दिल्ली की ललित कला अकादमी में हाल ही में आयोजित हुई चित्र प्रदर्शनी ‘अनंत की तलाश’ को देखते हुए यह यकीन करना मुश्किल था कि ये चित्र एंटी करप्शन पर किताब लिख चुके और भ्रष्टाचार के खिलाफ काम रहे एक आइएएस अधिकारी ने बनाये हैं. निर्गुण के आलोक को अभिव्यक्त करते इन चित्रों के चित्रकार केंद्रीय सतर्कता आयोग के अधिकारी के सुब्रमणियम हैं. यह उनकी छठीं एकल चित्रकला प्रदर्शनी थी. के सुब्रमणियम से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत के मुख्य अंश.
आप एक आइएएस अधिकारी हैं. चित्रकला की ओर रुझान कैसे हुआ ?
मैं जब इंजीनियरिंग का छात्र था 1987-88 में, तब से पेटिंग कर रहा हूं. इसके बाद एमबीए किया, प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की, तब भी चित्रकारी साथ-साथ चलती रही. आइएएस परीक्षा देकर सिविल सर्विस में आ गया तब भी चित्र बनाना जारी रहा.
आपने चित्रकला का प्रशिक्षण लिया या स्वयं के अभ्यास से इस कला को साधा ?
मैं चित्रकला सीखने के लिए किसी स्कूल या कॉलेज में नहीं गया. कोई विधिवत ट्रेंनिग या डिग्री नहीं ली. मैंने अपने आप ही शुरुआत की. चित्र बनाता गया और सीखता गया. शायद इसलिए मुङो बीएफए, एमएफए किये हुए चित्रकारों के बीच हमेशा आउटसाइडर माना गया. लेकिन मैं लगातार चित्र बनाता रहा, सीखता रहा और इस मुकाम तक पहुंचा हूं.
आप इंजीनिरिंग के छात्र थे, फिर ऐसा क्यों और कैसे लगा कि मुङो चित्रकार भी होना है?
कला और अध्यात्म दोनों मेरे भीतर एक साथ विकसित हुए. इसकी झलक मेरे चित्रों में भी मिलती है. मेरी शुरुआती पेंटिंग्स में अधिकतर राधा-कृष्ण की आकृति हैं. मैं उस वक्त इस्कॉन से जुड़ा था. बाद में रामकृष्ण मिशन गया, दर्शन और अध्यात्म के बारे में बहुत कुछ पढ़ा. भारतीय और पश्चिम के दर्शन को पढ़ा और समझा. इसमें जो पाया उसे ही चित्रों में अभिव्यक्त किया. इस तरह मेरी आध्यात्मिक यात्र और पेंटिंग एक साथ चलती आ रही है. मैं सूफी संगीत भी बहुत सुनता था. इसका भी कुछ असर रहा. मैं आज भी सूफी संगीत सुनते हुए ही चित्र बनाता हूं.
आपकी एक पेंटिंग का टाइटल है ‘तुम एक गोरख धंधा हो’. इसके बारे में कुछ बताएं ?
नुसरत फतेह अली खां साहब द्वारा गाया गया एक कलाम है- ‘हो भी नहीं और हरजां हो, तुम एक गोरखधंधा हो’. इस पेंटिंग में इस कलाम में शामिल आयामों को अभिव्यक्त करने की कोशिश की है मैंने. यहां खुदा से बात की जा रही है कि तुम हो और नहीं भी हो, जैसे तुम एक गोरखधंधा हो. यह एक बहुत ही खूबसूरत सूफी कलाम है, जिसे उतनी ही खूबसूरती से नुसरत फतेह अली खां साहब ने गाया है. इसकी एक पंक्ति है-‘तुङो दैरोहरम में मैंने ढूंढ़ा तू नहीं मिलता, मगर तसरीफरमा तुझको अपने दिल में देखा है, तू एक गोरखधंधा है..तू एक गोरखधंधा है..’ इस चित्र में एक जगह सीढ़ियां हैं, कई दरवाजे बने हुए हैं, यह इशारा है कि जिसकी पहुंच जहां तक, उसके लिए वहीं पर खुदा है. उसका कोई रूप नहीं, वह निराकार है. मेरे चित्र निगरुण को प्रस्तुत करते हैं.
अपने चित्रों की पहली प्रदर्शनी के बारे में बतायें. कैसी प्रतिक्रिया मिली थी ?
मेरे चित्रों की पहली प्रदर्शनी वैसे तो मसूरी में लगी थी. लेकिन बाकायदा प्रदर्शनी शिमला में टाउन हॉल में हुई. तब हिमाचल के चीफ जस्टिस ने उसमें शिरकत की थी. लेकिन अगर चित्रों पर प्रतिक्रिया की बात करूं तो वहां के प्रेस का मेरे चित्रों पर आलोचनात्मक रुख ही दिखा था. दरअसल, उसी समय एक और आइएएस अधिकार उपमन्यु चटर्जी की किताब आयी थी ‘इंगलिश अगस्त’, बाद में इस पर फिल्म भी बनी थी. लेकिन उस समय कहा गया कि इंडिया की ये हालत इसलिए है क्योंकि ब्यूरोक्रेट्स जमीनी हकीकत से बेफिक्र कला और लेखन की दुनिया में खोये रहते हैं. इस वजह से भी मेरी पेंटिंग्स को क्रिटीसाइज किया गया था. खैर ये तो पुरानी बात हुई. अब ऐसा नहीं है.
आप अपने काम और कला के बीच सामंजस्य कैसे बिठाते हैं?
मैं अधिकतर रात में चित्र बनाता हूं और फिर शनिवार, रविवार का पूरा दिन भी मेरे चित्रों के नाम होता है. इससे एक स्थायित्व बना रहता है नौकरी और कला के बीच. पेंटिंग से मुङो अपने काम में भी ऊर्जा मिलती है. इसलिए बतौर आइएएस में मेरा बेहतर प्रदर्शन रहा है अब तक. मैंने एंटी करप्शन पर किताब लिखी है. इंवेस्टीगेशन कैसे किया जाये, इसका एक स्टैंडर्ड बनाया है कमीशन में आकर. इससे पहले सीएजी में था तो डिफेंस के परचेस कैसे ऑडिट करते हैं, इस पर एक किताब लिखी थी. अगर आप ईमानदारी से कुछ करना चाहें, तो सब चीजों में तालमेल बिठा कर उसे अच्छी तरह से करते जाते हैं.
कोई चित्र कैनवस में उतरने से पहले ही दिमाग में बन जाता है या कूंची अपने आप एक आकार बनाती जाती है?
यह मैं अब करने की कोशिश कर रहा हूं कि एकदम ब्लैंक होकर कैनवस पर रंगों के साथ खेलूं और चित्र बनता जाये. लेकिन अभी तक जो चित्र बनाये हैं मैंने, वह मेरे अनुभवों से उपजी कल्पना की अभिव्यक्ति हैं. पहले से ही एक कल्पना आकार लेती रहती है मन में, फिर मैं उसे चित्रों में उकेरता हूं. यह क्षण भर की कल्पना नहीं होती, लंबे समय तक अवचेतन में वह विचार चलता रहता है. जैसे ‘पुरुष-प्रकृति’ पेंटिंग का आइडिया चार-पांच साल से था अवचेतन में, जब पूरी तरह विकसित हो गया तब चित्र में अभिव्यक्त हुआ.
आपकी इस चित्र प्रदर्शनी की थीम है ‘अनंत की तलाश’. चित्रकला के लिए भी कहा जाता है कि ये अनंत से अंतर की यात्र है. आप इस पर क्या कहेंगे?
यह यात्र बहुत लंबी है. हम अनंत की खोज में निकले हैं और चलते जा रहे हैं. अपने आप को इसमें खो दिया है. ‘तुम हो एक गोरखधंधा’ कलाम में एक पंक्ति है-‘जो कुछ खोया है उसी में कुछ पाया है.’ अपने आप को जो खो देता है, वही कुछ पाता है. इसमें अपने आप को ही खोकर पाना है.
ऐसे चित्रकार जिन्होंने आपको अपनी कला से प्रभावित किया ?
वॉन गॉग मेरे सबसे प्रिय चित्रकार हैं. मेरे शुरुआती चित्रों में राजारवि वर्मा का असर दिखता है. मैंने अपनी मां का एक पोट्रेट बनाया है. मेरी मां का जब देहांत हुआ, मैं ऐकेडमी में ट्रेनिंग में था, तब मैंने वो पोट्रेट बनाया था. कई लोग कहते हैं कि उसमें राजारवि वर्मा का इफेक्ट है. मुङो राम चंद्रन, अमृता शेरगिल, सतीश गुजराल की पेंटिंग्स भी बहुत पसंद हैं.