जून, 1941 में नाजी जर्मनी ने रूस पर विध्वंसक युद्ध थोप दिया था. 1941 से 45 के बीच पूर्व यूएसएसआर और जर्मनी का यह युद्ध सोवियत संघ के विभिन्न राज्यों में देशभक्तिपूर्ण युद्ध के तौर पर जाना जाता है. उस युद्ध के भयावह पल आज भी कुछ लोगों की आंखों में कैद हैं. रूस के प्रमुख समाचार पत्र स्पुतनिकने हाल ही में इस पर बड़ी स्टोरी प्रकाशित की है. उन खौफनाक मंजर को अपने जेहन में समेटे लेनिनग्राद (सेंट पीटर्सबर्ग), गोरकी (निजनी नोवोगोर्द) और मास्को की तीन महिलाओं की आपबीती खून सर्द कर देने वाली है.
लेनिनग्राद की नाकेबंदी
आज सेंट पीटर्सबर्ग रूस का एक जीवंत शहर है. लेकिन, युद्ध के समय यह लेनिनग्राद के नाम से जाना जाता था. नाजी रूस को अपने अधीन कर लेना चाहते थे. जब लेनिनग्राद में युद्ध शुरू हुआ, तब तमारा रोमनोवाना गेचेवा सिर्फ 12 साल की थी. एक साल बाद वह अनाथ हो गयी. वह अकेली रह गयी. तमारा मानती हैं कि 1418 दिनों का युद्ध और 900 दिनों की नाकेबंदी से शहरवासियों का क्या हाल हो जाता है और ऐसी परिस्थिति में लोग कैसे जिंदा रहते हैं, यह आज के युवाओं को जानना चाहिए.
तमारा की बहादुरी, ईमानदारी से की गयी सेवा और लेनिनग्राद की रक्षा में अपने सक्रिय योगदान के लिए उन्हें विशेष मेडल से नवाजा गया था. तमारा के अनुसार, उस वक्त लेनिनग्राद में स्वयंसेवकों की सेना भरती शिविर के सामने कई किलोमीटर लंबी कतार लगी रहती थी. महिलाएं, बच्चे व वैसे लोग, जो सेना में सामने से लड़ने योग्य नहीं थे, सभी शहर की रक्षा में सक्रिय योगदान देने के लिए रह गये थे. इनका काम शहर के चारों ओर खाई खोदना, बाड़ लगाना और अन्य सुरक्षात्मक उपाय करना था. शहर की नाकेबंदी के बाद स्थिति बदल गयी. सितंबर, 1941 में खाद्य सामग्री के डिपो तबाह हो गये. शहर की रक्षा में लगे लोग भूख से मरने लगे. साथ ही ईंधन के अभाव में शून्य से नीचे के तापमान ने अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया था. स्थानीय लोगों के लिए जिंदा रहने का संघर्ष कठोर होने लगा. शहर में अंतहीन बमबारी का सिलसिला शुरू हो गया. बमबारी खत्म होते ही गोलीबारी शुरू हो जाती थी. सड़कों पर लोगों की लाशें बिखरी मिलती थी. पानी, बिजली और खाने के बिना लोग मरने लगे. किशोरों को टेलीफोन केबल जोड़ने और लगाने के लिए प्रशिक्षित कर दिया गया था. वहीं लेनिनग्राद के आत्मसमर्पण की अफवाह भी फैलती रहती थी. हिटलर लेनिनग्राद को साफ कर देना चाहता था. उसने अपने सैनिकों को मास्को की ओर बढ़ने का आदेश दे दिया था, लेकिन लोग ऐसा नहीं होने देने के लिए जी जान से जुटे हुए थे. तमारा बताती हैं, सभी बच्चे, युवा और महिलाएं सच्चे मन से अपनी जीत के लिए डटे हुए थे.
मास्को : बिना प्रशिक्षण सेना में भरती
युद्ध के दौरान मास्को की 16 वर्षीय लिडा पेटरोवा ने हाइ स्कूल खत्म किया था. उनके पिता सेना में कार्यरत थे और बहन हॉस्पिटल में काम करती थीं. लिडा के अनुसार मास्कोवासी ऐसे युद्ध के लिए तैयार नहीं थे. युद्ध के दौरान शहर खाली करते वक्त कई लड़के यहीं रह गये और बिना प्रशिक्षण के सेना में भरती कर लिये गये. ऐसे लड़के युद्ध में एक के बाद एक मारे जा रहे थे. लिडा ने भी स्कूल से निकलने के बाद शहर में ही रहने का फैसला किया. पढ़ कर आने के बाद वह हॉस्पिटल चली जाती थी. उन्होंने बताया कि हमलोग रात को लाशों व घायलों से भरी ट्रेन का इंतजार करते थे. एक बार मैंने एक भयावह दृश्य देखा. एक छोटी से दुबली-पतली लड़की एक बड़े से घायल सैनिक को संभालने की कोशिश कर रही थी. घायलों की संख्या ज्यादा थी और उन्हें संभालने वाले लोग काफी कम थे. ट्रेन से उतरने वाले कई सैनिक गोलियों से छलनी रहते थे.
गोरकी : लाशों के बीच छुप कर जान बचाते थे
निजनी नोवगोर्द जिसका नाम तब गोरकी हुआ करता था, वहां की आइरीना निकोलाएवना टेरेगोवा युद्ध के वक्त सिर्फ पांच साल की थी. जब वहां बमबारी थमी, तो टेरेगोवा का परिवार घर लौटा. टेरेगोवा बताती हैं कि उनका घर तहस-नहस हो चुका था. छत उड़ गयी थी. घर के नाम पर सिर्फ दीवार और मलबों का ढेर था. युद्ध के समय उनका परिवार बंकर में छिपकर रहने चला गया था. टेरेगोवा बताती हैं कि हमें सेना ने बंदूक चलाने का प्रशिक्षण दिया था.
टेरेगोवा के पिता एक शस्त्र कारखाने में काम करते थे. गोरकी से सेना को हथियारों की आपूर्ति होती थी. यह शहर रेड आर्मी को अन्य सुविधा देने वाले कई ऑटोमोटिव प्लांट से लैस था. इसलिए नाजी सेना इसे तबाह कर देना चाहती है. इसलिए यहां लगातार बमबारी और गोलीबारी होती रहती थी. टेरेगोवा बताती है कि कभी-कभी हमें लाशों के बीच छिप कर अपनी जान बचानी पड़ती थी. यह काफी भयावह व हृदयविदारक था. वह बताती हैं कि 1941 के वसंत से 1943 की गरमी तक गोरकी पर जर्मनी के बमवर्षक विमानों ने लगातार बमबारी की. युद्ध के बाद यह शहर पूरी तरह तबाह हो चुका था. जिंदा बचे लोग किसी तरह शहर के मलबों में छिप कर बचे हुए थे. युद्ध के बाद इसे खड़ा करने करने में बहुत समय लगा.