाया गया है कि सीसा का कम से कम स्तर भी हमारे शरीर में होना घातक है. अमेरिका में तो स्वास्थ्य प्राधिकरण बच्चों में अति न्यून स्तर पर भी सीसा पाये जाने पर भी उसका इलाज करते हैं. गर्भवती महिलाएं और बच्चे कई बार प्लेसेंटा के माध्यम से इसकी चपेट में आने से नहीं बच पाते. दरअसल, प्लेसेंटा के माध्यम से कई बार इन महिलाओं में सीसा शरीर में चला जाता है और बाद में यह शरीर में एक स्थान पर जम जाता है. देखा गया है कि किसी प्रकार की बीमारी के चलते मेटाबोलिजम के बढ़ने से शरीर में जमा हुआ सीसा खून में आ जाता है. यहीं से इसका दुष्प्रभाव शुरू हो जाता है.

खिलौनों में सीसा की मौजूदगी

खिलौनों में सीसा का इस्तेमाल भी एक जटिल समस्या है. खिलौने बच्चों के संसार के अभिन्न अंग हैं. खिलौना एक सशक्त माध्यम है, जिसके सहारे बच्चे दुनिया से रूबरू होते हैं. बच्चों और खिलौनों के बीच एक आत्मीय संबंध होता है और बच्चे खिलौनों को किस तरह से इस्तेमाल करते हैं, यह अकसर इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे की उम्र क्या है. खिलौने जितने रंगीन होते हैं, वे बच्चे को उतना ही आकर्षित करते हैं. खिलौनों में सीसा का इस्तेमाल दो कारणों से हो सकता है- एक सीसा युक्त पेंट के इस्तेमाल से दूसरा पीवीसी से बने खिलौनों के कारण. जब खिलौनों के कोटिंग में सीसा युक्त पेंट का इस्तेमाल हो, तो ऐसे खिलौने बच्चों के लिए घातक साबित हो सकते हैं. पॉलीविनायल क्लोराइड के बनेखिलौने बच्चोंके लिए सीसा का एक संभावित स्नेत है. पॉलीविनायल क्लोराइड की संरचना में स्वपाचन की एक विशेष समस्या है, जिसके तहत मुक्त क्लोरीन परमाणु मुक्त हाइड्रोजन परमाणु के साथ प्रतिक्रया कर हाइड्रोजन क्लोराइड बनाता है, जो पॉलीविनायल क्लोराइड को ही क्षति पहुंचाता है.

इस समस्या से बचने के लिए पॉलीविनायल क्लोराइड के निर्माण के समय ही उसमें सीसा या कैडमियम के यौगिक मिला दिये जाते हैं, जो मुक्त हाइड्रोजन या क्लोराइड के परमाणु को आपस में मिलने से रोकते हैं और इस प्रकार सीसा या कैडमियम के यौगिक पीवीसीको स्थायित्व प्रदान करते हैं. लेकिन जो सीसा पीवीसी को स्थायित्व प्रदान करता है, वही बच्चों के लिए जोखिम से भरी संभावनाओं को भी जन्म देता है.

खिलौनों में सीसा के उपयोग संबंधी मानक बहुत स्पष्ट नहीं हैं और जो हैं भी वे अनिवार्य नहीं हैं. अब सीसा एवं अन्य विषाक्त भारी धातु की जगह सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं. उम्मीद की जाती है कि बच्चों को अब एक सुरक्षित परिवेश मिल सकेगा.

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