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बदलेंगे हालात, पर घर से निकलो तो सही!

<p>।। अनुज सिन्हा।।&nbsp;</p> <p>(वरिष्ठ संपादक, प्रभात खबर)</p> <p>पूरे देश में मतदाताओं को जगाने का अभियान चल रहा है. चुनाव आयोग हो, प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या अन्य सामाजिक संगठन, सभी अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे हैं. जिस तरीके से चुनाव से मतदाता दूर हो गये हैं, उससे सभी का चिंतित होना स्वाभाविक […]

<p>।। अनुज सिन्हा।।&nbsp;</p> <p>(वरिष्ठ संपादक, प्रभात खबर)</p> <p>पूरे देश में मतदाताओं को जगाने का अभियान चल रहा है. चुनाव आयोग हो, प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या अन्य सामाजिक संगठन, सभी अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे हैं. जिस तरीके से चुनाव से मतदाता दूर हो गये हैं, उससे सभी का चिंतित होना स्वाभाविक है. देश के लगभग आधे मतदाता अगर चुनाव में हिस्सा ही न लें, तो इससे जनता के सही प्रतिनिधित्व पर बड़ा असर पड़ता है. इस पूरे अभियान में हम (प्रभात खबर) भी पीछे नहीं हैं. मतदाताओं को जगाने के लिए हमारा भी अभियान चल रहा है. कोई आज से नहीं, 16-17 सालों से. लगभग हर चुनाव में जागरूकता अभियान के तहत &lsquo;प्रभात खबर&rsquo; की टीम गांव-गांव और दूरदराज के &nbsp;इलाकों में भी जाती है और मतदाताओं को जगाने का प्रयास करती है.</p> <p>इसी अभियान के तहत इस बार हम अपनी टीम के साथ अनेक कॉलेजों में गये. युवाओं का मूड पहचानने का प्रयास किया. देश में इस बार तकरीबन 10 करोड़ नये मतदाता बने हैं. यह जानने का प्रयास किया कि ये सिर्फ मतदाता बने हैं या इनके अंदर बेचैनी भी है और ये बूथ पर मत देने जायेंगे या नहीं. उत्तर आसान नहीं है. आयोग भले ही यह उम्मीद कर रहा है कि इस बार 70 फीसदी से ज्यादा मतदान होगा, लेकिन यह लक्ष्य तभी सफल हो पायेगा जब लोग घरों से निकलें. यह सही है कि लोगों के अंदर बेचैनी है. वे मुद्दों को जानते-समझते हैं. देश संकट में है, &nbsp;बेरोजगारी है, महंगाई है, वे सब समझते हैं. इसके लिए वे नेताओं को दोषी ठहराने से नहीं चूकते, पर अभी तक वोट देने का बड़ा जुनून उनके अंदर नहीं दिख रहा. युवा मतदाता निराश दिखते हैं. उन्हें लगता है कि कोई आये-जाये, उनकी समस्या नहीं सुलङोगी. उन्हें रास्ता नहीं दिखायी देता. राजनीतिक दलों पर अविश्वास इसका बड़ा कारण लगता है. युवाओं के मन में यह बात चल रही है कि लगभग सभी दल एक ही तरह के हैं. किसी भी सूरत में ये दल सत्ता में आना चाहते हैं. भ्रष्ट, बेईमान और आपराधिक छविवालों को भी दलों ने चुनाव में उतारा है. युवा इससे खफा हैं और वे दलों में फर्क नहीं कर पा रहे.</p> <p>हमलोगों ने भी प्रयास किया कि युवा घरों से निकलें और संविधान ने उन्हें जो अधिकार दिया है, उसका प्रयोग करें. घर में बैठ कर सिर्फ कोसने से कुछ नहीं होगा. युवाओं को प्रेरित करने का भी प्रयास किया/कर रहा हूं. इस बार मीडिया या चुनाव आयोग जितना सक्रिय है, पहले कभी इतना नहीं रहा. इसलिए अगर इस बार चुनाव में मतदान का प्रतिशत अच्छा खासा नहीं बढ़ा, लोग वोट करने नहीं निकलें, तो यही संदेश जायेगा कि अधिकतर लोगों को अब नेताओं पर भरोसा नहीं है. इसके लिए राजनीतिक दल भी कम जिम्मेवार नहीं हैं. युवाओं या अन्य मतदाताओं को इन नेताओं ने इतना धोखा दिया है कि उन पर लोगों ने भरोसा करना छोड़ दिया है. युवा रात-दिन पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन नौकरी नहीं मिल रही. फिर पढ़ाई क्यों करें? कानून-व्यवस्था चौपट है. अपने ही देश में सुरक्षित नहीं हैं. प्रांतवाद बढ़ता जा रहा है. एक राज्य का युवक दूसरे राज्य में रोजगार-नौकरी करने जाता है तो हमले होते हैं. पराया समझा जाता है. यह तो नेताओं की ही देन है. बेहतर माहौल नहीं बन पा रहा. कालेजों में पढ़ रहे ये युवा हर दिन ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं. इसलिए इनके अंदर आक्रोश दिख रहा है. अगर वोट के जरिये ये अपने आक्रोश को बाहर नहीं निकालते हैं, तो यही आक्रोश किसी और रूप में निकलेगा.</p> <p>बेहतर है कि लोग घरों से निकलें. वोट दें. नेता पसंद नहीं हैं, तो नोटा दबा कर उन्हें रिजेक्ट करें. आप वोट नहीं देंगे तो फिर वही प्रत्याशी जीत सकता है जिसे आप नापसंद करते हैं. जो आपका भला नहीं कर सकता. अगर वही व्यक्ति चुना जाता है, सांसद बनता है, तो आपकी ही हार होगी. इसलिए युवा हों या अन्य मतदाता, अपने अधिकार का प्रयोग करें. वोट के जरिये व्यवस्था बदलें. सिर्फ कुढ़ने-कोसने से कोई फायदा नहीं होगा. किसे रोकना है या किसे भेजना है, यह आपके हाथ में है. संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करें. देश को गढ़ने का यही एकमात्र तरीका है.</p> <div>&nbsp;</div>

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